सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की याचिका मुंबई उच्च न्यायालय में खारिज
- सनातन संस्था की निर्दोषिता फिर से सिद्ध;
- ‘हिंदू आतंकवाद’ के षड्यंत्र का पर्दाफाश
मुंबई - सनातन संस्था को ‘आतंकवादी संगठन’ बताकर उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए वर्ष 2011 में दायर की गई जनहित याचिका को अंततः याचिकाकर्ताओं को शर्मिंदगी के साथ वापस लेना पड़ा। लगभग 14 वर्षों तक चले इस लंबे न्यायिक संघर्ष में, याचिकाकर्ता सनातन संस्था के विरुद्ध आतंकवाद का एक भी सबूत पेश नहीं कर पाए। ‘‘याचिका की सुनवाई के लिए कोई आधार नहीं है। क्या आप याचिका वापस लेते हैं या हम इसे खारिज कर दें?’’ माननीय मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा इन कठोर शब्दों में फटकार लगाए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका बिना शर्त वापस ले ली। यह केवल सनातन संस्था की विजय नहीं है, बल्कि सत्य, न्याय और धर्मनिष्ठा की विजय है। हमारी न्यायपालिका पर जो श्रद्धा थी, वह आज एक बार फिर सत्य सिद्ध हुई है। हम सर्वशक्तिमान भगवान, न्यायपालिका, हमारे गुरुदेव और इस मामले में हमारा पक्ष रखने वाले अधिवक्ताओं के प्रति आभारी हैं, ऐसा सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. अभय वर्तक ने इस निर्णय के बाद कहा।
सनातन संस्था की ओर से हिंदू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, सचिव अधिवक्ता संजीव पुनालेकर, तथा वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष झा, अधिवक्ता अलौकिक पै और अधिवक्ता वसंत बनसोडे ने पक्ष रखा। पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के ‘इकोसिस्टम’ ने सनातन संस्था को लक्षित कर ‘भगवा आतंकवाद’ का झूठा नैरेटिव बनाया। वर्ष 2008 से 2025 के दौरान सनातन संस्था को हुई अपार क्षति और हजारों निर्दोष साधकों को हुए प्रचंड मानसिक कष्ट की भरपाई कौन करेगा? इस पूरी अवधि में, सनातन संस्था ने भारतीय न्यायपालिका पर पूर्ण विश्वास रखते हुए और पूरे संयम के साथ सभी जांच एजेंसियों को सहयोग किया। देश के सबसे बड़े राष्ट्रवादी संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जिस तरह झूठे आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया गया था, उसी इतिहास को दोहराने का यह प्रयास था, जिसे न्यायपालिका ने विफल कर दिया है, ऐसा भी श्री. वर्तक ने कहा।
सनातन संस्था को आतंकवादी बताकर उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग सबसे पहले वर्ष 2008 में राष्ट्रवादी कांग्रेस ने की, जिसके बाद कांग्रेस ने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द को प्रचलित करने की भरसक कोशिश की; लेकिन हर बार सनातन संस्था निर्दोष सिद्ध हुई। वर्ष 2008 के गडकरी रंगायतन विस्फोट मामले में सनातन को पहली बार फंसाया गया; लेकिन अदालत में सनातन संस्था निर्दोष साबित हुई। इसके बाद, वर्ष 2009 में गोवा के मडगांव बम विस्फोट मामले में भी कांग्रेस सरकार ने सनातन को फंसाया; इस मामले में भी विशेष सत्र न्यायालय ने 2013 में सनातन की निर्दोषिता को सिद्ध करते हुए जांच एजेंसियों पर भी फटकार लगाई थी। वर्ष 2013 में डॉ. दाभोलकर हत्या मामले में भी सनातन को लक्षित कर फंसाने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह भी आगे चलकर निष्फल रहा। ये सभी मामले ‘हिंदू आतंकवाद’ को सिद्ध कर सनातन संस्था को समाप्त करने के एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा थे।
ईश्वर का कार्य करने वाले संगठन को समाप्त करने का प्रयास करने वालों को समय (ईश्वर) ने उचित उत्तर दिया है। इस कठिन समय में भी, सनातन संस्था का राष्ट्र, धर्म और समाज के हित में कार्य निरंतर बढ़ता ही रहा है और हाल ही में सनातन ने अपना रजत जयंती वर्ष मनाया है। न्यायालय ने सनातन को निर्दोष मुक्त कर दिया है; लेकिन सनातन धर्म विरोधी प्रवृत्तियों के विरुद्ध, अर्थात् इस ‘इकोसिस्टम’ के विरुद्ध लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। इस लड़ाई को लड़ने के लिए सभी हिंदुओं को संगठित होने की आवश्यकता है, ऐसा भी श्री. अभय वर्तक ने कहा।
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