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अपनी मौत का सामान इकट्ठा करता आदमी

अपनी मौत का सामान इकट्ठा करता आदमी

डॉ राकेश कुमार आर्य
भ्रष्टाचार इस समय देश में ही नहीं, सारी दुनिया में अपने चरम पर है। इस भ्रष्टाचार के कारण लोगों में अविश्वास का भाव पैदा हुआ है। नैतिकता और ईमानदारी बीते दिनों की बात हो चुकी हैं। विश्वास के संकट से जूझती हुई दुनिया एक ऐसी अंधेरी सुरंग में घुस चुकी है, जहां से उसे बाहर निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।
आज उत्तर भारत में बाढ़ के कारण हाहाकार मची हुई है, लोग अपने प्राण बचाने के लिए तड़प रहे हैं, किसी का भाई किसी से जुदा हो रहा है तो किसी का पिता, माता, बहन, पत्नी, बेटा , बेटी आदि साथ छोड़ रहे हैं तब राजनीति क्या कर रही है ? तब देश की राजनीति को केवल बिहार दिखाई दे रहा है। राजनीति इतनी निर्मम हो जाएगी और हम संवेदनाओं की परिभाषा तक को भूल जाएंगे ? - अब से 78 वर्ष पहले जब देश का लोकतंत्र अपने राजपथ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हो रहा था ,तब किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था।
इस समय सर्वत्र जल भराव की स्थिति बनी हुई है। इसका अभिप्राय है कि आधुनिकता और विकास के सारे दावे खोखले सिद्ध हो चुके हैं। हमारी इंजीनियरिंग फेल हो चुकी है या कहिए कि भ्रष्टाचार की दलदल में डूब चुकी है। मर चुकी है। जिन लोगों की आत्मा मर चुकी है, वे देश के शहरों के नक्शे पास करते हैं। उसे बसाने की जिम्मेदारी लेते हैं। जिन्होंने अपनी अपनी आत्माओं का सौदा कर दिया हो, उनसे आप संवेदनाओं का प्रदर्शन करने की अपेक्षा करते हैं। यह कुछ वैसा ही है, जैसे चील के घोंसले में मांस ढूंढने की स्थिति हो। महंगी शिक्षा नीति के कारण भ्रष्टाचार में डूबी हुई शैक्षणिक संस्थाओं ने भ्रष्टाचार का ही संस्कार देकर युवाओं को देश सेवा के लिए भेजा है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि युवाओं ने देश सेवा के स्थान पर पेट सेवा करनी प्रारंभ कर दी है। जब नेता भ्रष्टाचारी हो, योजनाकार भ्रष्टाचारी हो , उसे लागू करने वाले भ्रष्टाचारी हों तो बताओ देश कैसे चलेगा ?
हमारे शहरों या कस्बों की जल निकासी की नालियां इतनी क्षमता भी नहीं रखतीं कि उनमें प्रतिदिन का गंदा पानी निकलकर बाहर बड़े नालों के माध्यम से नदी तक पहुंच जाए। प्राचीन काल में जब हमारे पास में आजकल जैसी व्यवस्थाएं नहीं थी, तब भी हमारे पूर्वज गांवों को बसाने का काम किया करते थे। पुराने समय का प्रत्येक कस्बा और प्रत्येक गांव आपको आज भी ऊंचाई पर बसा हुआ दिखाई देगा। जहां पुराना मूल गांव या कस्बा है, वह स्थान आज भी ऊंचा है, यानी बाढ़ से बचाव की पूरी व्यवस्था। जबकि 1947 के बाद का बसा हुआ कस्बा या गांव उसकी अपेक्षा आज भी नीचे पर है, यानी डूब मरने की पूरी व्यवस्था। आज के मूर्ख योजनाकारों अथवा इंजीनियरों ने शहरों को बसाते समय उनको ऊंचाई पर बसाने का निर्णय नहीं लिया। जल निकासी की व्यवस्था नालियों के माध्यम से करके लोगों का मूर्ख बनाया गया है कि ऊंचाई पर बसने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमने जल निकासी की समुचित व्यवस्था कर दी है।
