बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है - “विजयादशमी”
आभा सिन्हा, पटना, 30 सितम्बर ::
विजयादशमी, जिसे आम बोलचाल में दशहरा भी कहते हैं, हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। शब्द "दशहरा" संस्कृत शब्द “दश-हर” से लिया गया है, जिसका अर्थ है – दस बुराइयों का नाश। यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पूरे भारतवर्ष में इसे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। विजयादशमी का त्योहार केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और कृषि परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है।
विजयादशमी का इतिहास भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में गहराई से अंकित है। इसे मुख्यतः दो ऐतिहासिक घटनाओं से जोड़ा जाता है।रामायण कालीन संदर्भ- इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध कर देवी सीता का उद्धार किया था। रावण दस सिर वाला और अत्यंत शूरवीर था, जो अधर्म और पाप का प्रतीक था। भगवान राम ने उसकी दानवी शक्ति का नाश कर धर्म की स्थापना की। इसलिए इस दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में दशहरा उत्सव में श्रीराम की लीलाओं का मंचन नौ दिनों तक किया जाता है, जिसे रामलीला कहा जाता है। दुर्गा पूजा से संबंधित- बंगाल, बिहार और अन्य पूर्वी राज्यों में यह पर्व मां दुर्गा के महिषासुर वध से जुड़ा है। देवी दुर्गा को शक्ति और साहस की प्रतीक माना जाता है। महिषासुर जैसे दुष्ट राक्षस का वध कर उन्होंने धर्म की स्थापना की। इसे नौ दिनों तक नवरात्र के रूप में मनाया जाता है, और दशमी के दिन उनके विसर्जन का आयोजन होता है।
विजयादशमी के ठीक पहले नौ दिनों तक नवरात्र मनाया जाता है। नवरात्र का अर्थ होता है – नौ रातें। इस दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन विशेष महत्व रखता है और अलग-अलग स्वरूपों का ध्यान किया जाता है। पहला दिन प्रतिपदा- देवी का कलश स्थापित किया जाता है। दूसरा से आठवां दिन तक नियमित पूजा, कीर्तन और दुर्गापाठ का आयोजन होता है। लोग संयमित रहते हैं और धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं। नवमी के दिन पांच कन्याओं को भोजन कराकर प्रसन्न किया जाता है। दशमी नवरात्र का अंतिम दिन, जिसे विजयादशमी कहा जाता है। नवरात्र के दौरान श्रद्धालु उपवास, सत्कार्य और दान पुण्य में जुटते हैं। यह समय आत्मसंयम, साधना और मानसिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
विजयादशमी केवल पर्व नहीं है, बल्कि धार्मिक प्रतीक है। इसे धार्मिक दृष्टि से दशहरे का मूल उद्देश्य है बुराई पर अच्छाई की जीत। यह धर्म, नैतिकता और न्याय का प्रतीक है। देवी दुर्गा और भगवान राम के जीवन से यह सिखने को मिलता है कि बुराई के सामने साहस और शक्ति की आवश्यकता होती है। विजयादशमी का संदेश है कि जीवन में अनुशासन, संयम और सच्चाई के मार्ग पर चलकर व्यक्ति हर प्रकार के अंधकार और पाप का नाश कर सकता है।
विजयादशमी सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व सामूहिकता, मेलजोल और संस्कृति की जीवंतता को दर्शाता है। उत्तर भारत के गांव और कस्बों में दशहरे के दौरान रामलीला का मंचन होता है। इसमें राम, रावण, लक्ष्मण और अन्य पात्रों की भूमिका स्थानीय कलाकार निभाते हैं। दशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। यह अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। कई जगहों पर दशहरा मेले लगते हैं। राजस्थान में शक्ति पूजा, बंगाल और मिथिला में दुर्गा पूजा, और मैसूर में विशेष रूप से महाराज की सवारी और मंदिर सजावट होती है।
