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पाप का विनाश

पाप का विनाश

ऋचा श्रावणी  
हे जगत जननी
हे शिवा धात्री
हे शिवांगी, जगदम्बा
हे कालरात्रि देख
जरा इस धारा को
पाप चरम सीमा पर
रिश्तों ने मर्यादाएं खो दी
स्त्रियों ने अपना चरित्र
पुरुषों की क्या बात कहे
सदियों पहले हुआ
उनका आचरण विलुप्त
हे! कालिका मर्दन करो
दुष्ट दानवों का दमन शमन करो
शासक शासन करने योग्य नहीं
रक्षक भक्षक बन बैठा
हे !चंडिका विध्वंस करो
प्रलय लाओ, अधर्म का विनाश करो
हे शक्ति दायिनी ! शक्ति दो
Vidharmiyo का नर संहार हो
अब समय आ गया है
नव निर्माण करो
सृष्टि का सृजन
सतयुग का आवाहन हो
फिर सनातन की विजय हो
शांति हो पूरे विश्व में
ऐसा आशीर्वाद दो।
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