राजनीतिक दलों में पारिवारिककरण और जनता का शोषण

पटना, बिहार —
पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संजीव कुमार ने कहा है कि भारत का लोकतंत्र आज एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। जिस प्रणाली को जनता के अधिकारों और भागीदारी के आधार पर चलना था, वह धीरे-धीरे कुछ लोगों के हाथों की निजी संपत्ति बनती जा रही है। कई तथाकथित राजनीतिक दल आज व्यक्तिगत कंपनियों में तब्दील हो चुके हैं, जहाँ नेतृत्व, टिकट वितरण और नीति निर्माण में जनता की भागीदारी लगभग समाप्त हो चुकी है।
संजीव कुमार का कहना है कि देशभर में कई दल ऐसे हैं, जहाँ पार्टी का हर निर्णय परिवार या कुछ विशेष व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमता है। उन्होंने कहा — “राजनीतिक दल के नाम पर लोग निजी कंपनियाँ बना रहे हैं। पार्टी का अध्यक्ष किसी एक परिवार का सदस्य होता है, सचिव उसका रिश्तेदार, और चुनावी टिकट भी अपने नजदीकी लोगों को बाँट दिए जाते हैं। जनता केवल वोट देने और नारों में इस्तेमाल होने तक सीमित रह गई है।”
यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। भारतीय संविधान ने सत्ता के विकेंद्रीकरण, समान अवसर, और जनता की सर्वोच्चता की बात कही थी। लेकिन आज यह स्पष्ट दिख रहा है कि राजनीतिक दलों में लोकतांत्रिक ढांचा केवल दिखावे का माध्यम बनकर रह गया है। पार्टी के अंदर चुनाव नाम मात्र के होते हैं, और निर्णय शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर लिए जाते हैं।
संजीव कुमार ने कहा कि यह “राजनीतिक पारिवारिककरण” (Political Dynastism) न केवल दलों को कमजोर कर रहा है बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख को भी खत्म कर रहा है। जब एक पार्टी परिवार या निजी स्वार्थ के इर्द-गिर्द सिमट जाती है, तब उसमें विचारधारा, नीति, और सिद्धांत की जगह स्वार्थ, चापलूसी और भ्रष्टाचार पनपने लगते हैं।
उन्होंने कहा — “आज जनता के नाम पर वोट माँगने वाले नेता सत्ता में आते ही जनता को भूल जाते हैं। सरकारी योजनाएँ और संसाधन जनता की भलाई के बजाय अपने लोगों को लाभ पहुँचाने में इस्तेमाल होते हैं। यह स्थिति संविधान की आत्मा के विपरीत है।”
संजीव कुमार ने यह भी कहा कि देश के अधिकांश दलों को अब आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। चुनाव आयोग को भी इस पर सख्त नियम बनाने चाहिए ताकि राजनीतिक दल अपने आंतरिक चुनाव समय पर करवाएँ और आम कार्यकर्ता को नेतृत्व तक पहुँचने का अवसर मिले।
उन्होंने आगाह किया कि यदि यही स्थिति बनी रही, तो जनता का विश्वास लोकतंत्र से उठ जाएगा और राजनीति पूरी तरह से एक लाभकारी व्यवसाय बन जाएगी। राजनीति को फिर से सेवा, समर्पण और त्याग का माध्यम बनाना ही इस देश की लोकतांत्रिक विरासत को बचाने का एकमात्र उपाय है।
अंत में उन्होंने कहा —
“जनता मालिक है, लेकिन आज वही सबसे ज़्यादा ठगी जा रही है। राजनीतिक दलों को याद रखना चाहिए कि सत्ता जनता की देन है, उसका शोषण नहीं।”
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com