'सम्मानित साहित्यकार': शब्दों में पिरोने वाला एक संग्रहणीय दस्तावेज़

डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव
सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा लिखित 'सम्मानित साहित्यकार' केवल एक साहित्यिक संकलन नहीं है, बल्कि यह बिहार के समृद्ध, बहुभाषी और गहन साहित्यिक परिदृश्य के प्रति एक भावपूर्ण और शोधपूर्ण श्रद्धांजलि है। यह कृति एक जीवंत दस्तावेज़ है जो उन महान लेखकों और कवियों के योगदान को प्रकाश में लाती है, जिन्होंने अपनी कलम की शक्ति से न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि समाज को भी नई दिशा दी। यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए एक अनिवार्य पठन है जो साहित्य को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की 'आँखें' मानते हैं।
साहित्य: समाज की 'आँखें' और पथ-प्रदर्शक पुस्तक की सबसे विशिष्ट वैचारिक नींव यह है कि यह साहित्य को शब्दों का खेल नहीं, बल्कि मानव संस्कृति और समाज की 'आँखें' मानती है। यह दृष्टिकोण 'सम्मानित साहित्यकार' को एक साधारण सूचनात्मक ग्रंथ से उठाकर सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व का एक दस्तावेज़ बना देता है। साहित्यकार समाज के पथ-प्रदर्शक होते हैं, जो अपनी लेखनी से ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं और सकारात्मक बदलाव की नींव रखते हैं। पुस्तक गहनता से यह दर्शाती है कि इन साहित्यकारों ने कैसे अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया और समतावादी समाज की स्थापना का स्वप्न देखा। यह विषय-वस्तु आज के दौर में और भी प्रासंगिक हो जाती है जब साहित्य की सामाजिक भूमिका पर अक्सर सवाल उठाए जाते है ।
'सम्मानित साहित्यकार' की एक बड़ी खूबी इसका समावेशी और व्यापक कैनवास है। लेखक पाठक ने केवल हिंदी के स्थापित साहित्यकारों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया है, बल्कि मगही, बज्जिका, भोजपुरी, मैथिली और अंगिका जैसी बिहार की महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भाषाओं के लेखकों और कवियों को भी समान स्थान दिया है। यह बहुभाषी दृष्टिकोण इस कृति को बिहार की सच्ची साहित्यिक आत्मा का प्रतिनिधि बनाता है। यह पुस्तक बिहार की समग्र भाषिक विविधता का सम्मान करती है और उन क्षेत्रीय प्रतिभाओं को राष्ट्रीय पटल पर लाती है जो अक्सर मुख्यधारा के विमर्श से ओझल रह जाती हैं। यह समावेशन इसे शोधार्थियों के लिए एक अमूल्य संसाधन बनाता है जो क्षेत्रीय साहित्यिक इतिहास को खंगालना चाहते हैं।
इस पुस्तक की सफलता का मूल आधार सत्येन्द्र कुमार पाठक का गहन शोधपूर्ण दृष्टिकोण है। जैसा कि आलेख में स्पष्ट है, यह कृति सिर्फ सूचनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि प्रत्येक साहित्यकार के जीवन परिचय, उनकी रचनाओं और योगदान का एक गहन विश्लेषण है। लेखक ने साहित्यकारों के व्यक्तिगत जीवन, सामाजिक प्रतिबद्धताओं, शिक्षा और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को बड़े विस्तार से प्रस्तुत किया है। इस गहराई से पाठक यह समझ पाता है कि कैसे साहित्यकार की रचनाएँ उनके जीवन और अनुभवों से प्रभावित थीं। यह सहजता, प्रामाणिकता और गहराई ही इस पुस्तक को एक जीवंत और विश्वसनीय दस्तावेज़ बनाती है, जो पाठकों को अतीत के गौरव से जोड़ती है।
विरासत का संरक्षण और प्रेरणा का स्रोत पुस्तक में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि इन मनीषियों ने किस प्रकार अपनी प्राचीन विरासत को संरक्षित किया और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का संकल्प लिया। यह दर्शाती है कि साहित्यकार केवल वर्तमान की बात नहीं करते, बल्कि परंपरा और प्रगति के बीच एक सेतु का निर्माण करते हैं।
'सम्मानित साहित्यकार' का मूल्य केवल सूचनात्मक नहीं, बल्कि प्रेरणादायक भी है। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी को उनके महान पूर्वजों के योगदान से परिचित कराती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी साहित्य के महत्व को समझने और समाज के उत्थान में योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। यह कृति साहित्य प्रेमियों, शोधार्थियों, छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए एक अत्यंत मूल्यवान और संग्रहणीय दस्तावेज़ है।
सतरंग प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित सम्मानित साहित्यकार कृति (मूल्य ₹450) साहित्यिक इतिहास को सहेजने का एक अत्यंत सराहनीय और प्रशंसनीय प्रयास है। 'सम्मानित साहित्यकार' एक ऐसा दर्पण है जिसमें बिहार की सांस्कृतिक और साहित्यिक आत्मा का स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देता है। यह उन महान आत्माओं के बारे में जानने के लिए एक आवश्यक पठन है जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से एक बेहतर दुनिया का सपना देखा। यह पुस्तक निश्चित रूप से अपनी साहित्यिक सुगंध और वैचारिक गहराई से पाठकों को मंत्रमुग्ध करेगी और भारतीय साहित्य के इतिहास में बिहार के बहुमूल्य योगदान को चिरकाल तक स्थापित करेगी।
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