
"पिता की सीख"
प्राचीन समय की बात है। विराटनगर में कपिलदेव शर्मा नाम के एक वृद्ध रहा करते थे। वे बड़े ही बुद्धिमान, परिश्रमी एवं मृदुभाषी थे। विनोदप्रिय स्वभाव होने के कारण उनके कई अच्छे मित्र थे। ठीक इनके स्वभाव के विपरीत इनका पुत्र मनोज बुद्धिहीन, कटुभाषी एवं कामचोर था। पिता के कामों में हाथ बंटाने के बजाय वह दिनभर इधर - उधर मटरगश्ती करता फिरता था। उसके पिता यह सोंचकर परेशान रहते थे कि मेरे मरने के बाद इसके जीवन की गाड़ी किस तरह चलेगी। चिन्ताग्रस्त होने के कारण वे हमेशा बीमार रहने लगे । अपना निकट समय आया देख उन्होंने पुत्र को अपने पास बुलाया। पुत्र को व्यवहारिकता की शिक्षा देते हुए उन्होंने कहा , " बेटा, मेरे मरने के बाद मेरी दो बातें हमेशा याद रखना। पहली बात यह कि "ठण्डे जाना और ठण्डे आना।" दूसरी बात यह कि "दलान पर एक हाथी जरूर बाँधना ।" इन दोनों बातों को ध्यान में रखोगे तभी जीवन रूपी नैया का सही संचालन कर पाओगे।" इतना कहने के बाद वे परलोक सिधार गए।
पिता की मृत्यु के बाद घर की समस्त जिम्मेवारी उसके ऊपर ही आ गयी। अचानक आई इस मुसीबत से वह घबरा उठा। उसके पिता का बहुत बड़ा कारोबार निकट के गाँव में था। पिता की पहली बात " ठण्डे जाना और ठण्डे आना" का अर्थ उसने लगाया कि कहीं भी छाया में जाएँ और छाया में आएँ । वह इस बात पर गंभीर रूप से सोंचने लगा कि आखिर किस तरह कहीं भी छाया में आया और जाया जा सकता है। अन्तत: उसने फैसला किया कि क्यों ना अपने पिता के मित्रों से इसका हल पूछ लूँ। यही विचार करके वह पिता के एक मित्र के पास पहुंचा और अपनी समस्या को बताया। उसकी समस्या को गौर से सुनने के बाद उन्होंने कहा , " तुम अपने पिता की इतनी छोटी-सी बात को भी नहीं समझ सके। उनका कहने का तात्पर्य है कि अपने घर से लेकर कारखाना तक सड़क के दोनों तरफ पेड़ लगवा दो ।जब तुम घर से कारखाना जाओगे तो पेड़ की छाया मिलेगी और जब वापस आओगे तो छाया मिलेगी। पिता के मित्र की बात सुनकर वह खुश हो गया।
अगले दिन प्रातःकाल से ही पेड़ लगाना शुरू किया । पिता के एक अन्य मित्र ने जब उसे वृक्ष लगाते हुए देखा तो पूछा , "बेटा, आखिर किस खुशी में तुम यह वृक्ष लगा रहे हो।'' उसने कहा कि पिताजी ने मरने से पहले कहा था कि 'ठण्डे जाना और ठण्डे आना' इसीलिए वृक्ष लगा रहा हूँ ताकि कारखाना जाने और आने में छाया मिले। उसके जबाव को सुनकर पिता के मित्र ने कहा , "बेटा तुम्हारे पिता के कहने का तात्पर्य यह नहीं था। उनका कहने का तात्पर्य था कि तुम सुबह सवेरे ही कारखाना जाना और देर रात से पहले ही घर लौट जाना।" उनकी बात को सुनकर वह पूर्णतः संतुष्ट हो गया।
पिता की पहली सीख का अर्थ समझ लेने के बाद दूसरी सीख के अर्थ समझने के लिए चिन्तित रहने लगा। काफी प्रयत्न के बाद भी वह इस उलझन को नहीं सुलझा सका। अन्ततः वह हाथी खरीदने के लिए अकेला ही निकल पड़ा। हाथी खरीदने के लिए वह मेला में घूम रहा था कि अचानक उसकी मुलाकात पिता के उसी मित्र से हो गयी जिसने पहली पहेली का अर्थ समझाया था। पिता के मित्र ने पूछा , " बेटा, मेला में तुम क्या खरीदने आये हो। उसने कहा कि पिताजी ने मरते समय दूसरी बात यह कही थी कि अपने दलान पर एक हाथी जरूर बाँधना । इसीलिए मैं हाथी खरीदने आया हूं। पिता के मित्र ने कहा कि तुम्हारे पिता के कहने का तात्पर्य यह नहीं था बल्कि उनके कहने तात्पर्य यह था कि अपने दलान पर आग की व्यवस्था करके रखना ताकि हमेशा तुम्हारे दलान पर लोगों की बैठकी लगी रहे। इससे तुम्हारे दरवाजे पर हमेशा चहल-पहल रहेगा। आग का महत्त्व जाड़ा, जाड़ा, गर्मी एवं बरसात तीनों मौसम में होता है। जाड़े में आग सेंकने के लिए लोगों की भीड़ रहेगी। गर्मी में मच्छर एवं कीड़े-मकोड़े भगाने में सहायक होता है। हाथी पालने वाले के यहाँ भी हाथी की सेवा के लिए तीन-चार व्यक्ति हमेशा दलान पर मौजूद रहते हैं। तुम्हारे पिता के कहने का यही तात्पर्य था। दलान पर यदि लोग रहेंगे तो मुसीबत के समय में काम भी आएँगे। पिता के मित्र की बात सुनकर वह संतुष्ट हो घर लौट आया और अपने परिवार के साथ हँसी - खुशी जीवन व्यतीत करने लगा।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कोई कार्य करने से पहले उसपर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। बिना सोंचे - समझे कदम उठाने से प्रायः असफलता ही हाथ लगती है। अपनी समझ के साथ-साथ समझदार मित्रों की सलाह पर भी विचार करना चाहिए। बेवकूफ मित्रों की सलाह नुकसान ही पहुँचाती है। यदि विनोद भी पिता के पहले मित्र की बात मानता तो नुकसान ही उठाना पड़ता।
➡️ सुरेन्द्र कुमार रंजन
( स्वरचित एवं अप्रकाशित लघुकथा)
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