अपनापन और उपयोग
जय प्रकाश कुवंरअपनापन मर रहा है,
उपयोग बढ़ रहा है।
मानव समुदाय अब,
नया इतिहास गढ़ रहा है।।
कोई भी अपने मतलब का,
भरपूर इस्तेमाल कर रहा है।
हामी भरो तो रिश्ता है,
ना में रिश्ता मर रहा है।।
अपनापन कोई सौदा नहीं है,
जो मतलब से तौला जाये।
अपनापन तो वह है,
जो सुख दुख में साथ निभाये।।
बाप तब तक बाप है,
जब तक वह देता रहे।
पति तब तक पति है,
जब तक हर इच्छा पूर्ति करता रहे।।
यह उपयोग करते रहने का,
सिलसिला जारी है।
मतलब सधाते रहने की,
हर जगह तैयारी है।।
मतलब के आगे अब,
हर रिश्ता मर गया है।
अपनापन के सामने अब,
केवल उपयोग सिर पर चढ़ गया है।।
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