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नेपाल का घटनाक्रम और भारत

नेपाल का घटनाक्रम और भारत

डॉ राकेश कुमार आर्य

नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के सरकारी निर्णय के विरोध में जिस प्रकार वहां हिंसक घटनाएं हुई हैं और देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा है, वह सब चिन्ता का विषय है। Gen - G का जिस प्रकार एक विमर्श तैयार किया जा रहा है, उसके पीछे के सच को समझने की आवश्यकता है। इससे पहले हमने बांग्लादेश और श्रीलंका में इसी प्रकार की घटनाओं को घटित होते देखा है। वहां कुछ भी बदला नहीं है।
युवाओं के द्वारा अपने ही देश की संपत्ति को आग के हवाले करना उस स्थिति में बहुत अधिक चिंतनीय हो जाता है, जब ऐसा कार्य सत्ता प्राप्त करने के लिए किया जा रहा हो। जिसका अभिप्राय है कि इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देकर सत्ता प्राप्त करने वाले लोग इस बात को भली प्रकार जानते होंगे कि आज जिन चीजों में आग लगाई जा रही है, कल को उन्हीं को सत्ता चलाने के लिए प्रयोग में भी लिया जाएगा । इसलिए इन्हें आग के हवाले क्यों किया जाए ?यदि किसी देश की युवा शक्ति के पास इतना भी विवेक नहीं है तो समझना चाहिए कि उस देश के युवा जिम्मेदार न होकर भटकाव का शिकार हैं । उन्हें किसी ने भड़काया है और अपने ही देश के विरुद्ध भड़काया है ।
यदि भड़काने वाले हाथों की खोज की जाए तो ये बहुत लंबे हाथ हैं। जिन तक पहुंचना बड़ा कठिन है। नेपाल की सेना की ओर से कहा गया है कि सरकार का तख्तापलट करने के लिए सड़क पर उतरे युवा उपद्रवी देश में बनी इस प्रकार की परिस्थितियों का अनुचित लाभ उठाकर तोड़फोड़, अराजकता , लूटपाट और आगजनी के साथ-साथ जानमाल को क्षति पहुंचाने की साजिश को अंजाम दे रहे थे। पुलिस को इन उपद्रवियों से 33.7 लाख रुपये नकद, 23 बंदूकें, मैगजीन और गोलियों सहित 31 अलग-अलग तरह के हथियार भी मिले हैं।
जिस प्रकार से श्रीलंका और बांग्लादेश में तख्ता पलट किया गया है, लगभग वही ढंग बांग्लादेश में भी सत्ता परिवर्तन के लिए अपनाया गया है।अमेरिका जैसे देश संसार में लोकतंत्र के अलंबरदार बनते हैं, परंतु उन्होंने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई एक सरकार को गिराया और गिराने के पश्चात सरकार की चाबी कट्टरपंथियों के हाथों में सौंप दी गई।
बांग्लादेश की भांति नेपाल में भी सरकार चलाने की जिम्मेदारी इस समय सेना के ऊपर आ गई है। यह बहुत ही आश्चर्यजनक तथ्य है कि जो युवा शक्ति सत्ता से सरकारों को बेदखल करने के लिए सड़कों पर उतरती है, वह नई सरकार बनाने के लिए आगे नहीं आती है। इसका अभिप्राय है कि युवा शक्ति को तो केवल मोहरा बनाया जाता है। गोटियां कहीं और से चली जाती हैं और युवा शक्ति भी केवल इतनी देर के लिए मोहरा बनाई जाती है, जितनी देर में सत्ता परिवर्तन होकर अगली सरकार विधिवत काम करना आरंभ न कर दे। जैसे ही नई सरकार काम करना आरंभ कर देती है अर्थात एक ऐसी कठपुतली सरकार जो सरकार गिराने वाले लोगों के संकेत पर चलेगी , वैसे ही सरकार गिराने में काम ली गई युवा शक्ति को अलग बैठा दिया जाता है और फिर वह चाहकर भी कठपुतली सरकार को गिरा नहीं सकती।
