सोशल मीडिया से पत्रकारिता की चुनौतियां
सत्येन्द्र कुमार पाठक
जहाँ सोशल मीडिया ने पत्रकारों को शक्तिशाली उपकरण दिए हैं, वहीं इसने कई गंभीर चुनौतियाँ भी खड़ी कर दी हैं, जो पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों को खतरे में डाल रही हैं। गलत सूचना और फर्जी खबरों का तेजी से प्रसार - यह सोशल मीडिया की सबसे बड़ी चुनौती है। झूठी खबरें और गलत सूचनाएँ आग की तरह फैलती हैं, अक्सर सच्ची खबरों से भी तेज। सनसनीखेज हेडलाइन्स और भावनात्मक रूप से भड़काने वाली सामग्री आसानी से वायरल हो जाती है, जिससे दर्शकों को यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या सच है और क्या झूठ। यह गलत सूचना न केवल दर्शकों के भरोसे को कम करती है, बल्कि समाज में भ्रम और विभाजन को भी बढ़ाती है। पत्रकारों को अब न केवल खबर रिपोर्ट करनी होती है, बल्कि गलत सूचनाओं का तथ्य-जाँच (fact-checking) करके उनका खंडन भी करना होता है, जो एक समय लेने वाली और कठिन प्रक्रिया है।
. सटीकता पर गति का दबाव - सोशल मीडिया के "पहले खबर देने" के दबाव के कारण, पत्रकार अक्सर सटीकता की कीमत पर गति को प्राथमिकता देते हैं। वे तेजी से ट्वीट करने या पोस्ट करने के चक्कर में जानकारी की ठीक से जाँच नहीं कर पाते। यह जल्दबाजी गलत रिपोर्टिंग का कारण बन सकती है, जिसे बाद में ठीक करना मुश्किल होता है। एक गलत खबर के वायरल होने के बाद, उसका खंडन करने वाली सही खबर का प्रसार अक्सर बहुत कम होता है, जिससे नुकसान हो चुका होता है। यह प्रवृत्ति पत्रकारिता के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत – सत्यता – पर सीधे हमला है।
ऑल जनित सामग्री का बढ़ता खतरा - जनरेटिव AI टूल्स और डीपफेक तकनीक ने गलत सूचना के खतरे को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। AI अब यथार्थवादी दिखने वाले लेख, वीडियो और ऑडियो बना सकता है, जिससे यह पहचानना लगभग असंभव हो जाता है कि कौन सी सामग्री असली है और कौन सी नकली। डीपफेक वीडियो, जिसमें किसी व्यक्ति को कुछ ऐसा कहते हुए दिखाया जा सकता है जो उसने कभी नहीं कहा, समाज में व्यापक भ्रम और अविश्वास पैदा कर सकते हैं। पत्रकारों को अब न केवल पारंपरिक गलत सूचना से लड़ना होगा, बल्कि AI-जनित दुष्प्रचार के इस नए और शक्तिशाली रूप का भी सामना करना होगा।
दर्शकों की बदलती अपेक्षाएँ - सोशल मीडिया के युग में दर्शकों की अपेक्षाएँ बदल गई हैं। उन्हें अब संतुलित और गहन खबरों की बजाय दिलचस्प और भावनात्मक सामग्री पसंद आती है। यह पत्रकारों पर सनसनीखेज खबरें बनाने का दबाव डालता है, क्योंकि ऐसी खबरें अधिक लाइक और शेयर पाती हैं। यह प्रवृत्ति पत्रकारिता को एक गंभीर और सूचनात्मक पेशे से बदलकर मनोरंजन उद्योग की ओर धकेल सकती है, जहाँ गहराई से की गई रिपोर्टिंग की कद्र कम होती है। नैतिक चुनौतियाँ और संपादकीय अखंडता - सोशल मीडिया पत्रकारों के लिए कई नैतिक चुनौतियाँ पैदा करता है। पत्रकारों को अपने व्यक्तिगत विचारों और पेशेवर कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाना होता है। क्या एक पत्रकार को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर राजनीतिक राय व्यक्त करनी चाहिए? क्या उन्हें ऑनलाइन ट्रोलिंग का जवाब देना चाहिए? ये सभी प्रश्न उनकी संपादकीय अखंडता और पेशेवर नैतिकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। सोशल मीडिया पर एक गलत कदम उनकी और उनके संस्थान की विश्वसनीयता को खतरे में डाल सकता है।
