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चित्रकूट से लंका तक श्रीराम की यात्रा : मासानुसार महागाथा

चित्रकूट से लंका तक श्रीराम की यात्रा : मासानुसार महागाथा

— डॉ. राकेश दत्त मिश्र
रामायण केवल एक महाकाव्य नहीं है, बल्कि यह भारतीय जीवन-दर्शन का शाश्वत ग्रंथ है। वाल्मीकि द्वारा रचित यह महाग्रंथ जीवन के प्रत्येक आयाम को छूता है। श्रीराम की यात्रा त्याग, धर्म, साहस और मर्यादा की यात्रा है। चित्रकूट से लेकर लंका विजय तक की उनकी यात्रा कालक्रम और मासक्रम में देखी जाए तो एक दिव्य पथ प्रदर्शित होता है। इस आलेख में हम रामकथा की उस धारा को मासानुसार व्यवस्थित करेंगे, जिसमें राम का प्रत्येक कदम धर्म की स्थापना और मानवता के उत्थान के लिए अग्रसर दिखाई देता है।

🌸 चैत्र मास : वनगमन और चित्रकूट प्रवास


चैत्र मास का विशेष महत्व है। यही वह समय है जब राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या से वनवास के लिए निकलते हैं। प्रयागराज में भरद्वाज ऋषि के आश्रम में रात्रिवास के बाद वे चित्रकूट पहुँचते हैं। चित्रकूट की शांत वादियों में उन्हें गहन शांति का अनुभव होता है।

चित्रकूट ही वह स्थान है जहाँ भरत राम से मिलने आते हैं। यह प्रसंग अत्यंत मार्मिक है। भरत का आग्रह था कि वे अयोध्या लौटकर राजगद्दी संभालें, किंतु राम अपने पितृवचन और धर्मपालन में अडिग रहते हैं। यह चैत्र मास का प्रथम सबक है कि धर्म का पालन किसी भी परिस्थिति में सर्वोपरि है।

🌞 वैशाख – ज्येष्ठ मास : पंचवटी और सीता हरण


चित्रकूट से आगे बढ़ते हुए राम, सीता और लक्ष्मण पंचवटी (नासिक क्षेत्र) पहुँचते हैं। यहाँ का वातावरण रमणीय था, अतः उन्होंने यहाँ निवास किया।

इसी कालखंड में राक्षसी शूर्पणखा का प्रसंग घटित होता है। जब उसने राम और लक्ष्मण को ललचाने का प्रयास किया, तो लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी। यही घटना आगे युद्ध का बीज बनी।

शूर्पणखा के उकसावे पर खर-दूषण और तृशिरा जैसे राक्षसों का वध हुआ। अंततः रावण स्वयं आगे आया और छलपूर्वक सीता हरण कर ले गया। यह घटना रामकथा का सबसे बड़ा मोड़ थी। वैशाख और ज्येष्ठ मास के इस प्रसंग ने दिखाया कि धर्मरक्षक को भी कभी-कभी अन्याय से सीधा सामना करना पड़ता है।

🌧 आषाढ़ मास : जटायु और शबरी से भेंट


सीता हरण के बाद राम अत्यंत व्याकुल हुए। आषाढ़ मास में वे वन–वन भटकते हुए जटायु से मिले। जटायु ने रावण से युद्ध करते हुए प्राण त्याग दिए। यह घटना निष्ठा और त्याग का अद्भुत उदाहरण है।

इसके बाद राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में पहुँचे, जहाँ शबरी ने अपने अपार प्रेम और भक्ति से उनका स्वागत किया। शबरी ने बेर अर्पित किए, जो भक्ति की चरम अभिव्यक्ति है। यह प्रसंग हमें बताता है कि जाति–पाँति या बाहरी स्वरूप से ऊपर उठकर भगवान केवल शुद्ध भक्ति को स्वीकार करते हैं।