इस समय हमारा देश जिस प्रकार एक आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभरता जा रहा है, उसे अमेरिका सहित कई देश पचा नहीं पा रहे हैं। अमेरिका हर स्थिति में संसार में अपना एकछत्र राज स्थापित किये रखना चाहता है। वह नहीं चाहता कि भारत जैसा देश किसी भी क्षेत्र में उससे आगे निकलकर विश्व का नेतृत्व करने की स्थिति में आए। इसके लिए अमेरिका सहित कई भारत विरोधी शक्तियां भारत की मजबूत मोदी सरकार को उखाड़ने का काम करना चाहती हैं । जिसके लिए हमारे देश के कई विपक्षी नेता भी भारत विरोधी विदेशी शक्तियों का साथ देते हुए दिखाई दे रहे हैं।
जुलाई 2022 में श्रीलंका की युवा ब्रिगेड और वहां के नागरिकों ने बड़ी संख्या में अपने युवाओं का साथ देकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के महल और प्रधानमंत्री के आवास में प्रवेश कर तोड़फोड़ और लूटपाट की थी। उस घटना में श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। जब वहां चुनाव कराये गये तो राजपक्षे की पार्टी का सफाया कर दिया गया। तब वहां रानिल विक्रमसिंघे राष्ट्रपति को देश का मुखिया बनाया गया।
23 सितंबर 2024 में अनुरा कुमार दिसानायके राष्ट्रपति को देश का अगला राष्ट्रपति बनाया गया। उन्होंने भ्रष्टाचार में लिप्त राजनीतिज्ञों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने का निर्णय लिया। जिसके परिणामस्वरूप उनके द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और 5 पूर्व मंत्रियों को भष्ट्राचार के आरोपों में जेल की सजा सुनाई गई। इस सबके उपरांत भी श्रीलंका की आर्थिक स्थिति और भी अधिक दयनीय हो गई है। परंतु अब कोई भी युवा वर्तमान सरकार के विरुद्ध सड़कों पर नहीं आ रहा है।
कहा यह भी जाता है कि 2022 में पाकिस्तान में अप्रैल के महीने में चुनाव कराये गये तो शहबाज शरीफ को एक सोची समझी रणनीति के अंतर्गत वहां का प्रधानमंत्री बनाया गया। यद्यपि यह भी एक तथ्य है कि शरीफ केवल नाम के प्रधानमंत्री हैं, वास्तविक सत्ता वहां के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल असीम मुनीर के हाथ में है। भारतीय उपमहाद्वीप में सरकारों को अस्थिर करने वाली शक्तियां यहां के देशों में अपनी पसंद की सरकार देखना चाहती हैं । यदि कोई ऐसा नेता भारतीय उपमहाद्वीप में दिखाई देता है, जो उन्हें आंख दिखा सकता है या उनकी मानकर नहीं चलता है तो ये शक्तियां देश में ऐसे माहौल का सृजन करती हैं कि वहां की सरकार का एक दिन चलना भी कठिन हो जाता है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान हर मोर्चे पर एक असफल मुल्क सिद्ध हो चुका है, इसके उपरांत भी वहां पर असीम मुनीर की वह सरकार काम कर रही है, जिसे जन समर्थन प्राप्त नहीं है और जिसे जन समस्याओं के समाधान से कुछ लेना देना भी नहीं है।
अपने देश भारत के संदर्भ में हमें हर कदम पर सावधान रहना होगा। देश के भीतर बैठे ' जयचंद' किसी भी स्थिति तक जा सकते हैं। जिस प्रकार सीएए के विरुद्ध देश में माहौल बनाया गया था या किसान आंदोलन या मणिपुर की घटना को लेकर देश के जनमानस में आग लगाने का प्रयास किया गया था, उसी प्रकार की तैयारी फिर की जा रही है। देश की सरकार को ही नहीं देश के नागरिकों को भी सावधान रहने की आवश्यकता है। यद्यपि हमारे देश की सेना और देश का युवा यह भली प्रकार जानता है कि देश का हित किस विचारधारा के हाथों में सुरक्षित है ? वैसे एक ' हिंदू राष्ट्र' नेपाल भारत के हित में ही होगा।



(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझा अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
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