छठ महापर्व: सूर्योपासना का आदिकाल से संबंध

अरवल (बिहार) । लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर, 28 अक्टूबर को अरवल जिले के करपी स्थित फुलवाहन विगहा के रतन सरोवर में भगवान सूर्य की उपासना एवं अर्घ्य दिया गया। इस दौरान, जीवन धारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं जी 5 के सदस्य, साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने सूर्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान सूर्य की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि छठ पूजा प्रकृति, वृक्ष और जल की स्वक्षता के संरक्षण एवं संवर्धन का प्रतीक है, और भगवान सूर्य ब्रह्मांड की आँखें तथा सकारात्मक ऊर्जा के द्योतक है ।
सत्येन्द्र कुमार पाठक ने भारतीय पौराणिक इतिहास के आरंभिक काल को देवमाता अदिति और उनके पुत्रों (आदित्यों) के वंश से जोड़ा। उन्होंने बताया कि देवमाता अदिति ब्रह्मा जी के पौत्री और महान ऋषि कश्यप की पत्नी थीं। उनके 12 तेजस्वी पुत्र, द्वादश आदित्य कहलाए, जिनमें सूर्य देव (विवस्वान) और वर्तमान मानव जाति के आदि-पिता वैवस्वत मनु भी शामिल हैं।सूर्य देव (विवस्वान) का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ, जिनकी संतानों में वैवस्वत मनु (वर्तमान सातवें मन्वन्तर के संचालक), मृत्युदेव यम धर्मराज, देव वैद्य अश्विनी कुमार, और यमुना नदी शामिल है ।इतिहासकार पाठक ने बताया कि वैवस्वत मनु ने जल प्रलय के बाद शेष बची सृष्टि को पुनः स्थापित किया और उन्हें मानव जाति का प्रथम पिता माना जाता है। उनकी पत्नी श्रद्धा से उनके नौ पुत्र (इक्ष्वाकु, नरिष्यन्त, करुष, धृष्ट, शर्याति, नभग, पृषध्र, कवि) और एक पुत्री (इला) हुईं। वैवस्वत मनु का मुख्य कार्यक्षेत्र प्राचीन काल की महत्वपूर्ण सरस्वती नदी के किनारे और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों तक फैला था। उनके ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु से ही सूर्यवंश का आरंभ हुआ, जिनकी राजधानी बाद में अयोध्या बनी मनु के पुत्रों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने वंश और साम्राज्य की स्थापना की । शर्याति: कीकट प्रदेश (वर्तमान मगध, सोन, फल्गु क्षेत्र), पंजाब, हरियाणा। इनकी पुत्री सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि से हुआ, जिन्होंने मगध क्षेत्र की नींव रखी। पुत्री इला का विवाह चंद्रपुत्र बुध से हुआ, जिससे चंद्रवंश का उदय हुआ। इनके पुत्रों ने गया, उड़ीसा, वैशाली, मिथिला और नेपाल के क्षेत्रों में राज्य स्थापित किए। मनु के वंशजों ने उत्तर-पश्चिम से लेकर मध्य और पूर्वी भारत (मगध, मिथिला) तक सनातन धर्म की सौर संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। साहित्यकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने जोर दिया कि पौराणिक स्रोतों के अनुसार, वैवस्वत मनु के वंशजों और निकट संबंधियों (जैसे पुत्री इला, दामाद बुध, पुत्र शर्याति और इक्ष्वाकु) ने ही अपने-अपने क्षेत्रों में सूर्य की पूजा और छठ पूजा (सूर्य षष्ठी व्रत) का आरंभ किया था। यह परंपरा आज भी बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में महापर्व छठ के रूप में प्रचलित है, जो आदिकाल से सूर्य के तेज और जीवनदायिनी शक्ति के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है। इस अवसर पर औरंगाबाद जिले के जीविका ट्रेनिंग ऑफिसर प्रवीण कुमार पाठक, पवन पाठक, विवेकानंद और मथुरा सिंह यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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