जीवन पर मौत का पहरा
जन्म का मृत्यु से संबंध गहरा है ,जीवन पे मौत का कड़ा पहरा है ।
जीवन में कभी खुशी कभी गम ,
फिर भी मानव पढ़ता ककहरा है ।।
सब कहते तन तो एक मंदिर है ,
मैं कहता हूॅं तन तो कारागार है ।
जीवन तो बना है उसी में कैदी ,
चार सिपाही खड़े चार द्वार हैं ।।
ऑंख नाक कान और ये मुख ,
जिसपर खड़े चार पहरेदार हैं ।
जिस दिन समय हो जाता पूरा ,
कैद जीवन हो जाता शिकार है ।।
कारागार की मजबूत है छावनी ,
कैदी निकल भाग सकता नहीं ।
हो गया जिस दिन समय ये पूरा ,
जाता जीवन जाग सकता नहीं ।।
मन का होता रहता उथल पुथल ,
जीवन भर मन का ये उद्गार है ।
भजन कर लो या गाली दे लो ,
जाना तो एक दिन उस पार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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