मातृशक्ति के जागरण का संदेश लेकर सरस्वती विद्या मंदिर में सम्पन्न हुआ ‘सप्तशक्ति संगम’
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फुलवारीशरीफ, 11 अक्टूबर 2025, शनिवार
फुलवारीशरीफ स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के प्रांगण में आज भव्य ‘सप्तशक्ति संगम’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम मातृशक्ति के अंतर्मन में निहित सात आध्यात्मिक और सामाजिक शक्तियों को जागृत करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक विधि से दीप प्रज्वलन, वंदे मातरम् और सरस्वती वंदना के साथ हुआ।
दीप प्रज्वलन का कार्य मुख्य अतिथि डॉ. ऋचा दुबे दीदी, राष्ट्र सेविका समिति की संयोजिका श्रीमती उर्मिला कुमारी, पुष्पांजलि दीदी, रंजू श्रीवास्तव एवं कुमारी रचना सोनी के कर-कमलों द्वारा किया गया। दीप प्रज्वलन के पश्चात कार्यक्रम का संचालन तथा स्वागत भाषण विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती सुसुम यादव ने दिया।
✦ नारी के सात स्वरूपों का स्मरण

कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने श्रीमद् भागवत गीता के दसवें अध्याय के 34वें श्लोक का उल्लेख करते हुए बताया कि नारी के भीतर सात शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं — ममता, करुणा, श्रद्धा, धैर्य, विवेक, शक्ति और प्रेम। यही शक्तियाँ उसे सृजन, संरक्षण और परिवर्तन का आधार बनाती हैं।
मुख्य अतिथि डॉ. ऋचा दुबे ने कहा कि —
“नारी केवल परिवार की आधारशिला नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है। यदि उसकी आंतरिक शक्तियाँ जाग्रत हो जाएँ, तो समाज का हर क्षेत्र नई दिशा प्राप्त कर सकता है।”
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान समय में नारी का कार्य केवल गृह व्यवस्था तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि वह शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, प्रशासन और समाजसेवा के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है।

✦ कार्यक्रम का उद्देश्य और विमर्श
इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य मातृशक्ति को उसकी अंतरनिहित शक्तियों से परिचित कराना और उनमें आत्मविश्वास तथा नेतृत्व क्षमता का विकास करना था। राष्ट्र सेविका समिति की संयोजिका श्रीमती उर्मिला कुमारी ने कहा —
“भारतीय संस्कृति में ‘नारी’ को शक्ति का प्रतीक माना गया है। जब नारी अपने भीतर की सातों शक्तियों को पहचानकर उन्हें राष्ट्र के कार्य में लगाती है, तभी सच्चे अर्थों में रामराज्य की स्थापना होती है।”
कार्यक्रम में “भारतीय दृष्टिकोण में परिवार और कुटुंब प्रबोधन”, “भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका” एवं “नारी : सृजन और संस्कार की प्रतीक” जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने बताया कि भारतीय परंपरा में स्त्री को केवल गृहिणी नहीं, बल्कि ‘गृहलक्ष्मी’, ‘अन्नपूर्णा’ और ‘सरस्वती’ का रूप माना गया है।
✦ प्रेरणादायी प्रस्तुतियाँ
कार्यक्रम के दौरान छात्राओं एवं सेविकाओं ने मातृशक्ति की महिमा पर आधारित नृत्य, गीत और नाटक प्रस्तुत किए, जिनमें “जय देवी जय देवी महिषासुरमर्दिनी” और “नारी तू नारायणी” जैसी प्रस्तुतियों ने वातावरण को भक्ति और गर्व से ओतप्रोत कर दिया।
इन प्रस्तुतियों ने यह संदेश दिया कि जब नारी अपने भीतर की शक्ति को पहचानती है, तो वह केवल घर ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी नई दिशा दे सकती है।
✦ राष्ट्रनिर्माण में नारी की भूमिका
अंतिम सत्र में ‘प्रेरणादायी माता के ध्येय वाक्य’ के माध्यम से यह प्रेरणा दी गई कि प्रत्येक महिला को अपने भीतर की सातों शक्तियों को पहचानकर समाज के कल्याण और राष्ट्रनिर्माण में योगदान देना चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि मातृशक्ति का जागरण केवल एक सांस्कृतिक या धार्मिक पहल नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकता है।
✦ सहभागिता और समापन
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यालय परिवार, राष्ट्र सेविका समिति की कार्यकर्त्री बहनें, शिक्षिकाएँ, छात्राएँ और स्थानीय समाजसेवी महिलाएँ उपस्थित रहीं।
अंत में विद्यालय परिवार की ओर से सभी अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ और सभी ने एक स्वर में यह संकल्प लिया कि —
“हम अपनी मातृशक्ति को जागृत कर भारत को विश्वगुरु बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएँगे।”
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