ईश्वर की कारीगरी
✍️ डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"नक़्शे जो बने हैं उंगलियों में,
कभी न दो मिलते हैं जहाँ में।
ना हीं माँ की कोख में समता,
ना वो जुड़वाँ बच्चों में दिखता।
हर अंगुली की छाप नई,
ईश्वर की कलम से बनी यही।
ना अतीत से ना भविष्य से,
ना किसी के स्पर्श या स्पंदन से।
कला जहाँ रुकती विज्ञान की,
वहीं से शुरू होती भगवान की।
हर छुअन, हर रेखा, अनोखी बात,
ईश्वर की छवि, उसका जादू साथ।
कटे, जले तो भी न मिटती,
फिर से वही लकीर उगती।
न कोषिका घटती, न कोई बढ़ती,
हर रचना सटीक, हर रेखा जड़ती।
कैसा अद्भुत सृजन ये प्यारा,
हर इंसान में चित्रित सितारा।
ना कोई तन्हा, ना कोई बेसहारा,
जिसने गढ़ा, वो साथ हमारा।
जब श्वास नहीं थी, तब भी था,
गर्भ की गहराई में जो समाया था।
वही है रचयिता, वही है पालक,
उसका स्पर्श है जीवन का आलोक।
तो क्यों हों हम डरे या दुखी,
जब रचयिता सदा हो सन्निकट कहीं।
उसकी लिपि जो उंगली में लिखी,
यही तो पहचान! ईश्वर की साख बची।
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