माता कात्यायनी मंदिर और जिज्ञासा
सत्येन्द्र कुमार पाठक
कात्यायनी मंदिर से बाहर निकलकर सभी बच्चे और बड़े एक शांत जगह पर विश्राम कर रहे थे। वृंदावन की हवा में अब भी भक्ति और मिठास घुली हुई थी। प्रशांत, जिसने पहले महिषासुर के बारे में पूछा था, वह अब भी उसी सोच में डूबा हुआ था। उसने अपने पिताजी नवीन से पूछा, "पिताजी, आपने कहा था कि माता कात्यायनी ने महिषासुर नाम के एक राक्षस को मारा था। वह कैसा दिखता था? क्या वह शेर से भी ज़्यादा ताकतवर था?" प्रवीण मुस्कुराए। उन्होंने बच्चों को अपने चारों ओर बिठाया, जैसे कोई जादू की कहानी सुनाने जा रहा हो। अनिता, कुमुद, और प्रियंका भी उत्सुकता से सुनने लगीं। कुमुद ने कहानी शुरू की: "बहुत, बहुत साल पहले की बात है। धरती पर एक राक्षस राज करता था जिसका नाम था महिषासुर। महिषासुर का सिर तो भैंसे जैसा था, लेकिन उसके पास मनुष्यों की तरह हाथ-पैर और बुद्धि थी। उसने तपस्या करके इतने वरदान प्राप्त कर लिए थे कि उसे कोई भी देवता या पुरुष मार नहीं सकता था। उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड हो गया।"
पुच्ची डर के मारे अपनी मम्मी बेबी के पास चिपक गई। "क्या वह बहुत बुरा था, मम्मा जी ?" "हाँ, पुच्ची रानी," नवीन ने प्यार से कहा। "वह बहुत बुरा था। वह देवताओं को उनके घरों से निकाल देता था, अच्छे लोगों को परेशान करता था और पूरी पृथ्वी पर अत्याचार फैलाता था। उसका डर इतना बढ़ गया था कि देवता भी छिपने लगे।" दिव्यांशु ने अपनी आँखें बड़ी करते हुए पूछा, "तो फिर क्या हुआ? देवताओं को तो वरदान तोड़ना आता होगा, है ना?" प्रवीण ने कहानी को आगे बढ़ाया: "हाँ, दिव्यांशु! जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवताओं ने देखा कि उनका कोई भी पुरुष रूप महिषासुर को मार नहीं सकता, तो वे क्रोध और संकट में आ गए। तब उन तीनों देवताओं ने मिलकर एक अद्भुत योजना बनाई।" प्रियांशु उछलकर बोला, "क्या योजना बनाई?" "सभी देवताओं ने अपने-अपने भीतर का सारा तेज (ऊर्जा) बाहर निकाल दिया," प्रवीण ने बताया। "जैसे हम सब मिलकर एक बड़ा-सा टॉर्च जला दें, वैसे ही देवताओं के तेज से एक विशाल, प्रकाशमय पुंज पैदा हुआ। वह पुंज इतना चमकीला था कि आँखें चौंधिया जाएं।"
उर्वशी ने बीच में कहा, "और प्यारे बच्चों, वही प्रकाश पुंज धीरे-धीरे एक अत्यंत सुंदर, तेजस्वी और शक्तिशाली देवी के रूप में बदल गया! वही देवी थीं हमारी माता कात्यायनी!"
दिव्यांशु ने पूछा, "माता कात्यायनी को तो केवल चार हाथ होते हैं, पर क्या उनको महिषासुर को मारने के लिए और भी हथियार मिले?" प्रवीण ने उत्तर दिया, "बिल्कुल! हर देवता ने उन्हें अपना सबसे खास हथियार दिया। शंकर भगवान ने उन्हें त्रिशूल दिया, विष्णु भगवान ने चक्र, इंद्र ने वज्र और हिमालय ने उन्हें एक तेजस्वी शेर (सिंह) दिया, जिस पर वे सवार होकर युद्ध लड़ सकें। यही सिंह उनका वाहन बना।"
कहानी अब अपने रोमांचक मोड़ पर थी। सभी बच्चे शांत होकर सुन रहे थे। प्रवीण ने गहरी आवाज़ में कहा, "जब यह तेजस्वी देवी, कात्यायनी, पहली बार प्रकट हुईं और दहाड़ लगाई, तो तीनों लोक काँप उठे। महिषासुर ने जब यह दहाड़ सुनी, तो वह हँसा। उसे लगा कि कोई स्त्री उसका क्या बिगाड़ लेगी!"
"लेकिन माता कात्यायनी तो साक्षात शक्ति थीं। उन्होंने विंध्याचल पर्वत पर निवास किया और दस दिनों तक महिषासुर की विशाल सेना से भयंकर युद्ध किया। उनके हाथों में तलवार ऐसे चमकती थी जैसे बिजली चमक रही हो।"
प्रशांत ने उत्साह से पूछा, "और फिर क्या हुआ?" "दसवें दिन, माता कात्यायनी और महिषासुर का आमना-सामना हुआ। महिषासुर बार-बार अपना रूप बदलता रहा—कभी भैंसा, कभी मनुष्य, कभी हाथी—लेकिन माता की शक्ति के सामने उसकी कोई चाल काम नहीं आई। अंत में, जब महिषासुर फिर से भैंसे का रूप ले रहा था, तभी माता कात्यायनी ने अपने त्रिशूल से उस पर ज़ोरदार वार किया।"
"महिषासुर चीख़ता रहा, लेकिन माता ने उसे तुरंत मार डाला। उसके मरते ही पूरी धरती पर शांति छा गई। देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए, और हर तरफ जय-जयकार होने लगी।"कुमुद ने कहानी खत्म करते हुए बच्चों से कहा, "बस, इसी वजह से माता कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी (महिषासुर का वध करने वाली) कहा जाता है। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चाई और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का उपयोग करना कितना ज़रूरी है।" दिव्यांशु ने गहरी साँस ली और कहा, "तो माता कात्यायनी सचमुच सबसे ताकतवर हैं, जो हमें अभय (डर से मुक्ति) देती हैं और बृहस्पति (गुरु) को भी मज़बूत करती हैं।" प्रियांशु ने अपनी छोटी-सी मुट्ठी बाँध ली, "अगर कोई शैतान बनेगा तो माता कात्यायनी उसे मारेंगी!" नवीन ने सभी बच्चों के सिर पर हाथ रखा। "हाँ मेरे बच्चों! माता कात्यायनी की पूजा हमें यही हिम्मत देती है कि हमें कभी भी अन्याय के सामने झुकना नहीं चाहिए और हमेशा अच्छाई का साथ देना चाहिए।" सभी बच्चों के चेहरे पर अब डर की जगह श्रद्धा और साहस का भाव था। वे अपनी तीर्थयात्रा के अगले चरण की ओर बढ़ने के लिए तैयार थे, मन में माता कात्यायनी की दिव्य गाथाएँ लिए हुए।
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