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दोहा-पंचक

दोहा-पंचक

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जन्नत के ही दरस की लिये जिगर में तरस।
खाक छानते रह गए, लिया काल ने गरस। ।
बड़े नाज से रात भर जलता रहा चिराग।
सूरज का मुँह देखते हावी हुआ विराग। ।
भरी जवानी रूपसी चली पटकते पाँव।
पड़ीं झुर्रियाँ बदन में उलट गए सब दाँव। ।
दुनिया बदली हर जगह नारी नर से बीस।
दोहाकार कुछेक को कटि-कुच की ही टीस।।
सीधी हुई न श्वान की दुम दुनिया दमदार।
 ऋषि मुनि योगी तपस्वी चले गए झक मार।।

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