कृषि प्रधान समाज में विजयादशमी का अलग महत्व है। यह फसल कटाई और नए बीज बोने का शुभ समय माना जाता है। लोग जौ और अन्य अनाज के अंकुरित दानों को घर में रखते हैं। कुछ स्थानों पर जौ के अंकुर तोड़कर पगड़ी या टोपी में रखकर सौभाग्य की कामना की जाती है। घोड़े और अन्य पशुओं की पूजा कर उन्हें शुभ कार्यों के लिए तैयार किया जाता है। इस प्रकार, विजयादशमी कृषि, पशुपालन और प्राकृतिक जीवन के साथ भी जुड़ा हुआ है।
उत्तर भारत में दशहरा मुख्य रूप से रामलीला और रावण दहन के रूप में मनाया जाता है। गाँवों और कस्बों में मेले, चौकियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। लोग घोड़ों पर सवार होकर परिक्रमा करते हैं। पश्चिम भारत के राजस्थान और गुजरात में शक्ति पूजा और गरबा नृत्य का आयोजन होता है। लोग नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना करते हैं। पूर्वी भारत के बंगाल, मिथिला और ओडिशा में दशमी मां दुर्गा के विसर्जन का उत्सव होता है। यहाँ पर कलाकारी, सजावट और भव्य पंडाल तैयार किया जाता है। दक्षिण भारत में मैसूर का दशहरा प्रमुख है। चामुंडेश्वरी देवी मंदिर की भव्य सजावट और महाराज की सवारी देखने योग्य होती है। दक्षिण भारत में युद्ध कला और घोड़ा पूजा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
विजयादशमी के अवसर पर कई परंपराएँ निभाई जाती हैं। क्षत्रिय जाति अपने अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हैं। इसे शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता है। जिन घरों में घोड़ा होता है, उन्हें आंगन में लाकर उसकी परिक्रमा कराई जाती है। पुरुष घोड़े पर सवार होकर उत्सव में भाग लेते हैं। जौ के अंकुर घर में रखकर नई फसल और समृद्धि की कामना की जाती है। लोग इस दिन नीलकंठ के दर्शन करते हैं। इसे सौभाग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।
विजयादशमी यह सिखाता है कि जीवन में सत्य, धर्म और अच्छाई की हमेशा विजय होती है। यह पर्व अनुशासन, संयम और साहस के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। जीवन में किसी भी कठिन परिस्थिति में अच्छाई और धर्म के मार्ग पर टिके रहना चाहिए। नवरात्र में की जाने वाली साधना, उपवास और ध्यान आत्मशुद्धि की ओर ले जाता है। इस पर्व में लोग मिलजुल कर उत्सव मनाते हैं, जिससे सामाजिक सौहार्द और भाईचारा बढ़ता है।
भारत से बाहर भी विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है। जहाँ भारतीय समुदाय बसे हैं, वहां इस पर्व का आयोजन विशेष भव्यता से किया जाता है। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी इसे प्रमुख रूप से मनाया जाता है। विदेशी लोग भी रामलीला और रावण दहन को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं का वैश्विक प्रतीक बन गया है।
आज विजयादशमी आधुनिक युग में भी अपने मूल स्वरूप और संदेश को बनाए रखता है। शहरों में आधुनिक पंडाल और मेले लगते हैं। डिजिटल माध्यम से रामलीला और नवरात्र पूजा का प्रसारण किया जाता है। युवा वर्ग भी इस पर्व में उत्साहपूर्वक भाग लेता है। पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पुतले बनाने में कागज, जैविक सामग्री और पर्यावरण के अनुकूल रंगों का प्रयोग बढ़ रहा है।
विजयादशमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। यह सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई की विजय निश्चित है। यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और कृषि सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नवरात्र की साधना, देवी दुर्गा और भगवान राम के आदर्श, रामलीला का मंचन, पुतला दहन और मेलों की धूम-धाम सब मिलकर इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य पर्वों में शामिल करता है। विजयादशमी का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों वर्ष पहले था सत्य और धर्म का पालन करना, पाप और अधर्म का नाश करना और जीवन में साहस, संयम और समर्पण के साथ आगे बढ़ना।
-------------
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com