Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

साहित्य के आधार स्तम्भ डॉ0 श्रीरंजन सूरिदेव

साहित्य के आधार स्तम्भ डॉ0 श्रीरंजन सूरिदेव


भारतीय साहित्य गगन के आभामंडित, सुविख्यात एवं ज्ञान की किरणों को बिखेरती हुई पाठकों के अंतर्वृंद को झकझोरती हुई उसे आनंदित कर चार चांद लगा देने में सक्षम एवं सफल थे-हमारे प्यारे साहित्यकार डॉ0 श्रीरंजन सूरिदेव।

डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव का जन्म28 अक्टूबर ,1926 ईस्वी को शुंभेश्वर नाथ धौनी, दुमका में हुआ था। इनकी शिक्षा एमए त्रय थी। इसके साथ इन्हें पीएच0डी0 की उपाधि से अलंकृत होने का सौभाग्य प्राप्त था। यह साहित्य के क्षेत्र में प्रेरणा अपने ताऊ पंडित रामेश्वर पाठक तथा पंडित नरसिंह मोहन मिश्र से प्राप्त हुई। इनका गृहस्थ जीवन अपनी धर्मपत्नी लता रंजन से पल्लवित पुष्पित हुआ। श्रीरंजन सूरिदेव 26 वर्षों तक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद में परिषद पत्रिका के संपादक तथा उपनिदेशक, शोध के पद से सेवानिवृत्त
हुए, जो साहित्य जगत हेतु शान की बात है। इनके कार्यों की प्रशंसा संपादन के क्षेत्र में प्राप्त हुआ। उदाहरण_ अन्वेषण, विवेचन ,मूल्यांकन, संवर्धन, प्रचार-प्रसार आदि है। डॉक्टर श्रीरंजन सूरिदेव संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, जैन धर्म, बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हिन्दी के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाए थे। मूर्धन्य विद्वान एवं साहित्यकार श्रीरंजन जी 'वासुदेव हिंदी: भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत कथा' शीर्षक रूप में पीएच0डी0 की उपाधि प्राप्त किए। यह ग्रंथ प्राचीन साहित्य के वांग्मय मूर्ति स्वरूप ज्ञानमय कोश है। 'मेघदूत : एक अनुचिंतन बारे में श्रीरंजन जी ने प्राचीन काल से आज तक तथा देश _विदेश तक लिखे जाने वाले चीजों को उल्लेखनीय ग्राह्य
बनाकर पेश किया है, जो बेमिसाल है। इस ग्रन्थ के बारे में आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने भूमिका लिखी थी। इस ग्रंथ में रंजन जी की प्रकृति चित्रण काफी प्रभावशाली है, वह देखते ही बनती है।

जैसे _"प्रकृति के सुकु‌मार कल्प कवि कालिदास ने मेघदूत के प्रकृति सौंदर्य में मानव को करुण अनुभूतियों का दर्शन किया है तथा मानव की चिरसंचित वेदनाओं का प्रकृति की अनंत छवि के माध्यम से गुम्फन किया है। अभिशप्त _तप्त एवं विरह विताड़ित यक्ष के वेदना संदेश वाहक वलाहक में कवि ने विपुल विश्व की चिरंतन व्यथा का विमल विनियोग कर वलाहक की भूमिका में अमर अश्रु का इतिहास भी लिख दिया है।"


साहित्य मर्मज्ञ रंजन जी के साहित्य का पदार्पण 1945 ईस्वी में हुआ, लेकिन इससे पहले भी आचार्य शिवपूजन सहाय द्वारा संपादित'बालक' मासिक पत्रिका में निबंध 'मंदार पर्वत' नाम से प्रकाशित हो चुका था। ऐसे तो श्रीरंजन जी द्वारा साहित्य ग्रंथों का योगदान बृहत है, लेकिन प्रमुख निम्नलिखित है-वासुदेव हिन्दी भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत कथा, आलोचना ,मेघदूतः एक अनुचिंतन, गीत _संगम , बहुत है काव्य संग्रह, वासुदेव हिंदी, प्राकृत से हिंदी, सिंहासन बत्तीसी संस्कृत से हिन्दी, पाटलिपुत्र की धरोहर रामजी मिश्र मनोहर, अभिनंदन ग्रंथ ,जीवन दर्पण, आचार्य शिवपूजन सहाय की देनंदिनी :डायरी के प्रथम खंड, स्मृति शेष आर्य पुत्र: पंडित राम नारायण शास्त्री, स्मृति ग्रंथ आदि। 'बहुत हैं' 1956-63 की अवधि में रचित सूरिदेव जी की अमर रचनाओं में से एक है। इस ग्रन्थ में 56 गीत संग्रहित हैं।