नोएडा ग्रेटर नोएडा दोनों महानगरों के पास से यमुना और हिंडन नामक दो-दो नदी बहती हैं। बहुत सस्ती दर पर नोएडा, ग्रेटर नोएडा ने किसानों से जमीन ली। कितने ही गांव यहां ऐसे थे, जहां पुराने समय में नदियों ने बहुत ऊंचा टीला बना दिया था । यह गांव इस टीले पर ही बसे थे और दूर-दूर तक फैले हुए टीले के उस क्षेत्र पर खेती भी कर रहे थे। नोएडा ,ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण ने इन सारे ऊंचे टीलों के भूड़ क्षेत्र की मिट्टी बेचकर मोटा मुनाफा कमाया । समतलीकरण के नाम पर शहर को नीचे में बसाने का काम आरंभ किया गया। यहां तक कि सड़कें भी नीची करके बनाई गई हैं अर्थात कल को बाढ़ जैसी गंभीर स्थिति यदि पैदा होती है तो सारा क्षेत्र डूब क्षेत्र में बदल जाएगा। अनेक ऊंचे टावर ऐसे हैं, जिनमें सभी में अंडरग्राउंड कार पार्किंग आदि बनाए गए हैं। बाढ़ के समय उन कार पार्किंग स्थलों में बहुत जल्दी से पानी भरेगा और जो लोग टावर में बचकर ऊपर भागने का प्रयास करेंगे, वह भी अपने आप को मौत से बचा नहीं पाएंगे।
इन लोगों की जल निकासी की योजना पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। जहां प्राचीन काल में ऊंचाई पर बसे हुए गांव की जल निकासी की नालियों से पानी तेजी से नीचे की ओर बहता था अर्थात उन नालियों में पानी को नीचे बहाने के लिए तीव्र प्रवाह पैदा करने के लिए ढलान दिया जाता था, वहीं आज के इन तथाकथित बुद्धिजीवी इंजीनियरों द्वारा बनाए गए जल निकासी के नालों में ढलान बहुत कम रखा गया है । जिसका परिणाम यह होता है कि इन नालों में पानी तेजी से नहीं बहता बल्कि वह उन नालों में भरकर खड़ा हो जाता है। जिससे नालों के पानी में सड़ांध पैदा होती है और वह पानी बीमारी फैलाने का कारण बनता है । इसके अतिरिक्त उनमें जंगली वनस्पति उगकर उन्हें अवरुद्ध करने का भी काम करती है। यद्यपि इन नालों को साफ करने के लिए सरकार की ओर से पैसा आवंटित किया जाता है, परंतु नगर पालिकाओं, महानगरपालिकाओं और संबंधित विभाग में बैठे भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों के कारण कभी-कभी तो किसी शहर में एक पैसा भी नालियों की सफाई पर खर्च नहीं किया जाता।
आजकल जिस प्रकार बारिश ने हाहाकार मचाया हुआ है, यदि सावधानी बरती गई होती और सुनियोजित ढंग से शहरों व कस्बों को बसाया गया होता तो यह स्थिति कभी पैदा नहीं होती। हमने मूर्खता की है कि कथित बुद्धिजीवी लोगों के फेर में फंसकर अपने जीवन को मौत के मुंह में डाल दिया है। हम यह भी भूल गए कि गंगा यमुना जैसी नदियों को कम से कम मूल बहाव के दोनों ओर पांच-पांच किलोमीटर का क्षेत्र किसी बाढ़ जैसी आपात स्थिति में उसके बहने के लिए दिया जाना चाहिए था। जबकि भ्रष्टाचार और अनैतिक साधनों से धन कमाने में लगे अधिकारियों ने बड़ी-बड़ी नदियों को भी बहुत सीमित क्षेत्र बहने के लिए दिया है। स्पष्ट है कि यह मूर्खता भविष्य की किसी बड़ी त्रासदी की ओर संकेत कर रही है। नोएडा जैसे क्षेत्रों में डूब क्षेत्र में भी लोग धड़ाधड़ मकान बनाते जा रहे हैं। अवैध कॉलोनी काटकर रातोंरात करोड़पति बनने की ललक में लोग पता नहीं क्या-क्या कर रहे हैं ? यद्यपि शासन प्रशासन भली प्रकार जानता है कि क्या हो रहा है ? क्यों हो रहा है और इसे क्यों नहीं होना चाहिए ?



(लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
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