"लालच की आग और नैतिक पतन"
पंकज शर्मा
लालच की अग्नि और आत्मिक दरिद्रता (The Fire of Greed and Spiritual Poverty) उपरोक्त उद्धरण हमें उस भ्रामक मायाजाल से आगाह करता है जिसे 'सफलता' के रूप में महिमामंडित किया जाता है। जब यश, धन और वाहवाही की भूख 'आवश्यकता' की सीमा लांघकर 'अतृप्त वासना' बन जाती है, तो मनुष्य अपनी चेतना का सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। यह प्यास एक ऐसा अंतहीन कुआँ है जिसे भरने के लिए वह अपने आंतरिक नैतिक कोष को खाली करता चला जाता है। वह भूल जाता है कि असली मूल्य उसके बैंक खाते या उसकी उपाधियों में नहीं, बल्कि उसके चरित्र की दृढ़ता और संवेदना की गहराई में निहित है। इस दौड़ में, वह दूसरों को सीढ़ी बनाकर चढ़ता है, संबंधों को लाभ-हानि के तराजू पर तौलता है, और अंततः शीर्ष पर पहुँचकर भी स्वयं को अकेला और दरिद्र पाता है। यह नैतिक बर्बादी केवल बाहरी आचरण का पतन नहीं है, बल्कि आत्मा की शांति का चिरस्थायी क्षरण है।
सच्चे वैभव का पथ: संतुलन और संतोष (The Path to True Glory: Balance and Contentment) प्रेरणा का सच्चा स्रोत भौतिक संग्रह में नहीं, बल्कि उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में है। हमें यह स्मरण रखना होगा कि धन और ख्याति केवल साधन हैं, साध्य नहीं। यदि हम अपने श्रम को सत्यनिष्ठा से सींचते हैं और अपनी सफलता को परोपकार और सकारात्मक प्रभाव के लिए समर्पित करते हैं, तो वही यश स्थायी सम्मान बन जाता है। नैतिक बर्बादी से बचने का मार्ग 'त्याग' नहीं, बल्कि 'संतुलन' है। जब हमारी इच्छाएँ आवश्यकता की पूर्ति और योगदान की भावना से शासित होती हैं, तभी हम उस आंतरिक स्वतंत्रता को प्राप्त करते हैं जो सबसे बड़ा धन है। इसलिए, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नैतिक मूल्यों की लगाम से नियंत्रित करें, क्योंकि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि वही है जब व्यक्ति दुनिया की चकाचौंध के बीच भी अपनी आत्मा की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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