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चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर,

चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर,अमृत वर्षा करने को

षोडश कला सोम छवि,
अनूप कांतिमय श्रृंगार ।
स्नेहिल मोहक सौंदर्य,
अंतर सुरभिमय आगार ।
धरा रज रज भावविभोर,
तृषा तृप्ति कलश भरने को ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर,अमृत वर्षा करने को ।।


पटाक्षेप काम क्रोध द्वेष,
शीतलता सरित प्रवाह ।
परम बेला समुद्र मंथन,
मां लक्ष्मी अवतरण गवाह ।
कामनाएं अति उद्वेलित,
परिपूर्णता संग रमने को ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर,अमृत वर्षा करने को ।।


दिव्यता शीर्ष स्पर्शन,
कौमुदी व्रत साधना ।
श्री कृष्ण महारास काल,
फलीभूत संकल्प उपासना ।
सोम प्रभा परणय तत्पर,
मेह बन नेह झरने को ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर, अमृत वर्षा करने को ।।


कोजागरी रास पूनम,
अन्य शुभ संबोधन ।
कृपा सुख समृद्धि वैभव ,
दुःख कष्ट पीड़ा रोधन ।
चंद्र धरा समीपस्थ योग,
प्रीति पार उतरने को ।
चारु चंद्र की चंचल किरणें आतुर,अमृत वर्षा करने को ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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