"राजनीति के दलदल में..."
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"*""""""""""""""""""""""""""""""""""""“""*
राजनीति के दलदल में फूल खिलाना होगा,
छवि हो स्वच्छ उस नेता को जिताना होगा।
शहर-गाँव को जो समझे एक संसार,
उस मिट्टी की लाल को जिताओ बारंबार।
न हो लोभ, न झूठ, न हो कोई धोखा,
जनसेवा हो उद्देश्य, न कोई मौका।
जो वादों से पहले कर्म दिखाए,
सत्ता का नहीं, जनता का गीत गाए।
न जाति की बात हो, न धर्म का झगड़ा,
विकास की धारा में, न करे कोई रगड़ा।
जो सुन सके सर्व जन की पुकार,
हरिजन-बड़जन को एक परिवार।
जिसके हाथों में हो ईमान की मशाल,
न हो घोटालों की छाया, न कोई दलाल।
जो संसद को मंदिर समझे दिल से,
और जनता को देवता माने हर पल से।
अब वक़्त है पास में, बदलाव लाना होगा,
हर एक वोट से अपना सपना सजाना होगा।
राजनीति के दलदल में फूल खिलाना होगा,
छवि हो स्वच्छ उस नेता को जिताना होगा।
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