आज़ादी का शोर और नगाड़े: रामू, श्यामू और हमारा भारत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
एक ज़माना था, जब देश ने सचमुच आज़ादी की साँस ली थी। शहीदों के लहू से सींचा गया वह भारत, जहाँ हर कोई अपने सपनों को पंख लगा रहा था। तब देश के कर्णधारों ने संविधान की नींव रखी, एक ऐसी किताब जिसमें हर भारतीय की गरिमा और अधिकार सुरक्षित थे। बोलने की आज़ादी मिली, जाति-धर्म से ऊपर उठने का मौका मिला, और हर किसी को आगे बढ़ने का समान अवसर दिया गया। लेकिन उस आज़ादी के साथ एक और चीज़ मिली— श्यामू! हमारा श्यामू, जो उस आज़ादी के शोर को अपने नगाड़ों की धुन में बदल रहा था। उसके पड़ोसी रामू का बेटा राजू बीमार था। रामू ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई, थोड़ा धीरे! मेरा बेटा बीमार है।” पर श्यामू ने तुरंत संविधान की दुहाई दी, "मैं आज़ाद भारत का नागरिक हूँ! मुझे शोर मचाने से रोकने वाले तुम कौन होते हो?"आज श्यामू, हमारे नेता, मंचों पर खड़े होकर वही नगाड़े बजा रहे हैं— जोर-जोर से। उनका नगाड़ा है जातिवाद का, क्षेत्रवाद का, और सांप्रदायिकता का। उनके पास महंगाई का जवाब नहीं है, बेरोज़गारी पर चर्चा करने का समय नहीं है, और न ही राष्ट्रीय एकता की कोई चिंता है। वे जानते हैं कि जब तक नगाड़ों की आवाज़ तेज़ रहेगी, जनता का ध्यान असली समस्याओं से भटका रहेगा।
आप सही कहते हैं, एक समय था जब राजनीति में गरिमा होती थी। नेहरू, पटेल, शास्त्री... ये वो नाम थे जिन्होंने अपनी प्रतिष्ठा सिद्धांतों से बनाई थी, न कि अपशब्दों से। लेकिन आज का मंच अलग है। यहाँ प्रतिष्ठा कमाने का सीधा रास्ता है— विरोधी को गाली दो, चुनाव आयोग पर उँगली उठाओ, और संविधान की दुहाई देकर अपने मनमाने काम करो। श्यामू की तरह! आज का श्यामू, यानी हमारा नेता, चुनावी मंचों पर खड़ा होकर संविधान की कसम खाता है, लेकिन उसी संविधान के मूल्यों को तार-तार कर देता है। उसे पता है कि सत्ता का रास्ता गरीबी और अमीरी के बीच की खाई को पाटने से नहीं, बल्कि जातियों और धर्मों के बीच दीवार खड़ी करने से होकर गुज़रता है। उसे पता है कि जब तक वह रामू के बच्चों को आपस में लड़वाता रहेगा, तब तक रामू उससे यह नहीं पूछेगा कि उसके बच्चे भूखे क्यों हैं।
आज का रामू, यानी आम नागरिक, अपने घर में बैठकर परेशान है। उसके बच्चे राजू की तरह बीमार हैं— कोई बेरोज़गारी से जूझ रहा है, कोई महंगाई की मार झेल रहा है, और कोई सुरक्षित भविष्य के लिए संघर्ष कर रहा है। रामू हाथ जोड़कर कहता है, "नेताजी, विकास की बात करो, रोज़गार की बात करो!" पर श्यामू कहता है, "यह मेरी आज़ादी है! मुझे नगाड़े बजाने से कोई नहीं रोक सकता!" जब रामू के लाख समझाने पर भी श्यामू नहीं माना, और उसके बेटे राजू की हालत गंभीर होने लगी, तो रामू ने जो किया, वह आज की राजनीति के लिए एक सबक है। रामू ने नगाड़ा फोड़ा और श्यामू की पिटाई कर दी। यह गुस्सा था, एक पीड़ित पिता का गुस्सा। यह गुस्सा है उस आम आदमी का, जो अब सह नहीं सकता। यह नगाड़ा तोड़ना, प्रतीकात्मक रूप से, उन विभाजनकारी नीतियों को खत्म करने का प्रयास है, जिन्होंने देश को खोखला कर दिया है
जब गाँव के लोग इकट्ठे हुए और रामू ने अपनी आपबीती सुनाई, तो उन्हें भी एहसास हुआ कि आज़ादी का मतलब किसी और को तकलीफ देना नहीं है। आज़ादी का मतलब है जिम्मेदारी। रामू की बात सुनकर गाँववालों ने श्यामू को गाँव छोड़ने पर मजबूर कर दिया। यह कहानी आज के भारत में भी दोहराई जा रही है। रामू और श्यामू आज भी मौजूद हैं। आज भी बहुत से नेता हैं जो नगाड़े बजा रहे हैं, और बहुत से आम लोग हैं जो चुपचाप सबकुछ सह रहे हैं। लेकिन अब वह समय आ रहा है जब रामू का गुस्सा भड़केगा। जब देश की जनता जागेगी और उन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाएगी जो राष्ट्रहित से ज्यादा अपने नगाड़ों की परवाह करते हैं।
आज़ादी का मतलब सिर्फ बोलने की आज़ादी नहीं है, बल्कि उस बोलने की आज़ादी का जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना भी है। यह नगाड़े बजाने की आज़ादी नहीं, बल्कि दूसरों के दर्द को समझने की संवेदनशीलता है। जिस दिन हमारे राजनेता श्यामू की तरह नगाड़े बजाना बंद करके रामू के बेटे राजू की बीमारी का इलाज करना शुरू करेंगे, उस दिन सही मायनों में आज़ादी का जश्न मनाया जाएगा। आज के नेता, जो अपनी राजनीति को गरीबी और अमीरी से नहीं बल्कि जातिवाद और क्षेत्रवाद से चलाते हैं, वे शहीदों की आत्मा को ठेस पहुँचा रहे हैं। वे देश की एकता और अखंडता पर चोट कर रहे हैं। जब देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, तो उन्होंने यह सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनका आज़ाद भारत जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर इतना खंडित हो जाएगा। यह विडंबना है कि आज भी रामू और श्यामू हैं। सवाल यह है कि क्या हमारा देश उन गाँववालों की तरह जाग पाएगा, जो सही और गलत में फर्क कर सकते हैं? क्या हम अपने नगाड़ों को फोड़कर शांति और विकास की धुन बजाना शुरू कर पाएंगे? यह व्यंग्य नहीं, बल्कि एक दर्द है। उस भारत का दर्द, जो आज भी अपने ही शोर में खोया हुआ है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com