Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

" आर्थराइटिस में लापरवाही विकलांगता को आमंत्रण "

" आर्थराइटिस में लापरवाही विकलांगता को आमंत्रण "

मानव जीवन की शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा होगा जो विज्ञान के प्रभाव से अछूता रहा हो। विशेषकर चिकित्सा का क्षेत्र तो विज्ञान का कण-कण ऋणी है। विज्ञान के अद्‌भुत चमत्कार के कारण ही आज असाध्य एवं लाइलाज बीमारियों का इलाज संभव हो सका है। रोज नये-नये तकनीक का आविष्कार विज्ञान की अनुपम भेंट है। आज तकनीक इतना विकसित गया है कि रोबोट के माध्यम से शल्य क्रिया किया जा रहा है। इसकी शुरुआत हाल ही में बिहार की राजधानी पटना में "मेदांता हॉस्पीटल"में शुरू की गई है जिसका विधिवत् उद्घाटन बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने किया था। चिकित्सा के क्षेत्र में नित्य नये उपकरणों एवं औषधियों का आविष्कार विज्ञान के नित्य नये प्रयोगों से ही संभव हो सका है। इसके लिए चिकित्सा जगत सदैव विज्ञान का ऋणी रहेगा।
मानव शरीर का ढांचा एक प्रकार के सख्त और मजबूत पदार्थ का बना होता है जिसे हम अस्थि (हड्डी) कहते हैं। मानव शरीर का सम्पूर्ण ढांचा 206 से 208 छोटी-बड़ी हड्डियों से निर्मित (बना हुआ) है। यह मानव शरीर के ढांचा का आधार स्तंभ है। अस्थियों की वजह से ही मानव सीथा खड़ा रहता है, चलता है, दौडता है एवं समस्त क्रियाओं को संपादित करता है। इसलिए हड्डी से संबंधित रोगों एवं उसके उपचार की जानकारी हमें रखनी चाहिए।
अस्थि रोगों में आर्थराइ‌टिस आजकल मधुमेह
(डायबिटिज) एवं रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) जैसा आम होता जा रहा है। आज करीब 80 प्रतिशत लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। इस रोग से संबंधित जानकारी के लिए हमारे संवाद‌दाता सुरेन्द्र कुमार रंजन ने J-1, P.C Colony, Kankarbagh स्थित शंकर चिकित्सालय के संस्थापक अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ सत्येन्द्र कुमार सिन्हा से मुलाकात कर कुछ जानकारियां एकत्र की है। उसी साक्षात्कार के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत है:-


आर्थराइ‌टिस क्या है?
आर्थराइटिस या गठिया या संधिवात एक बीमारी है जो जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न का कारण बनती है। गठिया का शाब्दिक अर्थ होता है जोड़ों में सूजन। आर्थराइटिस दो शब्दों के मेल (आर्थ्रो - जोड़+ इटिस - सूजन) से बना है जिसका मतलब होता है जोड़ों में सूजन।
जोड़ उस स्थान को कहते हैं जहां दो हड्डियां आपस में मिलती है जैसे कोहनी, घुटना, टखना, कलाई, हिप आदि।
आर्थराइटिस एक ऐसी स्थिति है जो जोड़ों को प्रभावित करती है। जोड़ों में हड्डियों के सिरे (किनारे)हाइलिन कार्टिलेज(उपास्थि) एवं सिनोवियल मेम्ब्रेन ( जोड़ों की झिल्ली)नामक नरम ऊतक से ढंके होते हैं।हाइलिन कार्टिलेज एक प्रकार की उपास्थि है जो हड्डियों के सिरों (किनारों) को कवर करता है और जोड़ों में घर्षण को कम करने में मदद करता है। जोड़ की झिल्ली जिसे सिनोवियल मेम्ब्रेन भी कहा जाता है,एक ऊतक है जो जोड़ों के अंदरूनी हिस्से को रेखाबद्ध करता है और सिनोवियल तरल पदार्थ नामक एक तरल पदार्थ का उत्पादन करता है, जो जोड़ों को चिकनाई देता हैऔर पोषण प्रदान करता है। जोड़ों को स्वस्थ रखने के लिए दोनों को स्वस्थ रहना जरूरी है।"उपास्थि"(कार्टिलेज) हड्डियों को एक दूसरे के खिलाफ आसानी से स्लाइड करने में मदद करती है। आर्थराइटिस के प्रभाव से "उपास्थि' क्षतिग्रस्त या खराब हो जाती है जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न की समस्या उत्पन्न हो जाती है। गठिया एक या एक से अधिक जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न का कारण बनने वाली एक आम बीमारी है। यह किसी भी उम्र में हो सकती है। लेकिन 65 वर्ष से अधिक की आयु वाले व्यक्तियों में यह अधिक पाई जाती है। इसके कई प्रकार हैं जिनके लक्षण अलग-अलग हैऔर उनका उपचार की अलग-अलग है। यह किसी जोड़ को प्रभावित कर सकता है लेकिन मुख्य रूप से यह घुटने ,कूल्हे की हड्डी,कमर के निचले हिस्से ,कलाई, टखने और कंधे को ज्यादा प्रभावित करती है।


