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सृजन के देव – विश्वकर्मा

🛕 *"सृजन के देव – विश्वकर्मा"*🛕

डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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सृजन कला के अधिपति,
निर्माण जिनका धर्म।
विश्वकर्मा भगवान हैं,
श्रम में जिनका मर्म।
हाथों में औज़ार लिए,
रचते नव संसार।
ईंट-दीवारों से आगे,
गढ़ते स्वप्न अपार।


स्वर्ण नगरी द्वारका रची,
इन्द्रपुरी का काम।
शिव का त्रिशूल उन्होंने गढ़ा,
विष्णु का सुदर्शन धाम।
वज्र बनाया इन्द्र के लिए,
पुष्पक रथ विमान।
देवों के भी शिल्पकार हैं,
पूजें सब इंसान।


लोहे की चोटों में भी है,
उनका मधुर विचार।
जो श्रम करे ईमान से,
वही है उनका अवतार।
मंदिर, महल, मशीन,
या पुल, चाहे कोई रूप।
हर रचना में छवि उन्हीं की,
जैसे दीप में रूप।


मजदूर, कारीगर, शिल्पी,
सब उनके हैं पुत्र।
काम में पूजा देखते,
यही है उनका सूत्र।
हर औज़ार की पूजा कर,
करें उन्हें प्रणाम।
विश्वकर्मा जयन्ती पर,
श्रद्धा से लें नाम।


चलो बनाएं श्रम को वंदन,
निर्माण को सम्मान।
विश्वकर्मा के चरणों में,
अर्पित हो यह ज्ञान।
सृजनशील हों सब पथिक,
करुणा, कर्म, विचार।
विश्वकर्मा का आशिष पाए,
हर भारत परिवार।


🛕 विश्वकर्मा भगवान की जय 🛕
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