त्रिविध यात्रा : विज्ञान, अध्यात्म और तकनीक
रचना ---डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
जहाँ चेतना हो, करुणा का स्पर्श,
कौशल में हो संयम का उत्कर्ष,
वहीं रचता है युग नवयुगीन,
जहाँ मानव हो और हो मुनिन।
विज्ञान कहे — “तारों की कथा,
गति, ऊर्जा, कणों की व्यथा।
क्यों गिरता पत्ता? क्यों चमके नक्षत्र?”
वह पूछे “कैसे?”, करे जग में प्रकट।
अध्यात्म बोले — “मैं कौन हूँ स्वयं?”
न प्रयोग, न यंत्र, बस मौन का क्रम।
ध्यान की गहराई, श्वासों की थाह,
प्रेम की भाषा, न बोले न चाह।
तकनीक बने वह सेतु महान,
जो जोड़ दे दोनों का गूढ़ विधान।
चाँद की मिट्टी, मन की मौनता,
बटन दबे और बहे ध्यान-गाथा।
विज्ञान है जब विवेकपूर्ण मौन,
तो वह स्वयं बन जाए ज्ञान का कोना।
और जब अध्यात्म को तर्क छुए,
तो वह भी तर्कशास्त्र में ढले।
त्रिमूर्ति यह — चेतना, विज्ञान, ध्यान,
नवसंस्कृति की रचती पहचान।
इन तीनों में छिपा वह सत्य अपार,
जो ले चले मानव को पारावार।
न कोई विरोध, न कोई द्वंद्व,
सभी में बसे हैं एक ही तत्त्व।
जहाँ मिलें यह तीन प्रवाह,
वहीं खिले नवयुग का प्रवाह।
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