हे छठ मैया,दो ऐसा वरदान
मृदुल मधुर ह्रदय तरंग,
स्वर श्रृंगार अनुपम ।
विमल वाणी ओज गायन,
ज्योतिर्मय अन्तरतम ।
मानस सर नवरस लहर,
सर्वत्र गूंजे मधुमय गान ।
हे छठ मैया,दो ऐसा वरदान ।।
दुर्बल छल बल मद माया,
प्रसरित जग जन जन ।
प्रदत्त निर्मल विमल मति,
तमस हर कण कण ।
नवगति नवलय जग अनूप,
नव दृष्टि भर दो नवल ज्ञान ।
हे छठ मैया,दो ऐसा वरदान ।।
हे कृपानिधि करुणामय,
दया नीर कण छलका दो ।
प्यासे नयन अंतरस्थ,
निज स्वरूप झलका दो ।
पुलकित पावन चरण बिंदु,
अष्ट प्रहर जनमानस संज्ञान ।
हे छठ मैया,दो ऐसा वरदान ।।
समय काल स्वर्ण आभा,
सर्वत्र मोद उल्लास ।
आनंद वैभव अथाह कृपा,
प्रबल आस्था विश्वास ।
प्रेम सुमन महके जीवन ,
कर दो समृद्धि संपदा प्रदान ।
हे छठ मैया,दो ऐसा वरदान ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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