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बेरोजगारी

बेरोजगारी

जय प्रकाश कुवंर
नौकरी चाकरी के अइसन,
सुखार हो ग‌इल।
अब तो आपन पेट पालल भी,
पहाड़ हो ग‌इल।।
पढ़ लिख के बबुआ,
खुब आशा लगवले।
शहर शहर घुमले पर,
नौकरी ना पवले।।
हार पाछ घरे अइले,
टूट के बिखर ग‌इले।
आशा रहल से निराशा भ‌इल,
माई बाप कुछ भी ना प‌इले।।
सोचत बाड़े बबुआ जे अब,
दूगो रोटी कहाँ से प‌इहें।
अपने का ख‌इहें,
माई बाबू के का खिअइहें।।
बड़ा हाल्ला रहे जे,
सरकारी नौकरी बांटात बाटे।
बेरोजगार नवयुवक सब के,
नौकरी दिलात बाटे।।
झूठ के पोल खुलते ही,
सरकार बेनकाब हो ग‌इल।
नवयुवक सब के जिनिगी,
एकदम बेकार हो ग‌इल।।
नौकरी चाकरी के अइसन,
सुखार हो ग‌इल।
अब तो आपन पेट पालल भी,
पहाड़ हो ग‌इल।।
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