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सगर कुल दशरथ व्यथित,

सगर कुल दशरथ व्यथित,


अ कीर्ति वर्द्धन
सगर कुल दशरथ व्यथित, कैसे कुल चल पायेगा,
तीन शादियाँ करके भी, दशरथ निःसंतान रह जायेगा?
मन की पीड़ा बहुत घनी, गुरू वशिष्ठ को बतलाया,
गुरूजनों ने सन्तान सुख उपाय, यज्ञ कराया जायेगा।


उचित समय पर चार पुत्र, दशरथ के घर में आये,
अयोध्या में उत्सव भारी, जन जन जिससे हर्षाये।
राम लखन भरत शत्रुघ्न, किलकारी भर खेल रहे,
कौशल्या कैकेयी सुमित्रा, जन जन के मन भाये।


शिक्षा की ख़ातिर चारों ने, आश्रम प्रस्थान किया,
खेल खेल में राक्षस मारे, रोशन कुल नाम किया।
रचा स्वयंबर राजा जनक ने, विवाह हेतु सीता के,
अयोध्या को निमंत्रण, मुनियों का आह्वान किया।


विश्वामित्र संग चारों कुमार, जनक पुरी में आये हैं,
देख कर सुन्दर रूप, जनकपुर वासी इठलाये हैं।
गुरू आज्ञा से शीश नवा, धनुष राम ने तोड़ दिया,
सीता ने वर माला पहनाई, राम सभी को भाये हैं।


राम जन्म के निहितार्थ , कौन समझ पाया था,
कैकेयी की बुद्धि बदलने, समय स्वयं आया था।
माँग लिया वनवास राम को, राज भारत को चाहा,
दशरथ ने प्राण त्यागे, वचनों को न बिसराया था।


सीता और लक्ष्मण ने भी, संग वन में प्रस्थान किया,
दुष्टों के संधान हेतु, वन वासियों का आह्वान किया।
इसी बीच छली रावण ने, माँ सीता का हरण किया,
विद्वान ब्राह्मण कुल का, ब्राह्मणत्व का क्षरण किया।


वानर दल का साथ मिला, सीता की खोज हुई जारी,
हनुमान समर्पित राम को, खोजने की ली ज़िम्मेदारी।
जला दी अहंकार की लंका, राम की सामर्थ्य बताई,
अशोक वाटिका व्यथित सीता को, बतलायी तैयारी।


नल नील जामवन्त ने मिलकर, सेतु निर्माण किया,
अंगद ने पैर जमाकर, रावण का मर्दन मान किया।
मानवता की रक्षा हेतु, पशु पक्षी भी आये साथ,
गिलहरी के सेवा भाव, सबका मन पुलकित किया।


सामूहिक प्रयासों से, रावण कुल का नाश हुआ,
राजतिलक विभीषण का, लंका में राम राज हुआ।
सुग्रीव चले किष्कंधा पर्वत, हनुमान राम की सेवा,
बालि पुत्र अंगद का, युवराज अभिषेक हुआ।


पुष्पक में राम लखन सीता, हनुमान सबसे आगे,
चौदह वर्ष अवधि पूर्ण, अयोध्या के भाग्य जागे।
चहूँ और उत्सव भारी, अयोध्या मे मनी दीवाली,
राम का अभिषेक हुआ, अयोध्या के दुर्दिन भागे।

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