ऑनलाइन भेदभाव और धमकियाँ - पत्रकारों, विशेष रूप से महिला पत्रकारों को सोशल मीडिया पर ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकियों और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। ये धमकियाँ अक्सर व्यक्तिगत और हिंसक होती हैं, जो पत्रकारों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इस तरह का उत्पीड़न उन्हें अपनी रिपोर्टिंग से पीछे हटने या कुछ विषयों पर बोलने से डरने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा असर पड़ता है। सूचना पर नियंत्रण का नुकसान - एक बार जब कोई खबर या गलत सूचना सोशल मीडिया पर पोस्ट हो जाती है, तो उस पर नियंत्रण खो जाता है। यह तेजी से वायरल हो सकती है, और गलत जानकारी को बाद में ठीक करना बहुत मुश्किल होता है। पारंपरिक पत्रकारिता में, एक गलत खबर को वापस लिया जा सकता था या उसका खंडन प्रकाशित किया जा सकता था, लेकिन सोशल मीडिया के विकेन्द्रीकृत स्वरूप में यह लगभग असंभव है। भविष्य की राह: नए कौशल और बदलते नियम की चुनौतियों का सामना करने के लिए, पत्रकारों को नए कौशल सीखने होंगे और अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव लाना होगा। तथ्य-जाँच और सत्यापन का कौशल - आज के पत्रकार को एक सत्यापन विशेषज्ञ (verification expert) भी होना चाहिए। उन्हें यह जानने की जरूरत है कि सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही जानकारी, फोटो और वीडियो की प्रामाणिकता की जाँच कैसे की जाए। उन्हें तथ्य-जाँच (fact-checking) के उन्नत उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करना सीखना होगा, ताकि वे गलत सूचना को पहचान सकें और उसका खंडन कर सकें।डिजिटल साक्षरता और AI का ज्ञान - पत्रकारों को डिजिटल साक्षरता में कुशल होना चाहिए। उन्हें AI-जनित सामग्री, डीपफेक और अन्य डिजिटल हेरफेर तकनीकों को पहचानना सीखना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि ये प्रौद्योगिकियाँ कैसे काम करती हैं और उनका उपयोग दुष्प्रचार के लिए कैसे किया जा सकता है।
विश्वसनीयता का निर्माण - भरोसे की कमी के इस माहौल में, पत्रकारों को अपनी विश्वसनीयता को फिर से स्थापित करना होगा। इसका मतलब है कि उन्हें अपनी रिपोर्टिंग में पारदर्शिता अपनानी होगी, अपने स्रोतों का खुलासा करना होगा, और अपनी गलतियों को स्वीकार करना होगा। अपनी विश्वसनीयता को ब्रांड बनाना आज के पत्रकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम है। दर्शकों के साथ एक जिम्मेदार संवाद - पत्रकारों को दर्शकों के साथ एक जिम्मेदार और सम्मानजनक संवाद स्थापित करना होगा। उन्हें अपनी टिप्पणियों को मॉडरेट करना सीखना होगा और ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होने पर खुद को और अपनी टीम को बचाना होगा।सोशल मीडिया ने पत्रकारिता के लिए एक दोधारी तलवार की तरह काम किया है। इसने पत्रकारिता को पहले से कहीं अधिक सुलभ और सहभागी बनाया है, लेकिन साथ ही इसके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा भी पैदा कर दिया है। रीयल-टाइम रिपोर्टिंग और दर्शक सहभागिता जैसे अवसर जहां पत्रकारिता को सशक्त बनाते हैं, वहीं गलत सूचना, ऑल -जनित सामग्री और नैतिक चुनौतियाँ इसकी नींव को हिला रही हैं। भविष्य में, पत्रकारिता का अस्तित्व इस बात पर निर्भर करेगा कि पत्रकार इन चुनौतियों का कितनी प्रभावी ढंग से सामना करते हैं। उन्हें न केवल अच्छे रिपोर्टर बनना होगा, बल्कि तथ्य-जांच करने वाले, डिजिटल साक्षर और नैतिकता के प्रहरी भी बनना होगा। अंत में, यह पत्रकारों की विश्वसनीयता और सत्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ही है जो पत्रकारिता को सोशल मीडिया के इस शोर भरे और अनियंत्रित वातावरण में प्रासंगिक बनाए रखेगी।
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