इसकी भूमिका डॉ. विमल कुमार रचित है। यह किशोर हृदय की रचना होने के कारण सहज समादरणीय है। इसे हिंदी साहित्य संग्रह के गीतों के क्षेत्र में एक क्रोशशिला की तरह स्वीकार करेगा।विद्वान एवं साहित्यकार श्रीरंजन जी द्वारा रचित 'बहुत है' शीर्षक की ये पंक्तियां कभी काव्य रसिकों को विस्मृत नहीं होगी-

चांद चांदनी के होठों से लेता लोल लहर का चुम्बन,
सौरभ का सागर दे जाता सरिता सांसों को आमंत्रण।
खिलती कलियों से हंसकर जब, मधुकर करता बात बहुत है,
 आती उनकी याद बहुत है। (गीत संख्या एक)।

प्रकांड विद्वान एवं साहित्य वाचस्पति श्रीरंजन सूरिदेव कवि भी थे। ये स्वयं कहते थे-कोई भी कवि हो प्राचीन अथवा नवीन, उसके अंदर एक दर्शन भी होता है, जिसे वह अपनी रचनाओं में देना चाहता है, देता है। डॉ. श्री रंजन द्वारा जिस पत्रिका का संपादन किया जाता था, वह अपने आप में विशिष्ट छाप छोड़ जाता है। जिसमें प्रमुख है-साहित्य, परिषद पत्रिका, अभिनव प्रत्यक्ष, धर्मायण आदि। इन्हें संपादन की कला शिवपूजन सहाय तथा नलिन विलोचन शर्मा से प्राप्त हुई थी।

श्रीरंजन जी ने शिवपूजन सहाय की साहित्यक सामाजिक उस मान्यता का जिक्र किया था, जिसके अनुसार साहित्य सेवा में शुचिता एवं चरित्र का महत्व सर्वोपरि है। विद्वान एवं साहित्यकार श्रीरंजन जी के पास बिहार तथा बाहर के विद्वानों की पुस्तकों की समीक्षा के निमित्त आती थी। इनके द्वारा रचित 'अक्षर भारती' नामक संस्कृत साधना का अप्रतिम अक्षरोल्लास है। रंजन जी ने बाल रचनाएं लिखकर साहित्य को अमूल्य योगदान दिया। वे बाल कथा लिखकर बच्चों को ज्ञान के साथ मनोरंजन भी देते रहे। जैसे_ पिटारी की रानी, बैताल का बदला, काठ की तलवार आदि।

श्रीरंजन जी जैन धर्म के ज्ञाता थे। एक जगह अपने पत्र में उल्लेख किया है कि मैं दिल्ली में जैन दर्शन से संदर्भित शोध पूर्ण आलेख पढ़ा था। उसकी अध्यक्षता ऑक्सफोर्ड के पंडित प्रोफेसर मतीलाल कर रहे थे। आलेख वाचन के बाद प्रोफेसर मतीलाल ने कहा था-वेरी नाइस। इस वेरी नाइस की व्याख्या करना मानो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। श्रीरंजन जी ने कई स्मारिकाओं का संपादन एवं कतिपय ग्रंथों का संपादन भी किया, जिसका साहित्य जगत सदैव ऋणी रहेगा।

इनकी रचनाएं वैविध्यपूर्ण हैं। ये संपादक ,आलोचक, वक्ता, शोध विद्वानआदि के रूप में सेवा करते रहे। उन्हें कई पुरस्कार एवं उपाधियां मिलने का सौभाग्य प्राप्त था। जिसमें प्रमुख है-भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा, बिहार शाखा से सम्मानित, बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉक्टर अखलाक उर रहमान द्वारा संस्कृत सम्मान, बिहार के तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी द्वारा सरस्वती विद्या मंदिर के शिलान्यास समारोह में सम्मान, जैन धर्म हेतु लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, रंगमंच संस्था पटना सिटी के निदेशक एवं संस्थापक श्री विश्वनाथ शुक्ल चंचल द्वारा संस्कृति सौरभ सम्मान, भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा 30 मई ,2017 को राष्ट्रपति भवन में विवेकानंद पुरस्कार 2015 आदि प्रमुख हैं।


श्रीरंजन सूरिदेव चहुंमुखी प्रतिभा के धनी, साहित्य के आधार स्तंभ, बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, साहित्य के प्रति समर्पण, साहित्य प्रेमियों के हितैषी धार्मिक प्रवृत्ति आदि में निष्ठा रखने वाले साहित्यकार थे।


श्रीरंजन जी का देहावसान 11 नवम्बर, 2018 को पटना में हुआ। यह साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। श्रीरंजन जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें साथ हैं। उन्होंने साहित्य की महती सेवा की थी। इसे हम लोग सदैव स्मरण रखेंगे तथा उनके मार्ग पर चलकर अग्रसर होंगे। वे हम लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।


आपके ऊपर यह शायरी बिल्कुल चरितार्थ होता है-शाज मालूम हुआ, अस्ल बयानी क्या है, दिल में वो आग है, लफ्जों में समा भी न सकूं।


दुर्गेश मोहन बिहटा, पटना (बिहार)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