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"मगमिहिर की ज्योति"

"मगमिहिर की ज्योति"

*आचार्य राधामोहन मिश्र "माधव"*

रचना -----

डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"

आचार्य माधव, दीप सम,

ज्ञान-प्रकाश के हैं स्वर सम।

मगमिहिर की वाणी में,

गूंजे समाज का उज्ज्वल राग।


संयोजन में जिनकी शक्ति,

उन्नति की रचते हैं युक्ति।

शिक्षा, सेवा, संस्कृति संग,

बुने हैं सपनों के सुगंधित रंग।

हर गाँव, हर द्वार पे जाए,

नवचेतना की बात सुनाए।

स्वास्थ्य, विकास, नव निर्माण,

बनता है उनका जीवन-गान।

संस्कृति की गाथा बोली,

मग विरासत जग में डोली।

परंपरा की माटी महके,

आचार्य की मेहनत से चमके।

सेवा का भाव, करुणा की धार,

समर्पण है उनका सबसे पार।

मग समाज की धड़कन बनकर,

लिखते हैं नवयुग का संदर्भ।

हे आचार्य, प्रणाम तुम्हें,

हर दीप बने प्रणाम तुम्हें।

तुमसे ही पथ रोशन होगा,

मग समाज गौरवमय होगा।
यह कविता आदरणीय आचार्य राधामोहन मिश्र माधव जी के नेतृत्व में "मगमिहिर महासभा" द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना करती है। उनके प्रयासों से मग समाज शिक्षा, संस्कृति, सेवा और समृद्धि के पथ पर अग्रसर है।

🙏🙏

डॉ रवि शंकर मिश्र "राकेश"

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