Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

११ सितम्बर १८९३ : स्वामी विवेकानन्द का शिकागो धर्म सम्मेलन और भारतीय गौरव

११ सितम्बर १८९३ : स्वामी विवेकानन्द का शिकागो धर्म सम्मेलन और भारतीय गौरव

✍️ डॉ. राकेश दत्त मिश्र
११ सितम्बर १८९३ का दिन भारतीय इतिहास का अमर दिन है। यह केवल एक संन्यासी का भाषण भर नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म का विश्व के समक्ष उद्घोष था। उस दिन जब स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन के मंच से अपने करुणामय शब्दों में कहा—

“Sisters and Brothers of America”

तो पूरा सभागार कई मिनटों तक तालियों से गूंज उठा। यह उद्घोष भारत की आत्मा का उद्घोष था—एक ऐसे राष्ट्र का उद्घोष, जो शताब्दियों की दासता के बावजूद अपनी आध्यात्मिक महानता को जीवित रखे हुए था।

🌸 स्वामी विवेकानन्द का जीवन और व्यक्तित्व

जन्म और बाल्यकाल

१२ जनवरी १८६३ को कोलकाता में विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के घर जन्मे नरेंद्रनाथ दत्त बाल्यकाल से ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे। संगीत, व्यायाम, तर्कशक्ति और स्मरणशक्ति में वे अद्वितीय थे।

गुरु रामकृष्ण परमहंस से भेंट


सत्य और ईश्वर की खोज में भटकते नरेंद्र की भेंट दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस से हुई। यह भेंट उनके जीवन का मोड़ साबित हुई। गुरु ने उनमें छिपे तेज को पहचाना और उन्हें आध्यात्मिक दिशा दी। यही नरेंद्र बाद में स्वामी विवेकानन्द कहलाए।

भारत भ्रमण और जागृति


गुरु के महाप्रयाण के बाद विवेकानन्द ने संन्यास लेकर भारतभर का भ्रमण किया। हिमालय से कन्याकुमारी तक की यात्राओं में उन्होंने भारत की गरीबी, अज्ञान और दासता की पीड़ा को देखा। इसी अनुभव ने उन्हें समझाया कि राष्ट्र की उन्नति के लिए शिक्षा, आत्मनिर्भरता और संगठन आवश्यक हैं।

🌍 शिकागो धर्म सम्मेलन : पृष्ठभूमि

सम्मेलन का उद्देश्य

१८९३ में अमेरिका के शिकागो नगर में विश्व धर्म महासभा आयोजित की गई। लक्ष्य था—विश्व के सभी धर्मों को एक मंच पर लाकर धार्मिक सौहार्द और शांति का मार्ग खोजना।
भारत की चुनौती

भारत उस समय अंग्रेज़ी दासता में जकड़ा हुआ था। पश्चिमी समाज भारत को निर्धन और पिछड़ा मानता था। ऐसे में भारत का प्रतिनिधित्व करना कठिन था।
अमेरिका में संघर्ष

शिकागो पहुँचने पर विवेकानन्द को पहचान और आमंत्रण के अभाव में कई दिन भूखे-प्यासे रहना पड़ा। किंतु हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे. एच. राइट ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर अनुशंसा की, जिससे उन्हें सम्मेलन में प्रवेश मिला।

📢 ११ सितम्बर १८९३ : ऐतिहासिक भाषण

मंच पर क्षण

जब गेरुए वस्त्रधारी, तेजस्वी नेत्रों वाले युवा संन्यासी मंच पर पहुँचे, तो सबकी निगाहें उन पर टिक गईं।

उन्होंने कहा—

“Sisters and Brothers of America”

सभागार गगनभेदी तालियों से गूंज उठा। यह संबोधन भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना का जीवंत रूप था।
भाषण के मुख्य बिंदु


धर्मों की समानता : सभी धर्म सत्य तक पहुँचने के अलग-अलग मार्ग हैं।


कट्टरता की आलोचना : संकीर्णता और असहिष्णुता मानवता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।


भारत की उदारता : भारत ने हमेशा सभी धर्मों का स्वागत किया है।


मानवता का संदेश : प्रेम, शांति और भाईचारा ही धर्म का उद्देश्य है।


वेदांत का परिचय : आत्मा की अमरता और सार्वभौमिक एकता।
🌐 विश्व पर प्रभाव


सम्मेलन के बाद विवेकानन्द विश्व प्रेस में छा गए।


उन्हें “Cyclonic Hindu Monk” कहा गया।


अमेरिका और यूरोप में उन्होंने वेदांत और योग का प्रचार किया।


पश्चिमी समाज ने पहली बार भारत को आध्यात्मिक महाशक्ति के रूप में पहचाना।
🇮🇳 भारत पर प्रभाव
आत्मगौरव का जागरण

दासता से दबे भारतवासियों में आत्मसम्मान जागा। लोग गर्व से कहने लगे—हम भारतवासी हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरणा

बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, श्रीअरविंद—सभी ने विवेकानन्द से प्रेरणा ली।
शिक्षा और सेवा

रामकृष्ण मिशन की स्थापना के माध्यम से उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्र में कार्य किए।
📖 भाषण का गहन विश्लेषण
“Sisters and Brothers of America”

यह केवल औपचारिक संबोधन नहीं था। यह भारतीय संस्कृति की आत्मा थी—“सभी मानव एक परिवार के सदस्य हैं।”
धर्मों की समानता

उन्होंने कहा कि जैसे नदियाँ समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सभी धर्म परमसत्य तक पहुँचने के मार्ग हैं।
कट्टरता की आलोचना

उनका वाक्य आज भी गूंजता है—
“संकीर्णता, कट्टरता और असहिष्णुता ने इस धरती को रक्त से लाल किया है।”
🌏 आज की प्रासंगिकता


धार्मिक सहिष्णुता – आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा से जूझती दुनिया को विवेकानन्द की आवश्यकता है।


शिक्षा का आदर्श – चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण पर आधारित शिक्षा।


युवा शक्ति का आह्वान – “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको।”


वैश्विक शांति – प्रेम, करुणा और सेवा ही मानवता का आधार हैं।
🕉️ भारतीय राजनीति और समाज पर प्रभाव

महात्मा गांधी : विवेकानन्द के विचारों से उनके धर्म और राष्ट्र की समझ गहरी हुई।

नेताजी सुभाष बोस : उन्होंने विवेकानन्द को आधुनिक भारत का निर्माता कहा।

डॉ. अंबेडकर : सामाजिक न्याय की चेतना में विवेकानन्द से प्रेरित हुए।

११ सितम्बर १८९३ केवल एक भाषण का दिन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का क्षण है। यह वह दिन है जब भारत की आत्मा ने अपनी महानता को पुनः पहचाना और दुनिया को शांति, सहिष्णुता और भाईचारे का मार्ग दिखाया।

स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण हमें आज भी प्रेरित करता है—


“अपने ऊपर विश्वास करो, अपनी संस्कृति पर गर्व करो और मानवता की सेवा ही धर्म मानो।”

यदि भारत और विश्व उनके विचारों को आत्मसात कर ले, तो निश्चय ही मानवता एक नए स्वर्णयुग की ओर बढ़ेगी।



हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