आर्थराइटिस के प्रकार एवं लक्षण


आर्थराइटिस के मुख्य दो प्रकार है ऑस्टियोआर्थराइटिस और इंफ्लेमेटरी आर्थराइटिस
1) ऑस्टियोआर्थराइटिस - इसे हिन्दी में "संधिशोध" कहा जाता है। इसे "वियर-एंड-टियर" गठिया भी कहा जाता है। यह जोडों में होने वाली एक सामान्य बीमारी है को उम्र के बढ़ने के साथ-साथ होती है। जब जोड़ों के सिरों को ढकने वाली सुरक्षात्मक "उपास्थि "(कार्टिलेज) घिस जाती है तब हड्डियां आपस में रगड़ने लगती है जिससे जोड़ों में दर्द,सूजन और अकड़न होने लगती है।
जोडों में दर्द और अकड़न, जोड़ों में सूजन, जोडों को हिलाने में परेशानी, जोड़ों के पास गर्मी या कोमलता, सीढ़ी पर चढ़ने-उतरने और चलने-फिरने में दिक्कत होना इसके प्रमुख लक्षणों में है। वैसे तो यह किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है लेकिन आमतौर पर यह हाथों, घुटनों, कूल्हों और रीढ़ के जोड़ों में होता है।
2) इंफ्लेमेटरी आर्थराइटिस - इसे हिन्दी में "सूजनकारी गठिया "कहते हैं। यह स्थिति शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा जोड़ों पर हमला करने के कारण होती है, जिसके कारण जोड़ों को क्षति पहुँचती है और जोडों में दर्द, सूजन और अकड़न होती है। इनके कई प्रकार हैं :- एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सोरायसिस आर्थराइ‌टिस, गाउट, रूमेटाइड गठिया, जुवेनाइल इडियोपैथिक गठिया, किशोर अज्ञातहेतुक, गठिया आदि।
जोड़ों में दर्द, जोड़ों में सूजन और अकड़न, जोड़ों को हिलाने- डुलाने में परेशानी, जोड़ों में गर्मी और लाली, थकान, गतिशीलता में कमी आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।


आर्थराइटिस का कारण


आर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है जो जोड़ों में दर्द, पूजन और अकड़न की कारण बनती है इसके प्रमुख कारण हैं -


1) बढ़ती उम्र - बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों की हड्डियों और कार्टिलेज का घिसाव होता है जिससे ऑस्टियोराइटिस हो सकता है।
2) आनुवंशिक कारण - अगर परिवार में किसी को आर्थराइटिस की समस्या रही है, तो इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
3) इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी - रुमेटाइड आर्थराइटिस में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही जोड़ों पर हमला करती है जिसे सूजन और दर्द होता है।
4) चोट या जोड़ों का नुकसान - पुरानी चोटों या बार-बार होने वाले जोड़ों का उपयोग भी आर्थराइटिस का कारण बन सकता है।
5) वजन का अधिक होना - अधिक वजन के कारण जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पडता है, जो आर्थराइ‌टिस को बढ़ावा देता है।
6) संक्रमण - जोड़ों में वैक्टिरिया या वायरस का संक्रमण सूजन और दर्द का कारण बन सकता है। यह आर्थराइटिस का करण बन सकता है।
7) कैल्शियम और विटामिन 'डी' की कमी हड्डियों और जोड़ों को कमजोर बना सकती है, जिससे आर्थराइटिस होने की संभावना बनती है।