🌿 श्रावण मास : हनुमान और सुग्रीव से मिलन


श्रावण मास की वर्षा ऋतु में राम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पहुँचे, जहाँ हनुमान से उनका मिलन हुआ। यही वह क्षण है जिसने आगे चलकर रामकथा को नया आयाम दिया।

हनुमान के माध्यम से राम की भेंट सुग्रीव से हुई। सुग्रीव और राम ने मित्रता की और प्रतिज्ञा की कि वर्षा ऋतु के बाद सीता की खोज आरंभ होगी। यह मास मित्रता, सहयोग और संगठन का प्रतीक है।

🍂 भाद्रपद – आश्विन मास : वानर सेना का संगठन


वर्षा समाप्त होते ही राम ने सुग्रीव को स्मरण दिलाया। सुग्रीव ने वानरों की विशाल सेना जुटाई।

इस समय तक बालि का वध हो चुका था और सुग्रीव किष्किन्धा का राजा बन चुका था। चारों दिशाओं में वानरों की टोलियाँ भेजी गईं। यह मास योजना, संगठन और नेतृत्व की कला को दर्शाता है।

🔥 कार्तिक मास : सम्पाती का संदेश


दक्षिण दिशा में भेजी गई टोली (हनुमान, अंगद, जाम्बवान) समुद्र तट पर महेंद्र पर्वत पहुँची। यहाँ जटायु का भाई सम्पाती मिला, जिसने बताया कि सीता लंका में हैं।

यह सूचना रामकथा की दिशा बदल देती है। अब स्पष्ट हो गया कि सीता कहाँ हैं और कैसे उन्हें छुड़ाया जा सकता है। कार्तिक मास इस प्रकार सत्य के उद्घाटन का प्रतीक बनता है।

🌺 मार्गशीर्ष मास : हनुमान का लंका गमन


मार्गशीर्ष मास में हनुमान समुद्र लांघकर लंका पहुँचे। उन्होंने अशोक वाटिका में सीता को ढूँढ निकाला और उन्हें राम का संदेश दिया।

हनुमान ने रावण को ललकारा, लंका दहन किया और फिर सुरक्षित लौटकर राम को सारी जानकारी दी। यह मास साहस, पराक्रम और निष्ठा का प्रतीक है।

🪷 पौष मास : सेतु निर्माण


पौष मास में राम वानर सेना सहित समुद्र तट पर पहुँचे। उन्होंने समुद्र देवता से मार्ग देने का अनुरोध किया। जब मार्ग न मिला तो नल और नील ने अद्भुत सेतु का निर्माण किया।

यह पुल आज भी रामेश्वरम् क्षेत्र में “रामसेतु” के नाम से प्रसिद्ध है। यह मास दृढ़ संकल्प और सामूहिक प्रयास की महिमा को दर्शाता है।

⚔️ माघ मास : लंका युद्ध और रावण वध


अंततः माघ मास में लंका का महान युद्ध आरंभ हुआ। कई दिन तक चले इस युद्ध में रावण के पुत्र मेघनाद, भाई कुंभकर्ण और अन्य राक्षस मारे गए।

अंत में सात दिन तक चला राम और रावण का भीषण युद्ध हुआ। दशमी तिथि को श्रीराम ने रावण का वध किया और धर्म की विजय हुई।

माघ मास इस प्रकार विजय, धर्मस्थापना और न्याय का प्रतीक बन गया।

निष्कर्ष


चित्रकूट से लंका तक की यह यात्रा केवल भौगोलिक मार्ग नहीं थी। यह धर्म की स्थापना, मित्रता की महिमा, भक्ति का गौरव, संगठन की शक्ति और पराक्रम की चरम परिणति का मार्ग था।

चैत्र से माघ तक, नौ मासों में श्रीराम की इस यात्रा ने भारतीय संस्कृति को जीवनभर का मार्गदर्शन दिया। यही कारण है कि रामायण केवल कथा नहीं, बल्कि प्रत्येक मास, प्रत्येक घटना और प्रत्येक स्थान भारतीय मनुष्य के जीवन में प्रेरणा बनकर जीवित है।



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