नरक चतुर्दशी: अंधकार पर प्रकाश और पाप पर पुण्य की विजय
सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म की दीप संस्कृति का में नरक चतुर्दशी, 'नरक चौदस', 'रूप चतुर्दशी' और 'छोटी दीपावली' के नाम से जाना जाता है, सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। पांच दिवसीय दीपावली महोत्सव का यह दूसरा दिन है और इसका धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। यह दिन केवल दीपों के उत्सव के रूप में नहीं मनाया जाता, बल्कि यह हमें जीवन में अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और नरक के कष्टों से मुक्ति के मार्ग को दिखाता है। इस पर्व के साथ कई पौराणिक कथाएँ, मान्यताएँ और विशिष्ट अनुष्ठान जुड़े हुए हैं, जो इसे भारतीय संस्कृति में एक अनूठा स्थान प्रदान करते हैं। नरक चतुर्दशी/नरक चौदस: यह नाम भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर नामक अत्याचारी राक्षस का वध करने की पौराणिक कथा से जुड़ा है। इसका शाब्दिक अर्थ है नरक से मुक्ति दिलाने वाली चतुर्दशी। छोटी दीपावली: यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह दीपावली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन भी दीपावली की ही तरह घरों में दीये जलाकर उजाला किया जाता है, जो आने वाले बड़े पर्व की तैयारी और उसकी झलक प्रस्तुत करता है।
रूप चतुर्दशी/रूप चौदस दिन अभ्यंग स्नान तेल और उबटन लगाकर स्नान) करने की प्रथा है, जिससे व्यक्ति को सौंदर्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है, इसीलिए इसे 'रूप चतुर्दशी' भी कहते हैं।पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में इस दिन मां काली की पूजा की जाती है, जिन्हें बुरी शक्तियों और संकटों का नाश करने वाली देवी माना जाता है।
नरकासुर : वराह पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार वराह और भूदेवी के पुत्र असुर संस्कृति के पोषक एवं प्राग्ज्योतिषपुर वर्तमान में असम के गौहाटी क्षेत्र का राजा नरकासुर अत्यंत क्रूर और दुराचारी था। उसने अपनी आसुरी शक्ति से देवताओं और मनुष्यों को आतंकित कर रखा था। उसने सोलह सहस्र एक सौ कन्याओं (16,100 राजकुमारियों) को बंदी बनाकर अपने कारागार में डाल दिया था। उसकी क्रूरता से त्रस्त होकर, देवता और ऋषि-मुनि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया और सभी बंदी कन्याओं को मुक्त कराया। नरकासुर के अत्याचार से मुक्ति मिलने की खुशी में, उस दिन लोगों ने घरों में दीये जलाए। तभी से यह पर्व बुराई पर अच्छाई और अत्याचार पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी कन्याओं को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
राजा रन्तिदेव - सतयुग एवं त्रेतायुग के संधिकाल में चंबल नदी क्षेत्र का चर्मण्यवती का राजा भरत वंशीय धर्मात्मा राजा रन्तिदेव द्वारा किए गए यज्ञ के दौरान पशुओं की रक्त से नदी चंबल उत्पन्न हुई थी । राजा रंतिदेव ने कोई पाप नहीं किया था। फिर भी जब उनकी मृत्यु का समय आया, तो यमदूत उन्हें लेने आ पहुँचे। राजा ने यमदूतों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि एक बार राजा के द्वार से एक भूखा ब्राह्मण बिना भोजन किए लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है जिसके कारण उन्हें नरक जाना पड़ेगा। राजा ने यमदूतों से एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों के पास जाकर अपने पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषियों ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे क्षमा याचना करने का विधान बताया। राजा ने ऋषियों के निर्देशानुसार व्रत का पालन किया, जिससे वे पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक प्राप्त हुआ। तभी से यह मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
3यमराज और दीपदान की प्रथा: नरक चतुर्दशी पर संध्या के समय भगवान सूर्य की भर्या माता संज्ञा के पुत्र 'यमराज' के लिए दीपदान करने की प्रथा है। यह दीपदान अकाल मृत्यु और दुर्भाग्य से रक्षा के लिए किया जाता है। माना जाता है कि यम के निमित्त दीया जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जलाकर पूरे घर में घुमाकर उसे घर से दूर बाहर रखकर आता है। यह दीपक यम का दीया कहलाता है।4
. रूप चतुर्दशी और अभ्यंग स्नान: इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर, शरीर पर तेल और उबटन लगाकर और अपामार्ग यानी चिचड़ी की पत्तियाँ जल में डालकर) स्नान करने का विशेष महत्व है, जिसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार स्नान करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होता है और उसे नरक से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, यह स्नान रूप और सौंदर्य प्रदान करने वाला माना जाता है, इसलिए इसे 'रूप चौदस' भी कहा जाता है। स्नान के बाद भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण मंदिर में दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।अभ्यंग स्नान: सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल और उबटन लगाकर स्नान करना। यह इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
: स्नान के पश्चात, यमराज के नाम का तर्पण किया जाता है। इसके लिए तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है।
संध्या के समय घर के हर कोने को प्रकाशित करने के लिए दीये जलाए जाते हैं। विशेष रूप से, यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। यह दीपक मुख्य द्वार पर, तुलसी के पास, या घर के बाहर अंधेरे कोने में रखा जाता है। इस पर्व का एक उद्देश्य घर और आसपास की स्वच्छता भी है। दीपावली से पहले लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर निकालकर फेंकते हैं, जो नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है।भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है, वहीं बंगाल जैसे क्षेत्रों में रात्रि के समय मां काली की विशेष पूजा की जाती है।
नरक चतुर्दशी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में कितनी भी बुराई या अंधकार क्यों न हो, सत्य, धर्म और साहस से हम उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यह नरक के भय से मुक्ति, पापों के क्षय और पुण्य की प्राप्ति का दिन है। यह पर्व दीपों की रोशनी से न केवल हमारे घर को प्रकाशित करता है, बल्कि हमारे मन के अंधकार को दूर कर हमें सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। छोटी दीपावली का यह त्यौहार असल में बड़े उत्सव की शुरुआत है, जो हमें धार्मिक आस्था, स्वच्छता, सौंदर्य और यमराज के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर देता है। यह भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का प्रतीक है, जहाँ हर पर्व अपने साथ आध्यात्मिक उत्थान और सामाजिक समरसता का संदेश लेकर आता है।
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