जाने किस बात से|
ज्योतींद्र मिश्र
जाने किस बात से, बे -असर रह गईबात बन जाती लेकिन कसर रह गई
तकदीरें रोज़ रोज़ जगती नहीं
दो दिनी जिंदगी बे - बसर रह गई
वो तकती रही शाम तक आईना
कोई तस्वीर थी , पुर असर रह गई
तमन्ना थी दिल की ,हस्ती ही लुटा दें
ये जुर्म ख्वामखाह मेरे सर रह गई
सलामत रही , उनकी पाकीज़गी
उनकी यादें भी अब मुख्तसर रह गई
@ ज्योतींद्र मिश्र
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