अहिंसा के स्वरूप
रचनाकार ---- डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
न रखो खुद उच्च शिखर का ताव,
न किसी को नीच कहने का भाव।
हर मन को अभिव्यक्ति का हक़,
छीनना, हिंसक बनने का शक।
विवेकपूर्ण हो वाणी भी,
नीति से बँधी कहानी भी।
गरिमा से सब विचार कहे,
न किसी का कटु शब्द सहे।
विचारों का हो आदर भाव,
हो न किसी के मन में घाव।
सुनो सभी की मन की बात,
करो ना किसी पर आघात।
प्राण बचाना ही काफी नहीं,
है दया भाव का महीमा यहीं।
हृदय की चोट भी गहरी होती,
शब्दों के बौछार से जंगें होतीं।
अपनी इच्छा कहने का हक़,
हर मनुज को मिले सदा तक।
कर्म मिले या न मिले सही,
लिखा जाता विचारों पर बही।
शस्त्र त्याग अहिंसा नहीं,
वाणी में भी हो शांति वहीं।
विचारों में हो वही मधुरता,
व्यवहार में जो करुणा भरता।
तुच्छ भावना हो आदृत यहाँ,
ईश्वर अवतरित हुए थे जहां।
यही है सच्चा अहिंसा का पथ,
दौड़ाओ उस पर जीवन का रथ।
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