"मौन का आश्रय"
पंकज शर्माअपनी अहमियत का शोर क्यों मचाना?
हृदय के आकाश में
कुछ नक्षत्र स्वयं ही झिलमिलाते हैं,
कुछ चिरकाल तक धुंध में ढके रह जाते हैं।
जहाँ स्नेह की झिलमिल आँच न बहे,
वहाँ ठहरना बोझिल स्वप्न है।
क्यों叩ाएँ उन द्वारों को,
जो भीतर से ही अंधकार में बंद हैं?
मौन ही श्रेष्ठ है—
जैसे लहर तट से टकराकर
निःशब्द लौट जाए,
केवल प्रतिध्वनि छोड़कर।
सच्चा आसरा वही है
जहाँ हृदय बिना कहे खुल जाए,
जहाँ उपस्थिति
सुगंध की तरह स्वतः फैल जाए।
क्योंकि प्रेम याचना नहीं—
वह तो अनजानी सरगंध है,
जो निस्संग क्षणों में
अचानक मन को भिगो देती है।
जो हमें ठुकराते हैं,
वे भी अपनी यात्राओं के मुसाफ़िर हैं;
हम क्यों अपनी आत्मा की ध्वनि
उनकी दीवारों में कैद करें?
जीवन पथ पर अनगिन द्वार हैं—
शायद किसी एक उपवन में
हमारी धड़कन
अपना चिर-अभिलषित आश्रय पा ले।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com