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पानसरे हत्याकांड में निष्पाप हिंदुत्वनिष्ठ डॉ. तावडे, अमोल काले व शरद कळसकर को जमानत!

पानसरे हत्याकांड में निष्पाप हिंदुत्वनिष्ठ डॉ. तावडे, अमोल काले व शरद कळसकर को जमानत!

  • सनातन संस्था का सवाल -निरपराध हिंदुत्वनिष्ठों की साढ़े नौ वर्षों की भरपाई कौन करेगा?

कोल्हापूर - कॉमरेड गोविंद पानसरे हत्याकांड में हिंदुत्वनिष्ठ डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे, श्री अमोल काले और श्री शरद कळसकर को मुंबई उच्च न्यायालय की कोल्हापुर खंडपीठ ने जमानत प्रदान की है। न्यायमूर्ति शिवकुमार डिगे द्वारा दिए गए इस निर्णय से तब से 9 वर्ष 6 महीने की दीर्घ न्यायिक लड़ाई के बाद डॉ. तावडे की रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

इस पृष्ठभूमि में सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री अभय वर्तक ने कहा, “इससे पहले कोल्हापुर बार काउंसिल का बचाव पक्ष को वकील देने से इनकार करना और अब कम्युनिस्टो द्वारा जमानत रद्द कराने के लिए दबाव बनाना, कुल मिलाकर आधुनिकतावादी और कम्युनिस्ट ‘दबाव समूहों’ के कारण निरपराधों का जीवन किस प्रकार उजाड़ा जाता है, यह स्पष्ट होता है। एक ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ ईएनटी सर्जन डॉक्टर को 9 वर्ष जेल में रहना पड़ता है, यह इसका हृदयविदारक उदाहरण है। इन सबके जीवन के व्यर्थ गए अमूल्य वर्षों की भरपाई कौन करेगा?” उन्होंने प्रश्न उठाया। “दीपावली की पूर्वसंध्या पर हिंदू समाज को आनंददायी समाचार मिला। हाल ही में मालेगांव प्रकरण के हिंदुत्वनिष्ठ निर्दोष मुक्त हुए, अब पानसरे प्रकरण में भी सभी हिंदुत्वनिष्ठों को जमानत मिली। इसलिए वास्तविक अर्थों में इस वर्ष हिंदुत्वनिष्ठ दीवाली मनायेंगे,” ऐसा भी श्री वर्तक ने कहा।

श्री वर्तक ने इस प्रकरण के घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जनवरी 2018 में पानसरे प्रकरण में कोल्हापुर सत्र न्यायालय ने डॉ. तावडे को जमानत दी थी; परंतु दाभोलकर प्रकरण में वे कारागार में होने से उनकी रिहाई नहीं हो सकी। 10 मई 2024 को दाभोलकर प्रकरण में वे बरी होते ही, पानसरे परिवार और कम्युनिस्ट शक्तियों ने जमानत रद्द कराने के लिए अभियान चलाया। बाद में जमानत रद्द होने से उन्हें पुनः कारागार जाना पड़ा। अब उच्च न्यायालय के निर्णय से अंततः उन्हें न्याय मिला है।

मुंबई उच्च न्यायालय में बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नितीन प्रधान ने, जबकि कोल्हापुर खंडपीठ में हिंदू विधीज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर और अधिवक्ता सिद्धविद्या ने पक्ष रखा। इसमें यह तथ्य रखा गया कि सरकारी साक्षीदार सागर लाखे का बयान हत्या के साढ़े तीन वर्ष बाद दर्ज किया गया। 2018 में जमानत मिलने के उपरांत, सरकारी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालय में किया गया अपील 2023 में स्वयं वापस लिया गया था। साथ ही, इसी प्रकरण के अन्य 6 संशयित आरोपियों को जमानत मिल चुकी होने से, समान न्याय के सिद्धांत पर अन्य आरोपियों को भी जमानत मिलनी चाहिए, ऐसा युक्तिवाद किया गया। इसी सुनवाई में निष्पाप हिंदुत्वनिष्ठ श्री अमोल काले और श्री शरद कळसकर की ओर से पूर्व न्यायमूर्ति एवं अधिवक्ता पुष्पा गनेडीवाला ने प्रभावी युक्तिवाद किया। इस सफल कानूनी संघर्ष के लिए सनातन संस्था समस्त हिंदू समाज की ओर से सभी अधिवक्ताओं का हृदय से अभिनंदन करती है।

“विलंबित न्याय, अन्याय के समान होता है”, न्यायालय का यह सिद्धांत डॉ. तावडे, श्री काले और श्री कळसकर के संदर्भ में पूरी तरह लागू होता है। जिन लोगों ने न्याय-प्रक्रिया में बाधा डालकर यह विलंब कराया, उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए। इस न्यायिक लड़ाई में जमानत के कारण आधी सफलता मिली है; ईश्वर की कृपा से शीघ्र ही इन सभी की निर्दोष मुक्ति होकर संपूर्ण सफलता मिलेगी, हमें न्यायदेवता पर ऐसा विश्वास है,” ऐसा भी श्री वर्तक ने कहा।


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