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'अधूरी शिक्षा, अधूरा समाज'

'अधूरी शिक्षा, अधूरा समाज'

सत्येन्द्र कुमार पाठक
कहानी का मुख्य पात्र प्रिया है, जो गाँव से आती है और अपनी शिक्षा को गरीबी से बाहर निकलने का एकमात्र जरिया मानती है। उसके परिवार में उसका छोटा भाई छोटू है, जो अपनी बहन को अपना आदर्श मानता है। प्रिया की सबसे अच्छी सहेली सोनी है, जो एक छोटे शहर की है और वह भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही है।
कहानी की शुरुआत गाँव से होती है, जहाँ प्रिया ने अपनी एमबीए की डिग्री हासिल की है। गाँव के लोग, खासकर शिक्षक और उसके माता-पिता, उस पर बहुत गर्व करते हैं। वे मानते हैं कि प्रिया उनके गाँव का नाम रोशन करेगी और एक दिन बड़ी ऑफिसर बनेगी। लेकिन यह सिर्फ एक सपना बनकर रह जाता है, जब प्रिया को दिल्ली में सिर्फ 15,000 की नौकरी मिलती है। दिल्ली में प्रिया की मुलाकात मोनी से होती है, जो एक दलाल है और लड़कियों को देह व्यापार के दलदल में धकेलता है। मोनी, जिसे यहाँ एजेंट के रूप में जाना जाता है, प्रिया की मजबूरी को भांप लेता है और उसे "आसान" कमाई का रास्ता दिखाता है। इसी बीच, कहानी में राजा नाम का एक युवक आता है, जो प्रिया के गाँव का है और दिल्ली में नौकरी की तलाश में है। राजा, प्रिया की मदद करने की कोशिश करता है, लेकिन वह भी बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के चक्र में फँस जाता है। वह देखता है कि कैसे ऑफिसर और नेता अपने स्वार्थ के लिए गरीबों का शोषण करते हैं।
चाटुकार चरित्र उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो सत्ता और पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। वे अक्सर नेताओं और अधिकारियों के इर्द-गिर्द रहते हैं और अपने फायदे के लिए गलत काम करते हैं।
जब प्रिया देह व्यापार में फँस जाती है, तो उसे पता चलता है कि यह सिर्फ मजबूरी नहीं है, बल्कि एक संगठित अपराध है। पुलिस का चरित्र यहाँ एक दोहरा रूप दिखाता है। कुछ पुलिस वाले, जैसे कि ईमानदार ऑफिसर, इस रैकेट को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन वे भी नेता और भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के दबाव में आ जाते हैं।
कहानी में सबसे महत्वपूर्ण समाज का चरित्र है। समाज ही वह अदृश्य शक्ति है जो प्रिया को इस रास्ते पर धकेलती है। समाज, जो एक तरफ शिक्षा का गुणगान करता है, वहीं दूसरी तरफ वह बेरोजगार और गरीब लड़कियों की मदद करने के बजाय उन्हें चरित्रहीन कहकर खारिज कर देता है।कहानी का चरम तब आता है जब छोटू अपनी बहन से मिलने दिल्ली आता है। वह देखता है कि प्रिया कैसी जिंदगी जी रही है और कैसे वह अपने परिवार से झूठ बोल रही है। इस दौरान, ऑफिसर और राजा, मोनी के गिरोह को पकड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन नेता और भ्रष्ट पुलिसकर्मी इस योजना को विफल कर देते हैं।
अंत में, प्रिया और सोनी मोनी के चंगुल से भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे असफल रहते हैं। कहानी इस दुखद निष्कर्ष पर समाप्त होती है कि कैसे शिक्षा और सपने, सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार के सामने हार जाते हैं।यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारा समाज कितना खोखला है। यह दिखाती है कि कैसे शिक्षा एक रामबाण नहीं है, बल्कि इसे सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था का भी समर्थन चाहिए। यह कहानी पुलिस, नेता, शिक्षक, और समाज की भूमिकाओं पर सवाल उठाती है और हमें यह जिम्मेदारी देती है कि हम सिर्फ पीड़ितों को दोषी न ठहराएं, बल्कि उन परिस्थितियों को भी समझें, जिन्होंने उन्हें मजबूर किया।यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि लाखों उन सपनों की है जो गरीबी और मजबूरी के दलदल में धँसकर दम तोड़ देते हैं। यह हमें empathy और action दोनों के लिए प्रेरित करती है।
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