आर्थराइ‌टिस को पता लगाने के लिए परीक्षण


आर्थराइटिस के निदान के लिए चिकित्सक शारीरिक परीक्षण, रोगी के इतिहास और कुछ इमेजिंग परीक्षणों का अध्ययन करते हैं और उसके निष्कर्ष पर फिर आगे का इलाज करते हैं।
1) शारीरिक परीक्षण - इसमें चिकित्सक जोड़ों की जांच करते हैं कि वे कितने सूजे हुए हैं, कितने लाल हैं और छूने पर कितने संवेदनशील हैं। जोड़ों को हिलाना या मोड़ना कितना आसान है,इसकी भी जांच करते हैं।
2) रोगी का इतिहास - चिकित्सक आपके चिकित्सा इतिहास और आपके परिवार में किसी को आर्थराइटिस है या नहीं इसकी जानकारी लेते हैं।
3) रक्त एवं इमेजिंग परीक्षण - ऊपर के दोनों परीक्षणों के बाद चिकित्सक रक्त परीक्ष‌ण और इमेजिंग परीक्षण (एक्स-रे,सीटी स्कैन, एमआरआई) के द्वारा जोड़ों के आसपास के ऊतकों का निरीक्षण करने अंतिम निष्कर्ष पर पहुँच कर आगे का इलाज करते हैं।


आर्थराइटिस का निदान
अर्थराइटिस का कोई स्थायी निदान नहीं है, लेकिन उपचार के द्वारा लक्ष‌णों को कम करने और जोड़ों को कार्यशील (क्रियाशील )बनाए रखने में मदद किया जा सकता है। आमतौर पर इन तरीकों से आर्थराइटिस से पीड़ित रोगी का उपचार किया जा सकता है।
1) दर्द निवारक दवाएँ - इसके इलाज के लिए कई तरह की दवाएँ उपलब्ध हैं जिनमें दर्द निवारक, सूजन रोधी दवाएं और रोग संशोधित एंटीरूमेटिक दवाएँ शामिल हैं। इनसे जोड़ों के दर्द, सूजन और जोड़ों को नुकसान पहुंचाने से रोकने में मदद मिलती है।
2) फिजियोथेरेपी - फिजियोमेरेपी में व्यायाम और अन्य उपचार शामिल होते हैं , जो जोड़ों की गतिशीलता और कार्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं
3) व्यायाम - नियमित व्यायाम जोड़ों को मजबूत करने और लचीला बनाने में मदद कर सकता है।
4) वजन प्रबंधन - यदि आपका वजन अधिक है तो वजन कम करके जोड़ों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को कम करके आर्थराइटिस के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
5) गर्म या ठंडा उपचार - गर्म या बर्फ का सेक लेकर जोड़ों के दर्द और सूजन में राहत पा सकते हैं।
6) शल्य क्रिया - गभीर मामलों में शल्य क्रिया की आवश्यकता होती है। शल्यक्रिया द्वारा जोड़ों की मरम्मत या उसका प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) कर रोगी को राहत पहुंचाई जाती है।


चिकित्सक की सलाह
1) उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह धारणा बनानी चाहिए कि बचाव के उपायों पर अमल करना चाहिए।
2) बीमारी का पता चल जाने पर इसे जड़ से समाप्त करने के लिए अस्थि रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर उचित इलाज करवाना चाहिए।
3) गंभीर केसों (Acute cases ) को छोड़कर शेष सभी प्रकार के आर्थराइटिस में सभी जोड़ों की गतिशीलता पर विशेष जोर देना चाहिए।
4) विशेष परिस्थितियों को छोड़कर दर्द निवारक दवाओं का सेवन कम से कम करना चाहिए।
5) फिजियोथेरेपी पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
6) जरूरत के अनुसार अपने जीवन शैली और कार्य करने के ढंग में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है।


चिकित्सक की विशिष्टताएं : -
1) 1972 ई० में मिलर हाई स्कूल, पटना से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण किया।
2) 1974 ई० में पटना साइंस कॉलेज से इंटर विज्ञान की परीक्षा उत्तीर्ण किया।
3) 1981 ई० में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की उपाधि हासिल किया।
4)1987 ई० में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पटना मेडिकल कॉलेज से और एम एस की उपाधि रांची मेडिकल कॉलेज से हासिल किया। इसके अलावा अस्थि रोग से जुड़े विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सा लेकर अपनी योग्यता को साबित किया। अस्थि चिकित्सा शिक्षा में विभिन्न पदों को सुशोभित करते हुए प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष बनकर दिसंबर 2023 ई० में नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अस्थि विभाग से सेवानिवृत्त हुए।


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