नवरात्र ( दुर्गा पूजा )
जय प्रकाश कुवंर
नवरात्र साल में दो बार मनाया जाता है, वसंती और शारदीय। वसंती नवरात्र चैत्र महीने में मनाया जाता है, तथा शारदीय नवरात्र आश्विन महीने में मनाया जाता है। इन दोनों ही महीने का समय मौसम बदलने का होता है, जब शरीर को नये वातावरण के अनुसार ढालने की जरूरत होती है। अतः लोग भक्ति में जप, तप, पूजा, अर्चना और उपवास करते हुए शरीर को साधते हैं।
नवरात्र केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि यह जीवन का संदेश है। इसका सबसे बड़ा महत्व शक्ति की पूजा से जुड़ा है। यह हमें सिखाता है कि अच्छाई का साथ दें और बुराई का अंत करें।
चैत्र महीने के वसंती नवरात्र में शक्ति की पूजा घर घर में होती है। इस नौ दिन की अवधि के दरम्यान छठ पूजा, देवी पूजा और चैत्र शुक्ल रामनवमी के दिन भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
आश्विन महीने के शारदीय नवरात्र में घर के अलावा शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा की पूजा जगह जगह पर छोटे बड़े पंडाल बनाकर एवं देवी दुर्गा की भब्य प्रतिमा स्थापित कर नव दिनों तक विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। देवी दुर्गा मूलतः माँ पार्वती हैं, जिनके दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी हैं। माँ दुर्गा में लक्ष्मी जी और सरस्वती जी का भी अंश है। अतः दुर्गा पूजा में पंडालों में देवी दुर्गा के अलावा लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की भी प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। माँ दुर्गा को महिषासुर राक्षस का वध करते हुए दिखाया जाता है। पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती, ये तीनों माताएँ मिलकर श्रृष्टि के विभिन्न पहलुओं को संचालित करती हैं और शक्ति के परम रूप आदि शक्ति या महादेवी की अभिव्यक्तियाँ कहलाती हैं। माँ दुर्गा में अन्य देवी देवताओं की भी शक्तियां निहित हैं।
देवी दुर्गा को सृजन, पालन और संसार की मूल शक्ति माना गया है। दुर्गा रूप परमात्मा के सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक है। उनसे कोई भी जीत नहीं सकता है। इसलिए नवरात्र का सबसे बड़ा महत्व शक्ति पूजा है।
माँ दुर्गा के नव रूप हैं। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन नव रूपों की पूजा क्रमशः नवरात्र के प्रथम दिन से नौंवे दिन तक की जाती है। देवी दुर्गा का हर रूप हमें अलग अलग संदेश देता है।
देवी दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री, जिसका पूजन नवरात्र के पहले दिन होता है। देवी दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर जन्म लिया था। हिमालय का एक नाम शैलेंद्र या शैल भी है। इसीलिए देवी दुर्गा का पहला नाम शैलपुत्री पड़ा। माँ शैलपुत्री की पूजा धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है। शैलपुत्री हमें सिखाती हैं कि जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए। इन्हें स्थिरता एवं धरती की बेटी के रूप में जाना जाता है।
देवी दुर्गा का दूसरा रूप है ब्रह्मचारिणी, जिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है जो ब्रह्मा के द्वारा बताये गये आचरण पर चले। जो ब्रह्म की प्राप्ति कराती हो। जो हमेशा संयम और नियम से रहे। जीवन में सफलता के लिए सिद्धांत और नियमों पर चलने की बहुत आवश्यकता होती है। इसके बिना कोई मंजिल नहीं पायी जा सकती है। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा पराशक्तियों को पाने के लिए की जाती है। यह देवी तपस्या, संयम और ज्ञान का प्रतीक हैं।
देवी दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा। इनके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। यह देवी संतुष्टि की देवी मानी जाती हैं। जीवन में सफलता के साथ शांति का अनुभव तब तक नहीं हो सकता है, जब तक की मन में संतुष्टि का भाव न हो। अतः आत्म कल्याण और शांति के लिए माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। यह देवी शांति और वीरता की प्रतीक हैं।
देवी दुर्गा का चौथा रूप है कुष्मांडा। ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुश्कान से अंड यानि ब्रह्मांड की रचना हुई थी। इसी कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। मनुष्य के जीवन में डर सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधा होती है। देवी कुष्मांडा भय दूर करती हैं। अतः जीवन में सभी प्रकार के भय से मुक्त होकर अगर सुखी जीवन बिताना हो, तो देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए।
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है स्कंदमाता। भगवान शिव और माता पार्वती के प्रथम पुत्र हैं कार्तिकेय। कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। कार्तिकेय यानि स्कंद की माता होने के कारण देवी दुर्गा के पांचवे रूप का नाम स्कंदमाता है। स्कंदमाता शक्ति की भी दाता हैं। जीवन में सफलता के लिए सृजन की क्षमता और शक्ति का संचय इन दोनों का होना जरूरी है। माता का यह रूप यही सिखाता है और प्रदान भी करता है। यह रूप माँ और करूणा का प्रतीक है।
