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“विनय की दीप्ति, अभिमान की ज्वाला”

“विनय की दीप्ति, अभिमान की ज्वाला”

विनय का स्वभाव सहज निर्मल सरिता के समान है, जो अंतःकरण को संतोष और शांति से परिपूर्ण करती है। विनयी पुरुष के हृदय में न ईर्ष्या का स्थान होता है, न द्वेष का, और न ही असंतोष का। उसकी दृष्टि सदैव परहित में रमण करती है, इसलिए वह दूसरों की उन्नति में भी आत्मानन्द का अनुभव करता है। इसीलिए विनय की भावना आत्मा को वह प्रकाश प्रदान करती है, जो अहंकार के समस्त अंधकार को चीरकर सत्य की ओर उन्मुख कर देता है।

इसके विपरीत अभिमान एक अग्निकुंड है, जो अपने धारक को निरंतर भीतर ही भीतर भस्म करता है। जब अभिमानी अन्य के उत्थान का समाचार पाता है, तो उसका अंतःकरण ईर्ष्याग्नि से दग्ध होकर अशान्त हो उठता है। उसी जलन के निवारण हेतु वह प्रायः ऐसे कर्म करता है, जो क्षणिक तुष्टि अवश्य देते हैं, किन्तु दीर्घकाल में दुर्दैव और शोक का ही कारण बनते हैं। अतः मनुष्य के लिए सरल और कल्याणकारी यही है कि वह अहंभाव के पथ का परित्याग कर विनय के मार्ग का अनुसरण करे, क्योंकि विनय ही चिरशांति और स्थायी सुख का द्वार है।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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