गालियों की राजनीति : समाधान तो खोजना पड़ेगा
डॉ राकेश कुमार आर्य
आजकल का दौर ऐसा है जिसमें राष्ट्रीय मुद्दों को चुनावी मुद्दा न बनाकर भावनात्मक बातों के सहारे चुनाव जीतने का प्रबंध किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक दल नौसिखिया कार्यकर्ताओं से भरा हुआ होता है। किसी भी राजनीतिक दल के द्वारा राजनीतिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करने की शिक्षा के लिए शिविरों का आयोजन करने की परंपरा भारत में नहीं है। जो जितना अधिक बदतमीज हो और जितना अधिक नीचता पर उतर आए उसे भी राजनीति में एक गुण के रूप में स्थान दिया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक दल गुंडों, बदमाशों या अपराधियों को संरक्षण इस आधार पर देता हुआ मिलता है कि ये कभी किसी दूसरे ' बदमाश राजनीतिक दल ' का सामना करने में सहायता कर सकते हैं।
वास्तव में हमारे देश में इस समय 563 तो नहीं परंतु 793 ( 543 लोकसभा के और 250 राज्यसभा के ) राजा महाराजा सांसदों के नाम पर काम कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश सांसद ऐसे होते हैं जो केवल हाथ उठाने के लिए संसद में बैठे होते हैं। उनका काम ( सत्तापक्ष या विपक्ष जैसी भी स्थिति हो ) अपने-अपने नेता के जोशीले भाषण पर मेजें थपथपाना होता है। अधिकांश सांसद या तो लोकसभा की कार्यवाही से अनुपस्थित रहते हैं या फिर बैठे-बैठे ऊंघते रहते हैं। उनके पास कोई राजनीतिक विमर्श नहीं होता। कोई चिंतन नहीं होता। कोई ठोस सुझाव नहीं होता और यदि होता है तो वह इतने संकोची होते हैं कि अपने नेता के डर के चलते अपने सुझाव या चिंतन को प्रस्तुत भी नहीं कर पाते। कहने का अभिप्राय है कि देश इस समय भी ' लोकतांत्रिक राजशाही' के दौर से गुजर रहा है । बस, अंतर इतना आया है कि आजकल राजाओं का लोकतंत्रीकरण कर दिया गया है। जब देश में चुपचाप राजाओं का लोकतंत्रीकरण हो रहा था, तभी पर्दे के पीछे एक दूसरा खेल भी चल रहा था कि ' अपराधियों का भी राजनीतिकरण' कर दिया गया था। 'राजाओं का लोकतंत्रीकरण' और ' अपराधियों का राजनीतिकरण', बस यही वह पेंच है जो हमें बार-बार राजनीतिक मंचों से अपशब्दों को सुनने के लिए मजबूर करता है। स्वाधीनता प्राप्ति से लेकर अब तक अपने सांसदों या जनप्रतिनिधियों को राजनीतिक मर्यादाओं का पाठ पढ़ाने के लिए हमने कभी बड़े स्तर पर कार्यशाला का आयोजन होते हुए नहीं देखा। नई लोकसभा के गठन के बाद पहले सत्र से भी पहले नए बने सांसदों को राजनीतिक मर्यादा का पाठ पढ़ाने के लिए किसी वरिष्ठ सदस्य को इस बात के लिए नियुक्त नहीं किया गया जो उन्हें सभ्य राजनीतिक आचरण सिखाने की क्षमता रखता हो। लगता है कि देश को चलाने वाले लोग अपने आप को यह दिखाना चाहते हैं कि वे भगवान के यहां से ही देश चलाने के लिए तैयार होकर आते हैं। कितनी बड़ी विडंबना है कि हमारे देश में एक जिले को चलाने के लिए किसी जिलाधिकारी को तो प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यकता है, यहां तक कि एक छोटे कर्मचारी से भी अपना कार्य समझने के लिए कार्यशाला में जाने की अपेक्षा की जाती है, परंतु देश चलाने के लिए राजनीतिक लोगों से ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती।
