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"मौन का आश्रय"

"मौन का आश्रय"

पंकज शर्मा

अपनी अहमियत का शोर क्यों मचाना?
हृदय के आकाश में
कुछ नक्षत्र स्वयं ही झिलमिलाते हैं,
कुछ चिरकाल तक धुंध में ढके रह जाते हैं।


जहाँ स्नेह की झिलमिल आँच न बहे,
वहाँ ठहरना बोझिल स्वप्न है।
क्यों叩ाएँ उन द्वारों को,
जो भीतर से ही अंधकार में बंद हैं?


मौन ही श्रेष्ठ है—
जैसे लहर तट से टकराकर
निःशब्द लौट जाए,
केवल प्रतिध्वनि छोड़कर।


सच्चा आसरा वही है
जहाँ हृदय बिना कहे खुल जाए,
जहाँ उपस्थिति
सुगंध की तरह स्वतः फैल जाए।


क्योंकि प्रेम याचना नहीं—
वह तो अनजानी सरगंध है,
जो निस्संग क्षणों में
अचानक मन को भिगो देती है।


जो हमें ठुकराते हैं,
वे भी अपनी यात्राओं के मुसाफ़िर हैं;
हम क्यों अपनी आत्मा की ध्वनि
उनकी दीवारों में कैद करें?


जीवन पथ पर अनगिन द्वार हैं—
शायद किसी एक उपवन में
हमारी धड़कन
अपना चिर-अभिलषित आश्रय पा ले।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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