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खुश तो बड़े होंगे तुम

खुश तो बड़े होंगे तुम

 डॉ मुकेश असीमित
कहो जी डॉक्टर साहब कैसे हैं? आज तो बड़े खुश नजर आ रहे हो, शहर में बारिश अच्छी हो गई है। ओपीडी में एक मरीज को देखने में व्यस्त था कि अचानक एक दूर के साले साहब चैम्बर में आ धमके। वैसे साला दूर का हो या पास का, साला ही होता है, और उसे जीजा का जब चाहे माथा खाने के लिए उसके घर आ जाने का अधिकार होता है। जो कुछ थोड़ा-सा भेजा उसकी बहन ने छोड़ा है, उसे लगातार खाते रहना भी उसका हक़ है।

खैर, मुझे मरीज को बीच में ही रोकना पड़ा। साले साहब मेरे चेहरे पर कुछ खुशी ढूंढ रहे थे। मैंने कहा, “हाँ, खुशी की तो बात है, बारिश सभी के लिए फायदेमंद है। किसानों के चेहरे खिल जाते हैं, उनकी बुवाई शुरू हो जाती है। अगर बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हो जाती है, तो मुआवजा देने वाले विभागों के चेहरे भी खिल जाते हैं। सरकारी विभाग किसानों के लिए राहत पैकेज तैयार रखते हैं और बस इंतजार करते हैं कि या तो अतिवृष्टि हो जाए या फिर बिलकुल न बरसे। यह बीच की स्थिति उन्हें नागवार गुजरती है। बाढ़ आएगी, तो पार्टियाँ चिंतित होंगी, अखबार वालों को खबर मिलेगी, मीडिया वालों को मुर्गा लड़ाई वाली डिबेट मिलेगी। बाढ़ और अतिवृष्टि के लाइव टेलीकास्ट टीआरपी बढ़ाते हैं, पार्टियों को एक-दूसरे को गरियाने का मौका मिलता है। बारिश आने पर नगर परिषद की सफाई व्यवस्था की पोल खुलती है, नालियां खुशी के मारे उफन जाती हैं, सड़क के गड्ढे अपने फुल यौवन में आकर इठलाते हैं, और राह चलते दोपहिया व चौपहिया वाहनों को कीचड़ के रंग में रंगकर हर्षाते हैं, छपाक की आवाज़ का आनंद देते हैं।

बारिश आने पर पार्टियों का भी अलग ही मज़ा है। पतियों को मौसम का बहाना बनाकर कुछ तले हुए पकोड़े और चाय का स्वाद मिलता है। कोयल कूकती है, कुछ तथाकथित शास्त्रीय संगीत के तानसेन राग मल्हार में फिल्मी धुन मिलाकर तान छेड़ते हैं, बरसाती मेंढक टर्र-टर्र करने लगते हैं। अपने शहर में देखो न... वैसे तो एक भी वाटरपार्क नहीं है, लेकिन बरसात के आते ही शहर वाटरपूल जैसा नजर आता है, जिसमें नागरिक तैर सकते हैं, डूब सकते हैं, जल-क्रीड़ा कर सकते हैं। दुकान के सामने लगे फट्टे जल-क्रीड़ा करने वालों के लिए ट्यूब जैसे लगे हैं। सरकार चाहे तो इस पानी के निकास को रोककर इसे प्राकृतिक जल संसाधन में तब्दील कर दे। मछली पालन का एक बड़ा केंद्र शहर में विकसित हो सकता है। लोग अपने घर के सामने के तालाब में मछली पाल सकते हैं, और ऊपर छत पर बैठकर फिशिंग का मजा ले सकते हैं। फिर क्या, सरकार के नेताओं का हेलिकॉप्टर द्वारा फूड के पैकेट गिराया जाएगा, जिन्हें नीचे लपकते हुए बच्चे सच पूछो तो क्रिकेट में भी निपुण कर देगा। न्यूज़ चैनल वाले भी ऐसे सीन के लिए तरसते रहते हैं। अखबार की हेडलाइन के लिए कुछ कैची शॉट होने चाहिए। लेखकों की लेखनी भी बरसात की बूँद पड़ते ही घिसकर शार्प हो जाती है और खूब चलती है। बरसात में भीगी हुई शोधार्थी कन्या के यौवन का वर्णन रीतिकाल के कवियों की रोज़ी-रोटी है।

कौन खुश नहीं है? लेकिन तुम ये बताओ, तुम्हें मुझ में ही खुशी क्यों दिखी? साले साहब तपाक से बोले, "अरे आप हड्डी के डॉक्टर हो ना? बरसात में आपका धंधा कितना शानदार चलता है। लोग बरसात में फिसलते हैं, गड्ढे वैसे ही सड़कों पर आपके लिए बने हैं। नाले का कचरा साफ नहीं है, जो आपके लिए खासा फिसलन पैदा करता है। सब्जी मंडी में देखो, कितना कीचड़ जमता है। मंदिरों में इसके लिए विशेष मार्बल लगाया है, जो दर्शन करने आए बूढ़ी हड्डियों को बरसात में साक्षात प्रभु दर्शन कराने के लिए ही बना है। सब्जी मंडी में रही-सही कसर गोदाम पूरी कर देते हैं। कुल मिलाकर आपकी तो चांदी ही चांदी है।"

मुझे लगा, बात तो सही है। शायद भगवान बारिश सिर्फ और सिर्फ हम हड्डी जोड़ डॉक्टरों की रोज़ी-रोटी के जुगाड़ के लिए ही करता है। वरना इस संसार में बारिश की जरूरत ही किसे है? मैं भी खामख्वाह इतना ज्ञान पिलाकर उस ज्ञानी साले को लपेट रहा था।
रचनाकार – डॉ मुकेश असीमित
पता गंगापुर सिटी राजस्थान
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