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फासले

फासले

कुदरत का ऐसा फैसला हुआ ,
धरती अंबर का न मसला रहा ।
मिट गईं दोनों के बीच दूरियाॅं ,
धरती अंबर में न फासला रहा ।।
लहरा रहा पताका बीच अंबर ,
चंद्र सूर्य भी हमसे है दूर नहीं ।
पहुॅंच चुका मानव मंगल पे भी ,
हुआ कभी भारत है क्रूर नहीं ।।
देव संस्कृति भारतीय संस्कृति ,
देव संस्कृति से जिसका प्रीति ।
सभ्यता शिष्टता जो अपनाया ,
देववाणी मृदुल व्यवहार वृत्ति ।।
फैसला हो ऐसा न हो फासला ,
हर मानव मानव भी एक रहे ।
समझ जाए हर मानव मानव को ,
हर मानव का नियत नेक रहे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
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