जो सवाल था कभी
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जो सवाल था कभी जवाब बन जाए।
जो कुफ्र था कभी वही सवाब बन जाए।
कौन जाने आज जो बेरंग खसकन है,
कल गुलों से लहलहाता बाग बन जाए।
मुद्दते मदीद से जो दरपए-जाँ है,
कौन जाने हमसफर नायाब बन जाए।
जो शररअंगेज है बज्मे हयात में,
मुमकिन है काइनात में महताब बन जाए।
गर्दिशे दौराँ है दारुलफ़ना का दस्तूर,
जो कभी था अस्ल वही ख़्वाब बन जाए।
पेट की खातिर जो बेंचता है सुहागा,
हो सकता है कल को वही नवाब बन जाए।
जम्हूरियत का खून होता है,जभी-
जुबान ही कानून की किताब बन जाए।
(मुद्दते मदीद से =लम्बे समय से। गर्दिशे दौराँ =समय का चक्कर,समय का उलटफेर।
दारुलफना =संसार। खसकन =घास का मैदान। )
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