शरद पूर्णिमा एवं कोजागर व्रत : आयुर्वेद, ज्योतिष और सांस्कृतिक समृद्धि का पर्व

डॉ राघव नाथ झा
भारतवर्ष पर्व एवं उत्सवों का देश है। यहां की सांस्कृतिक समृद्धि वर्षपर्यन्त चलने वाले व्रत, पर्व, उत्सव एवं त्योहारों से अनुप्राणित है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, जिसे भारतीय हिंदू परंपरा में कोजागरी, रासपूर्णिमा, शरद पूर्णिमा आदि नामों से जाना जाता है, अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ज्योतिष, आयुर्वेद और धार्मिक-पौराणिक दृष्टि से यह रात्रि मानव जीवन में स्वास्थ्य, धन और संतान सुख का संपूर्ण वरदान लेकर आती है। इस दिव्य रात्रि को चंद्रमा अपनी पूर्णावस्था में सोलह कलाओं से युक्त होकर अमृत तत्त्व की वर्षा करता है, जिससे सम्पूर्ण पृथ्वी अभिसिंचित होती है। इसी दिन माँ लक्ष्मी का अवतरण दिवस भी माना गया है।
मान्यता है कि इस रात्रि में माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए पूछती हैं — “को जाग्रयेति?” अर्थात् “कौन जाग रहा है?”। जो व्यक्ति इस रात्रि में जागरण, भजन-कीर्तन एवं लक्ष्मी-विष्णु पूजा में संलग्न रहते हैं, उन पर माँ लक्ष्मी विशेष कृपा करती हैं। इसी कारण इस पर्व को कोजागर व्रत या कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है।
पूर्णिमा का ज्योतिषीय महत्व
वर्ष की बारह पूर्णिमाओं में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा का विशेष स्थान है। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण स्वरूप में अमृतमयी रश्मियों का पृथ्वी पर विशेष प्रभाव उत्पन्न करता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा कर खीर का भोग लगाया जाता है। रात में इस खीर को खुले आकाश के नीचे रखा जाता है ताकि वह चंद्र रश्मियों से संपृक्त होकर औषधीय गुणों से युक्त हो जाए। इसे ग्रहण करने से रोग, कष्ट और मानसिक क्लेश दूर होते हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा में सूर्य और चंद्रमा को अग्नि और सोम का प्रतीक माना गया है। अग्नि रूपी सूर्य और सोम रूपी चंद्रमा के सम्मिलन से ही सृष्टि की समग्रता बनी रहती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद में चंद्रमा की किरणों को प्राणदायिनी और रोगनाशक बताया गया है। इस रात्रि में चंद्रमा की किरणों का सेवन करने से शरीर में शीतलता, मानसिक शांति और रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है। कई औषधियां भी इसी रात में चंद्र रश्मियों के प्रभाव से अधिक गुणवान बनती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से यह रात अत्यंत लाभकारी मानी जाती है।
पर्यावरणीय शुद्धता और रश्मियों का प्रभाव
आश्विन मास के पूर्व वर्षा ऋतु समाप्त हो जाने के कारण आकाश पूर्णतया स्वच्छ रहता है। इससे चंद्रमा की रश्मियां बिना किसी अवरोध के पृथ्वी पर गिरती हैं। इन्हीं रश्मियों के अमृतमय प्रभाव के कारण चंद्रमा को अमृतराम और सुधाकर कहा गया है।
खगोलीय भूमिका
चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से ही अपनी किरणें प्राप्त करता है। सूर्य की सात रश्मियों में सुषुम्ना नामक रश्मि का प्रभाव चंद्रमा पर सर्वाधिक होता है, जो जीवनदायिनी मानी गई है। आश्विन पूर्णिमा को जब चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओं सहित निर्मल आकाश में उदित होता है, तब उसका प्रकाश पृथ्वी पर अमृत के समान प्रभाव उत्पन्न करता है।
शरद पूर्णिमा 2025 का विशेष योग
वर्ष 2025 में शरद पूर्णिमा एवं कोजागर व्रत 6 अक्टूबर, सोमवार की रात्रि को मनाया जाएगा। इसका प्रारंभ 6 अक्टूबर दोपहर 11:26 बजे से होगा और समाप्ति 7 अक्टूबर सुबह 9:34 बजे होगी। सोमवार के संयोग से यह पूर्णिमा और भी शुभ एवं फलदायी मानी जा रही है।
यह रात्रि केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, ज्योतिषीय संतुलन और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है — जहाँ आकाश में अमृत की वर्षा होती है और पृथ्वी पर श्रद्धा, शांति और समृद्धि का प्रकाश फैलता है।
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