कल्याण, शक्ति और परमार्थ की देवी: माता कात्यायनी
सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म के शाक्त सम्प्रदाय में माता कात्यायनी को नवदुर्गाओं के छठे स्वरूप के रूप में पूजा जाता है। वे कल्याण, अभय और दानवों का संहार करने वाली आदिशक्ति का एक अत्यंत तेजस्वी रूप हैं। माता कात्यायनी की आराधना नवरात्रि के षष्ठी तिथि को की जाती है और उन्हें ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है।
माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर (स्वर्ण के समान तेजोमय) है, जो उनकी दिव्य ऊर्जा और शौर्य को दर्शाता है। माता कात्यायनी के दाहिना ऊपरी हाथ अभयमुद्रा (भय मुक्ति का आशीर्वाद) दाहिना निचला हाथ वरमुद्रा (मनोकामना पूर्ति का वरदान) बायाँ ऊपरी हाथ तलवार (चन्द्रहास), जो दुष्टों के संहार का प्रतीक है। बायाँ निचला हाथ कमल-पुष्प, जो पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक है। वाहन सिंह (शार्दूलवरवाहन), जो साहस, पराक्रम और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। ग्रह शासक बृहस्पति ग्रह (गुरु)। उनकी पूजा से कुंडली में बृहस्पति की स्थिति मजबूत होती है।माता कात्यायनी को अमोघ फलदायिनी कहा जाता है, जिनकी भक्ति और उपासना से मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वे समस्त रोग, शोक, संताप और भय को विनष्ट करने वाली हैं।माता कात्यायनी के नामकरण और प्राकट्य के पीछे महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण और वामन पुराण में उल्लेख है। तपस्या और कामना: कत महर्षि के पौत्र और कत्य के वंश में उत्पन्न महर्षि कात्यायन (वररुचि कात्यायन) ने भगवती पराम्बा को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने की कामना से वर्षों तक कठिन तपस्या की।
असुर संस्कृति का राजा महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर असहनीय हो गया, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवताओं ने तथा अन्य देवताओं ने अपने-अपने तेज (ऊर्जा) का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक तेजस्वी देवी को उत्पन्न किया। यह देवी आदिशक्ति का ही संयुक्त और उग्र रूप थीं।नामकरण और प्रथम पूजा: यह दैवीय ऊर्जा महर्षि कात्यायन के आश्रम में चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि को अवतरित हुई। महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इस देवी की पूजा की और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही वे कात्यायनी कहलाईं। महिषासुरमर्दिनी: देवी कात्यायनी ने विंध्याचल पर्वत पर निवास किया और दस दिनों तक महिषासुर से भयंकर युद्ध किया। अंततः उन्होंने महिषासुर का वध किया और महिषासुरमर्दिनी कहलाईं, जिससे देवताओं और पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्ति मिली। उन्होंने आगे चलकर दैत्य शुम्भ और निशुम्भ के वध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
माता कात्यायनी का उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य में मिलता रहा है:
वैदिक सन्दर्भ: यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में माता कात्यायनी का उल्लेख मिलता है, जो उनके वैदिक महत्व को दर्शाता है।पतञ्जलि महाभाष्य: पाणिनि द्वारा रचित व्याकरण पर पतञ्जलि के महाभाष्य (दूसरी शताब्दी ई. पू.) में भी शक्ति के इस रूप का वर्णन है। देवीभागवत पुराण और मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य (400 ई. से 500 ई.) में उनकी वीरता और महिषासुर वध की कथा विस्तार से दी गई है।तांत्रिक ग्रंथ: कालिका पुराण (10वीं शताब्दी) जैसे तांत्रिक ग्रंथों में भी उनका उल्लेख है, जहाँ उड़ीसा (उत्कल/उत्कलदेश) में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है। कृष्ण भक्ति: श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध में उल्लेख है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी-यमुना के तट पर एक मास तक उनकी पूजा और व्रत किया जाता है।
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा गोधूलि बेला (सूर्यास्त के आसपास का समय) में करने का विधान
योग साधना में माँ कात्यायनी का स्थान आज्ञा चक्र (छठा चक्र या तृतीय नेत्र चक्र) में माना जाता है। साधक इस दिन अपने मन को आज्ञा चक्र में स्थिर करता है। आज्ञा चक्र, बुद्धि, अंतर्ज्ञान और एकाग्रता का केंद्र है। इस चक्र के जाग्रत होने से साधक को सहज भाव से माँ कात्यायनी के दर्शन होते हैं, वह अलौकिक तेज से युक्त होता है, और उसके भीतर की नकारात्मकता, अहंकार और अज्ञान नष्ट हो जाता है। माता कात्यायनी की प्रिय रंग लाल और पीला (कहीं-कहीं भूरा/ग्रे भी)।नैवेद्य (भोग): उन्हें मधु (शहद) अर्पित करना विशेष शुभ माना जाता है। इससे आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
विवाह के लिए मंत्र:
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
यह मंत्र शीघ्र विवाह, मनचाहे विवाह और वैवाहिक जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।
ध्यान एवं प्रार्थना मंत्र:
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥
प्रमुख कात्यायनी शक्तिपीठ और मंदिर
माता कात्यायनी के कई प्रसिद्ध मंदिर और शक्ति स्थल हैं, जो उनकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाते हैं: उत्तर प्रदेश: वृंदावन (मथुरा) में स्थित कात्यायनी शक्ति पीठ (यह वह स्थान माना जाता है जहाँ माता सती के केश गिरे थे)। वाराणसी का सिंधिया घाट, कानपुर, और गाजीपुर। दिल्ली: आद्या कात्यायनी मंदिर, छतरपुर। बिहार: खगड़िया (कोसी नदी के किनारे), सिमरी बख्तियारपुर। उत्तराखण्ड: ऋषिकेश है । माता कात्यायनी की उपासना हमें यह सीख देती है कि क्रोध और शक्ति का प्रयोग केवल धर्म की स्थापना और अन्याय के विनाश के लिए ही करना चाहिए। वे अमोघ शक्ति का प्रतीक हैं जो हमें आत्मबल और धार्मिक जीवन की प्रेरणा देती हैं।
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