देवी दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। देवी कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी। उनकी तपस्या से जब दुर्गा प्रसन्न हुईं तो उनसे कात्यायन ऋषि ने वरदान में मांग लिया कि देवी दुर्गा उनसे घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही देवी का नाम कात्यायनी पड़ा। ये स्वास्थ्य की देवी हैं। मनुष्य को अपना मंजिल पाने के लिए शरीर का निरोगी रहना बहुत जरूरी है। रोगी और कमजोर शरीर के साथ कभी भी सफलता हासिल नहीं की जा सकती है। अतः जिन लोगों को रोग, शोक, संताप से मुक्ति चाहिए उन्हें देवी कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए। यह देवी साहस और शक्ति का प्रतीक हैं।
देवी दुर्गा का सातवां रूप है कालरात्रि। जो सिद्धियाँ रात के समय साधना से मिलती हैं, उन सब सिद्धियों को देने वाली माता देवी कालरात्रि हैं। तंत्र सिद्धि, मंत्र सिद्धि और अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए इस देवी की अराधना की जाती है। यह देवी बुरी शक्तियों का संघार करती हैं। देवी का यह रूप हमें सिखाता है कि सफलता प्राप्त करने के लिए दिन रात के भेद को भूला देना चाहिए।
देवी दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी। गौरी माता पार्वती का ही एक नाम है। महागौरी यानि माता पार्वती जी का ही सबसे उत्कृष्ट स्वरूप। यह देवी चरित्र की पवित्रता की प्रतीक देवी हैं। इन्हें देवी दुर्गा का सबसे शांत और सुंदर रूप माना जाता है। जीवन में किसी को सफलता अगर कलंकित चरित्र के साथ मिलती है तो ऐसी सफलता किसी काम की नहीं। चरित्र अगर उज्जवल हो तो ही सफलता का चरम सुख मिलता है। अपने पाप कर्मों के काले आवरण से मुक्ति पाने और अपने आत्मा को फिर से पवित्र और स्वच्छ बनाने के लिए महागौरी की पूजा और तप किया जाता है। ये ज्ञान और शांति का प्रतीक हैं।
देवी दुर्गा का नौवां रूप है सिद्धिदात्री। सिद्धि का अर्थ है कुशलता और दात्री का अर्थ है देनेवाली। यह देवी सारी सिद्धियों का मूल हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियाँ प्राप्त कीं। भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप में जो आधी देवी दिखलाई पड़ती हैं, वो सिद्धिदात्री माता ही हैं। जीवन में हर तरह की सफलता के लिए माता सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। यह देवी सार्वभौमिक प्रेम, सद्भाव और दया का प्रतीक हैं।
देवी दुर्गा एवं महाशक्ति के रूप में माता पार्वती के अवतरण के विषय में जो रोचक तथ्य है वह इस प्रकार है। महिषासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस देवताओं को पराजित कर दिया था और उन्हें अपने स्थान से खदेड़ दिया था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि उसे कोई पुरुष नहीं मार सकता है। इंद्र पर विजय और देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ने के कारण सभी देवताओं ने मिलकर अपनी सारी शक्तियों को एक जुट किया। इन देवताओं की सामूहिक शक्ति से एक अद्भुत महिला शक्ति का जन्म हुआ जिसे देवी दुर्गा कहा गया। इसी देवी दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर महिषासुर के साथ युद्ध किया और उसे पराजित कर उसका वध किया। इसलिए देवी दुर्गा का एक नाम महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।
देवी दुर्गा ( पार्वती ) के शक्ति के बारे में एक अन्य रोचक तथ्य जो विष्णु और लक्ष्मी के अवतार भगवान राम और सीता माता के साथ त्रेता युग में घटित हुआ वह इस प्रकार है। श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि :-
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होई सुखारे।।
इन पंक्तियों में माता सीता पार्वती जी की पूजा श्री राम के साथ अपनी शादी के अभिलाषा से ध्यान करते हुए कहती हैं कि हे माता आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी होते हैं। आप कृपा करके मुझे ऐसा वरदान दीजिये जिससे मैं श्री राम को पति रूप में पा सकूँ। देवी माँ की पूजा और उनके आशीर्वाद स्वरूप माता सीता का ब्याह श्री राम के साथ सफलता के साथ हुआ था।
एक दूसरे प्रकरण में श्री रामचरितमानस के अनुसार ही युद्ध से पहले , लंका पर विजय की इच्छा से भगवान श्री राम ने नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की थी। जिस पूजा को चंडी पूजा के नाम से जाना जाता है। इस पूजा के फलस्वरूप श्री राम ने लंका पर विजय पायी थी और रावण का वध कर सके।
भगवान राम और माँ दुर्गा की कथाओं से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुराई चाहे जितनी भी बड़ी और शक्तिशाली क्यों न हो, उसे साहस और सत्य के बल पर हराया जा सकता है। इसके साथ ही नवरात्र और दुर्गा पूजा का पर्व सामाजिक मेलजोल और आपसी भाईचारा बढाने में भी सहायता करता है।
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