हिंदी दिवस: इतिहास, महत्व और हमारी पहचान
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहाँ हर कुछ किलोमीटर पर भाषा और संस्कृति बदल जाती है, वहाँ एक ऐसी भाषा का होना जो पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोए, बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदी ने यह भूमिका सदियों से निभाई है। 14 सितंबर का दिन, जिसे हम हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं, सिर्फ एक भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय पहचान, गौरव और एकता का प्रतीक है। हिंदी दिवस मनाने के पीछे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय है। स्वतंत्रता के बाद, भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक राष्ट्र की राजभाषा का चुनाव करना था। संविधान सभा में इस पर गहन चर्चा हुई। महात्मा गांधी, तिलक , मदनमोहन मालवीय , पंडित जवाहरलाल नेहरू, पुरूषोत्तम दास टंडन , सरदार वल्लभभाई पटेल, और राजाजी (चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) जैसे नेताओं ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन किया, क्योंकि यह देश के एक बड़े हिस्से में बोली और समझी जाती थी। आख़िरकार, 14 सितंबर 1949 को एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। संविधान सभा ने बहुमत से यह निर्णय लिया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी। इसके साथ ही, देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को स्वीकार किया गया। इस निर्णय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में भी शामिल किया गया। इस अनुच्छेद के अनुसार, "संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।" इस ऐतिहासिक निर्णय का सम्मान करने और हिंदी के महत्व को जन-जन तक पहुँचाने के लिए, महान हिंदी साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिंह के जन्मदिन, 14 सितंबर, को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।
हिंदी सिर्फ़ राजभाषा नहीं है, बल्कि यह कई मायनों में भारत की आत्मा है। इसका महत्व कई स्तरों पर समझा जा सकता है:हिंदी भारत के विभिन्न राज्यों के लोगों को आपस में जोड़ने का काम करती है। यह एक ऐसी संपर्क भाषा है जिसे उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक लोग कम या ज्यादा समझ सकते हैं। जब एक तमिल भाषी व्यक्ति एक बंगाली भाषी व्यक्ति से मिलता है, तो हिंदी अक्सर उनके संवाद का माध्यम बनती है। यह भाषा भाषाई दीवारों को तोड़कर लोगों को एक-दूसरे के करीब लाती है। हिंदी ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सदियों से संजोकर रखा है। कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, और आधुनिक काल के प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे महान साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हमारी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को जीवंत रखा है। हिंदी साहित्य में भक्ति, प्रेम, वीरता और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।विश्व में हिंदी को स्थान दिलाने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है ।
आज हिंदी सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। यह विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है। मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम जैसे देशों में हिंदी बोलने वालों की एक बड़ी आबादी है। इसके अलावा, दुनिया के 150 से भी ज़्यादा विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। जब हम हिंदी बोलते हैं, तो हम सिर्फ अपनी भाषा का उपयोग नहीं करते, बल्कि विश्व में अपने देश की पहचान का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
आज के तकनीकी युग में हिंदी ने अपनी जगह मजबूती से बनाई है। इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया पर हिंदी का उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स हिंदी को प्राथमिकता दे रहे हैं। यूनिकोड ने हिंदी में टाइपिंग को आसान बना दिया है, जिससे हर व्यक्ति के लिए हिंदी में सामग्री बनाना और पढ़ना सुलभ हो गया है। हिंदी अब केवल साहित्य की नहीं, बल्कि व्यापार और प्रौद्योगिकी की भी भाषा बन रही है।
महात्मा गांधी ने कहा था, "राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।" हिंदी दिवस हमें इस बात की याद दिलाता है कि अपनी भाषा को सम्मान देना हमारे आत्मसम्मान और स्वाभिमान के लिए कितना ज़रूरी है। अपनी मातृभाषा में सोचना, बोलना और लिखना हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है। हिंदी दिवस सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक अवसर है जब हम सब मिलकर हिंदी के महत्व को समझें, उसे दैनिक जीवन में अपनाएं और आने वाली पीढ़ियों को भी इस समृद्ध भाषा से परिचित कराएं। हिंदी को बढ़ावा देना केवल एक भाषा का प्रचार करना नहीं है, बल्कि अपनी पहचान और राष्ट्रीय गौरव को और भी सशक्त बनाना है।
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