दोहरे मानदंडों के कारण हमारे जनप्रतिनिधि यह नहीं समझ पाए कि उन्हें विधानमंडलों में बैठकर कैसा आचरण निष्पादित करना है ? इसी का परिणाम है कि हमारे राजनीतिक प्रतिनिधि संसद में असंसदीय और अलोकतांत्रिक आचरण करते हुए देखे जाते हैं। अब तो यह अलोकतांत्रिक और अमर्यादित आचरण करना जनप्रतिनिधियों ने अपना अधिकार मान लिया है। अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक दल इसी प्रकार के असभ्य और अलोकतांत्रिक आचरण में नए-नए कीर्तिमान स्थापित करने की होड़ में लगा हुआ है।
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इस समय केवल एक ही मिशन पर काम कर रहे हैं कि जैसे भी हो सत्ता प्राप्त की जाए। इसके लिए अब वह बहुत अधिक उतावले दिखाई देते हैं। कभी उन्होंने ' चौकीदार चोर है' का नारा लगाया था। जिस पर उन्हें न्यायालय की डांट पड़ी थी। अब उन्होंने ' चौकीदार चोर है ' के स्थान पर ' वोट चोर' का नया नारा गढ़ लिया है । वे जानते हैं कि मैं जो कुछ कह रहा हूं वह पूर्णतया झूठ पर आधारित है । वे यह भी जानते हैं कि जब सत्ता प्राप्त कर ली जाती है तो उसके बाद इतिहास परिवर्तन करना तो चुटकियों का काम है। इसके साथ ही वह यह भी जानते हैं कि जब सत्ता प्राप्त कर ली जाएगी तो ' वोट चोर' और ' चौकीदार चोर है' जैसे नारों का महिमामंडन कर उन्हें भी इतिहास में वैसे ही स्थान दिया जाएगा, जैसे कांग्रेस के छोटे-मोटे आंदोलनों को भी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में बढ़ा चढ़ाकर लिख दिया गया है। राहुल गांधी यह भी जानते हैं कि यदि सत्ता प्राप्त नहीं की गई तो उनके पाप उजागर होते रहेंगे और कांग्रेस ने जितना कुछ देश का अहित किया है, उसकी जानकारी लोगों को होती चली जाएगी। यही कारण है कि राहुल गांधी के भाषण लिखने वाले लोग उनके भाषणों में उत्तेजना फैलाने वाली बातों को लिख रहे हैं। राहुल गांधी इन उत्तेजनात्मक बातों को झूठ मानकर भी सत्य के रूप में पेश कर रहे हैं। इसका फलितार्थ यह निकल रहा है कि राहुल गांधी के लोग अर्थात उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और छुटभैया नेता उत्तेजित होते जा रहे हैं। जितना उनका नेता प्रधानमंत्री को चोर चोर की गाली देता है , उतना ही राजनीतिक कार्यकर्ता अमर्यादित होते जा रहे हैं। यही कारण है कि वह अपने नेता से प्रेरणा पाकर गालियों तक उतर आए हैं।
राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं पर अंकुश नहीं लगाएंगे। क्योंकि वह जानते हैं कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में बड़ी मुश्किल से जान पड़ी है। यदि उनको टोका गया तो वह ठंडे पड़ जाएंगे। एक प्रकार से राहुल गांधी अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं को यह प्रशिक्षण दे रहे हैं कि यदि कल को किसी गैर कानूनी ढंग से अर्थात बांग्लादेश की तर्ज पर देश में सत्ता परिवर्तन होता है तो वह मरने मारने के लिए तैयार रहें । वे झूठ को भी अपने कार्यकर्ताओं के मन मस्तिष्क में एक सत्य के रूप में बैठा देना चाहते हैं। कहने का अभिप्राय है कि अभद्र गालियों का यह सिलसिला अभी रुकेगा नहीं । फिर करना क्या चाहिए ? निश्चित रूप से ऐसी टिप्पणियों पर रोक लगाने के लिए कठोर कानून लाया जाना चाहिए। राजनीतिक लोगों का प्रभाव सीधे समाज पर पड़ता है और हम असभ्य समाज का निर्माण करने की अनुमति किसी को नहीं दे सकते।
(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुपर से दतिहासकर और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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