वामपंथियों
जाने किस मिट्टी के बने होजिस देश में रहते हो
जहाँ का अन्न खाते हो
उससे वफा नही
आतंकियों के मित्र बने हो।
कहाँ थी तुम्हारी लेखनी
जज्बा कहाँ मर गया था
जब आतंकियों के हाथों
निर्दोष सैनिक मर गया था?
आतंक के मसीहाओं ने
कितने नागरिकों की जान ली
कितना समाज को नुकसान पहुँचाया
कितनी अस्मतें लूटी
कितनों को यतीम- बेवा बनाया।
मगर तुम्हें उस सब से क्या?
तुम तो वामपंथी हो
धर्म कर्म से दूर
रिश्तों के बन्धन से मुक्त
अपने आकाओं की कठपुतली मात्र
न्याय दिलाने के नाम पर
नक्सलवाद के पोषक
संवेदना शून्य रोबोट मात्र।
देश झेल रहा है आतंक का प्रहार
आजादी से आज तक
कुछ विदेशी ताकतों द्वारा
तो कभी अपनों से ही।
कोई कुछ नही बोला
जानते हैं क्यों
सध रहे थे सबके हित
मुफ्त विदेशी दौरै
कुछ सरकारी संस्थानों में
मनोनीत सदस्य।
छिनने लगा
इस राजा के काल में वह सब
जो मिल रहा था मुफ्त में।
क्या यही पीडा नही है
विचारों के भंवर में फँसे
महान साहित्यकार वामपंथियों की?
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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