"संपदा नहीं, उदारता का वैभव"
पंकज शर्माप्रिय मित्रों मनुष्य का गौरव उसकी संपदा के रत्नजटित आभूषणों में नहीं, अपितु हृदय की सहृदयता और करुणा की मधुर गंध में सुगंधित होता है। संपत्ति की चमक तो क्षणिक जुगनुओं की झिलमिलाहट है, जो निशा की श्वास के साथ ही विलीन हो जाती है; किंतु उदारता की ज्योति अखंड दीपशिखा है, जो युगों के अंधकार में भी आलोक बिखेरती है। स्वर्ण की कसौटी भार नहीं, शुद्धता है; वैसे ही मनुष्य की कसौटी वैभव नहीं, उदारता है।
आकाश में ऊँचा टंगा सूर्य यदि जीवनरस न बरसाए, तो उसकी ऊँचाई नीरस शून्यता मात्र है। किंतु उसकी किरणों का अमृत ही उसे जगत का जीवनदाता बनाता है। यही सूत्र मानव पर भी लागू होता है—उसकी गरिमा ऊँचाइयों के माप में नहीं, लोकमंगल की धारा में बहने वाली उसकी उपयोगिता में है। अतः सम्मान का वास्तविक पात्र देहधारी व्यक्ति नहीं, अपितु उसका व्यक्तित्व है, जो आत्मा के गूढ़ स्वरूप का चिरंतन दर्पण है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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