"सूने त्योहारों की पाती"
पंकज शर्माप्रियतम, रणभूमि में दूर...
मेरा चित्त तो सदा ही वहाँ, जहाँ पग आपके बढ़े,
यहाँ घर में सब कुशल है, चिन्ता न करो क्षण भर भी।
बच्चों के मुख पर अब भी वही निर्मल हँसी है,
हाँ, बस उनके प्रश्नों में कभी-कभी आपकी कमी है।
खेतों में भी अब नई फसल की आस बंधी है,
पर आपके बिना, हर सुख-दुख की रात लंबी है।
रात्रि के पहरों में, जब दीपक भी मंद होता है,
आपकी स्मृति का नीरव स्पर्श, मन को छूता है।
चौखट पर जब आँखें ढूंढती हैं आपकी परछाईं,
तब इस विरह ग्रस्त हृदय में एक कसक उठ आती है।
वीर पत्नी हूँ, गर्व है मुझको आपकी शौर्यगाथा पर,
पर एकांत में ये पलकें आपकी राह ही तकती हैं।
आपकी अनब्याही बहना भी, हर रोज राह निहारे,
कब भाई आएगा, उसके हाथों में मेंहदी सँवारे।
पिताजी की आँखें भी अंधेरी हो चली हैं,
और माँ की प्रार्थनाएँ, पूजा में ढल चली हैं।
उनकी कमज़ोर आवाज़ों में भी आपकी ही पुकार है,
घर के हर सदस्य को आपका ही इंतज़ार है।
सूनी है होली, बिन आपके रंग कहाँ खिलते हैं,
रक्षाबंधन पर भी ये हाथ अब आँसू ही लिखते हैं।
करवा चौथ की थाली में, ये चाँद भी फीका है,
और दिवाली के दीपों में भी अंधेरा दीखा है।
हर उत्सव, हर पर्व, आपके बिना अधूरा है,
जल्दी आओ, क्योंकि ये जीवन भी अब सूना है।
प्रतीक्षा का हर पल युग सा बीतता है प्रियतम,
कब वो दिन आएगा जब घर की हर दिशा रोशन हो।
मेरी हर साँस में आपकी दीर्घायु की कामना है,
आप सुरक्षित लौटें, यही सबसे बड़ी साधना है।
यह पत्र नहीं, मेरी आत्मा की एक पुकार है,
जल्द आओ, क्योंकि आपका रिक्त स्थान असह्य है।
. स्वरचित, मौलिक एवं पूर्व प्रकाशित
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