आशा की किरण
निराशा रूपी तिमिर मिटा दे ,मन के संशय को तू भगा दे ,
मिल जाए मिटते को जीवन ,
मन आशा की किरण जगा दे ।
चलते रहो तुम हारो नहीं ,
चलते मन को तुम मारो नहीं ,
बस मन की धारा को मोड़ दो ,
बस उल्टी बहती धारा तोड़ दो ।
आशा कभी भी मरने न पाए ,
किरणों के दाग मिटने न पाए ,
बेहोशी को भी होश में लाओ ,
भूले भटके भी पथ अपनाए ।
मानव मानव एक हो जाओ ,
मानव हो मानवता दिखाओ ,
मानव बेपथ नहीं होने पाए ,
गिरे को आगे बढ़कर उठाओ ।
मानव मन को तुम मान दो ,
मानव जाति को सम्मान दो ,
मानव को मानव समझे मानव ,
मानव मानव में अरमान दो ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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