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7 नवंबर, 1966: गोवध निषेध आंदोलन का काला दिन – संसद भवन के पास हुआ था साधु-संतों का ‘संहार’

7 नवंबर, 1966: गोवध निषेध आंदोलन का काला दिन – संसद भवन के पास हुआ था साधु-संतों का ‘संहार’

नई दिल्ली: भारतीय इतिहास में 7 नवंबर, 1966 का दिन एक काला अध्याय माना जाता है, जब राष्ट्रीय राजधानी में गोवध निषेध की मांग कर रहे हजारों साधु-संतों और प्रदर्शनकारियों पर कथित तौर पर बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की गई थी। इस दिन गोरक्षा आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया और संसद भवन के निकट चार प्रमुख स्थानों पर हजारों लोगों के मारे जाने का दावा किया जाता है।

📜 आंदोलन की पृष्ठभूमि और नरसंहार

यह घटना गोरक्षा अभियान समिति द्वारा आयोजित एक विशाल प्रदर्शन के दौरान घटी थी। प्रत्यक्षदर्शी और प्रसिद्ध पत्रकार श्री मनमोहन शर्मा ने 2017 में "PUBLIC 24×7" चैनल को दिए एक इंटरव्यू में इस भयावह दिन का पूरा ब्यौरा दिया था।

आंदोलन में सहभागिता:

मनमोहन शर्मा के अनुसार, इस आंदोलन में साधु-संतों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), जनसंघ और अन्य प्रमुख हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता भी शामिल थे।

इंदिरा सरकार और आश्वासन:

नरसंहार से पहले, साधुओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी। उन्हें गौ रक्षा हेतु आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया गया था, लेकिन मामला लटकता रहा, जिसके कारण गोरक्षा अभियान समिति का गठन हुआ और बड़े स्तर पर सत्याग्रह व संसद भवन के पास प्रदर्शन किया गया।

🔴 'सूट एट साइट' का आदेश और गुलजारी लाल नंदा का बयान

पत्रकार महोदय ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए 'सूट एट साइट' (देखते ही गोली मारने) का आदेश दिया गया था, जिसे छिपाकर रखा गया था।

गृह मंत्री का बयान: घटनास्थल पर पत्रकार शर्मा की भेंट तत्कालीन गृह मंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा से हुई थी। नंदा जी ने यह कहकर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की थी कि "गोली किसके आदेश के अनुसार चलवाई जा रही है, यह मुझे नहीं मालूम।" पत्रकार के अनुसार, कैबिनेट मंत्री का इस बात को छिपाना तत्कालीन सरकार के इरादों पर सवाल खड़े करता है।

बाहरी पुलिस की तैनाती: आंदोलन की भयावहता के बहाने इंदिरा गांधी ने जम्मू एंड कश्मीर पुलिस को बुलाया था, क्योंकि उन्हें दिल्ली पुलिस पर भी भरोसा नहीं था।


🩸 बर्बरता और खून से लथपथ सड़कें

शर्मा के इंटरव्यू के अनुसार, आंदोलन को कुचलने के लिए गुंडों को भी बुलाया गया था, जिनका कार्य अशांति फैलाना और दंगे करना था। हरियाणा के एक माफिया किंग को भी शामिल किए जाने का दावा किया गया।

नरसंहार के दृश्य: पत्रकार ने 7 नवंबर की घटना को "अंग्रेज पुलिस के द्वारा हिंदुस्तानियों का नरसंहार" जैसा बताया।

लाशों का ढेर: नरसंहार रायसीना हिल्स के चार प्रमुख स्थानों—संसद भवन का गेट, पटेल चौक, बिलिंगटन हॉस्पिटल (मौजूदा राम मनोहर लोहिया अस्पताल) और गोल पोस्ट ऑफिस के पास हुआ था।

पत्रकार का अनुभव: चूंकि पत्रकार की पुलिस और CID के बड़े अधिकारियों से पहचान थी, इसलिए उन्हें घटनास्थल पर जाने दिया गया, जहाँ उनके जूते ऊपर तक खून से लथपथ हो गए थे। उन्होंने बताया कि पार्लियामेंट के दरवाजे से लेकर पटेल चौक तक खून ही खून फैला हुआ था।


⚠️ सरकारी आंकड़े बनाम प्रत्यक्षदर्शी दावे
विवरणसरकार द्वारा बताया गया आंकड़ाप्रत्यक्षदर्शी दावा (मनमोहन शर्मा)
मृतकों की संख्या11 साधुओं के मारे जाने की खबर2000 से 2500 से भी अधिक साधु-संत मारे गए
डेड बॉडी की संख्या (केवल विलिंगटन हॉस्पिटल)कोई जानकारी नहीं372 से ऊपर (जिसमें 40 बच्चे भी शामिल थे)
पुलिस कार्रवाईमिनिमम फोर्स (न्यूनतम बल) का इस्तेमाललाठी चार्ज, आंसू गैस और बर्बरतापूर्ण गोलीबारी
🔍 लाशों को गायब करने का आरोप

प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, दो से ढाई हजार से भी अधिक साधु-संत मारे गए थे। सरकार पर लाशों को गायब करने का गंभीर आरोप लगाया गया। करीब 5000 बसों से आंदोलनकारियों और लाशों को वहां से हटाकर दिल्ली से बाहर यत्र-तत्र फेंकवाया गया।

📢 राजनीतिक और परिणाम

इस घटना के बाद गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने इस्तीफा दे दिया था।

दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर हुए अगले चुनाव में कांग्रेस हार गई और सभी सीटें जनसंघ ने जीतीं।

आश्चर्यजनक रूप से, संसद में इस गंभीर घटना पर बहस तक नहीं हुई।

करपात्री जी महाराज और अन्य हिंदू नेताओं के बीच आंदोलन के नेतृत्व और श्रेय लेने की होड़ को भी इस मामले के दब जाने का एक कारण बताया गया।

7 नवंबर 1966 की यह घटना आज भी गोवध निषेध आंदोलन और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अनसुलझा और दबा कर रखा गया मामला बनी हुई है।

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